सावधान! बाजार में पहुंच रहा नकली केसर

वैज्ञानिकों का खुलासा; देश में सालाना मांग सौ टन, पैदावार महज चार टन

पालमपुर— अपनी सुगंध व औषधीय गुणों के कारण ऊंचे दाम पर बिकने वाले केसर को खरीदने से पहले उसकी परख जरूर कर लें। जानकारों के अनुसार बाजारों में बिकने वाले अधिकतर ब्रांड का केसर गुणवत्ता में कम या फिर यूं कह लें कि नकली पहुंच रहा है। इस बात का खुलासा पालमपुर स्थित हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान में  ‘हिमालय क्षेत्र में औषधीय पौधों की स्थिति‘  पर आयोजित किए जा रहे नेशनल सेमिनार में वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार केसर की देश में सालाना मांग सौ टन के करीब है, जबकि देश में पैदावार मात्र चार टन के लगभग है। बाजार में भारी मांग के चलते केसर का रूप देकर अन्य चीजों को उपलब्ध करवाया जा रहा है, जो कि सेहत के लिए भी हानिकारक है। गौर रहे कि केसर को विश्व के सबसे महंगे पौधों में गिना जाता है। देश में केसर की खेती जम्मू के किश्तवाड़ और पंपोर के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। केसर की खेती को लेकर पालमपुर स्थित सीएसआईआर संस्थान भी काम कर रहा है और इसकी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। खुशबू व औषधीय गुणों के चलते केसर की बाजार में कीमत तीन लाख रुपए प्रति किलो के आसपास है। केसर का उपयोग खाद्य व्यंजनों के साथ अनेक तरह के रोगों में इलाज के लिए भी किया जाता है। जानकारों के अनुसार इस समय बाजार में केसर के सौ के करीब ब्रांड बिक रहे हैं और हैरानीजनक तौर पर असली केसर के ब्रांड पांच फीसदी से भी कम पाए गए हैं।

प्रदेश को डेढ़ करोड़ का प्रोजेक्ट

प्रदेश में औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड द्वारा डेढ़ करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट मंजूर किया गया है। स्टेट मेडिसिनल प्लांट बोर्ड औषधीय पौधों की पैदावार के लिए किसानों को जागरूक व प्रोत्साहित करेगा। प्रदेश के नौ जिलों में औषधीय पौधों की खेती की जा रही है और औषधीय पौधों की 37 प्रजातियों को एग्रीकल्चर प्रोडयूस घोषित कर दिया गया है। वहीं बोर्ड ने 25 अन्य पौधों को इस श्रेणी में शामिल करने की मांग की है। राष्ट्रीय कार्यशाला में कृषि विवि के कुलपति प्रो. अशोक सरयाल, सीएसआईआर के निदेशक डा संजय कुमार, प्रदेश आयुर्वेद विभाग के निदेशक डा. आरके पुरुथी, नोडल आफिसर डा. दिनेश सहित देश भर से जानकार शिरकत कर रहे हैं।