वादे करना नौसिखिए राजनेताओं की निशानी

मुश्किल होती सियासत पर आशा कुमारी की राय

चंबा— सच्चाई व विकासात्मक सोच ही आज के दौर में राजनीति का मूलमंत्र बन गई है। अब राजनीति में सुविधाओं की मांग के अलावा लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना भी नेता के लिए चुनौती से कम नहीं है। जनता की इस कसौटी पर खुद को साबित कर ही राजनीति में टिका जा सकता है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव व डलहौजी की विधायक आशा कुमारी का कहना है कि आज से 35 वर्ष पूर्व जब वह सक्रिय राजनीति में जनसेवा की भावना से पहली मर्तबा विधायक बनकर विधानसभा में आईं थी तो सुविधाओं की कमी को पूरा करना जनता की मांग रहती थी। उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर के अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि शुरुआती दौर में हलके में सड़कों, स्वास्थ्य संस्थानों व स्कूलों की कमी थी। साक्षरता दर के मामले में हल्के का सलूणी उपमंडल काफी पीछे था। हालात यह थे कि लोग पीडब्ल्यूडी में बेलदार की नौकरी तक ही सीमित थे, मगर जैसे- जैसे सुविधाओं का विस्तार हुआ तो लोगों की सोच बदली। अब लोग विकास के अलावा नेता की कार्यप्रणाली की भी बेहतर परख करने की समझ रखते हैं। आशा कुमारी ने कहा कि अब वादों के जरिए राजनीति के हित साधने का दौर गुजरे वक्त की बात बनकर रह गया है। अब वादे नौसिखिए राजनेता की निशानी हैं, क्योंकि उन्हें जनता में खुद को प्रूव करना होता है, मगर अब दौर लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का है। शिक्षा का नेटवर्क मजबूत होने से मतदाता खासकर युवाओं की सोच में काफी अंतर आया है। अब मतदाता नेता के हर काम का हिसाब-किताब रखता है। भारत का युवा अब काम करने वाले नेता को अपनी पसंद मानता है। ऐसे में कोरे आश्वासनों से नेता काफी दिनों तक मतदाताओं को गुमराह कर अपना हित नहीं साध सकता।

विकास ही ध्येय

पहले बनीखेत और अब डलहौजी से पांच बार प्रतिनिधित्व करने वाली आशा कुमारी ने हलके के विकास में अहम भूमिका निभाई है। विधानसभा क्षेत्र के सलूणी उपमंडल में ही तीन कालेज हैं। सलूणी को अलग उपमंडल का दर्जा भी आशा कुमारी के इसी कार्यकाल में मिला।

जुमलों पर यकीन नहीं करते लोग

आशा कहती हैं कि सभी बुनियादी जरूरतों को आम लोगों तक पहुंचाना और जन कल्याण सबसे बड़ी ताकत है । अब जनता जुमलों और वादों पर यकीन नहीं करती। लोगों को आप भ्रमित नहीं कर सकते। डलहौजी हलके का हर गांव समृद्ध व खुशहाल बने, यही मेरा सपना है।

अब मोबाइल-व्हाट्सऐप का जमाना

आशा बताती हैं कि वह भी वक्त था, जब यहां सड़कों का अभाव था। पैदल सफर करना पड़ता था, लेकिन आज छोटे गांव भी संपर्क सड़कों से जुड़ रहे हैं। कालेज समय से एनएसयूआई से जुड़ी आशा कुमारी कहती हैं कि उन्होंने पैदल चलकर भी हलके के लोगों की समस्याओं को जाना है, लेकिन आज हर कोई मोबाइल या व्हाट्सऐप के जरिए न केवल अपनी बात कहता, बल्कि  रिस्पांस भी चाहता है।

शुरुआती दौर रहा संघर्षपूर्ण

आशा कुमारी कहती हैं कि 35 वर्ष के लंबे राजनीतिक करियर में शुरूआती दौर काफी संघर्षपूर्ण रहा। पिछडे़पन का दंश झेल रहे डलहौजी हलके के दूरस्थ में लोगों से संपर्क करने के लिए हफ्ते लग जाते थे। उस वक्त पूरे हलके में पांच लोगों के पास ही मात्र वाहन थे, मगर अब डलहौजी हलका विकास का मॉडल बनकर उभर रहा है।