भुभू जोत टनल को भूल गई प्रदेश सरकार

पांच साल से महत्त्वपूर्ण सुरंग का काम शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं लोग, भाजपा ने बताया था ड्रीम प्रोजेक्ट

कुल्लू — कुल्लू वासी पिछले पांच साल से भुभू  जोत टनल के निर्माण कार्य शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार द्वारा भुभू जोत टनल को मात्र फाइलों में ही बनाया जा रहा है। बड़ी बात यह है कि  टनल को बनाने के लिए अनुमति तक नहीं मिली है। टनल बनाने से पहले भाजपा सरकार ने यहां तक डबललेन सड़क को बनाने के लिए सीआरएफ के तहत 13 करोड़ रुपए मंजूर करवाए थे, लेकिन हैरानी इस बात की है कि अभी तक पैसा होने के बाद भी यह सड़क भी डबललेन नहीं हो पाई है। डबललेन सड़क बनने के बाद भुभू जोत टनल को बनाने के लिए बड़ी मशीनरियों को ले जाना था, लेकिन अभी यह कार्य कछुआ गति से ही चला हुआ है। सड़क का भूमि-पूजन पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने वर्ष 2012 में किया था। उसके बाद सत्ता परिवर्तन होने के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने भी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।  इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने अपने कार्यकाल में व उस समय के विधायक गोविंद सिंह ठाकुर ने इस टनल को बनाने के लिए डीपीआर भी तैयार करवा ली थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद कुल्लू जिला का यह ड्रीम प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में पड़ गया है। अब चुनाव नजदीक आने पर फिर से नेताओं को टनल की याद आने लगी है।

कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाला प्रोजेक्ट

मनाली के विधायक गोविंद सिंह ठाकुर का कहना है कि भुभू जोत टनल भाजपा का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन सत्ता परिवर्तन होने के बाद इस प्रोजेक्ट को कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। भाजपा फिर से सत्ता में आते ही इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू करेगी।

कुल्लू-धर्मशाला में कम होंगे फासले

भुभू जोत टनल से जहां कुल्लू में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा मिलना था। वहीं, धर्मशाला से कुल्लू की दूरी भी कई मील कम होनी थी। इसका निर्माण लगवैली से होना है। यह टनल जोगिंद्रनगर के पास निकलनी है, जिससे  कुल्लू से कांगड़ा जाने वाले लोगों को वाया मंडी होकर नहीं जाना पड़ेगा। लोग सीधे टनल से होते हुए कांगड़ा पहुंच सकते हैं। जिला कुल्लू वासियों का यह एक ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन प्रदेश सरकार व जिला के स्थानीय नुमाइंदे इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। जानकारी के अनुसार कुल्लू रियासत के लोग किसी जमाने में इन रास्तों से पैदल होकर कांगड़ा रियासत में पहुंचा करते थे।