हिंदी सिनेमा की लिविंग लीजेंडः आशा पारेख

By: Oct 1st, 2017 12:08 am

आशा पारेख1960 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा से सभी को अचंभित कर देने वाली अभिनेत्री आशा पारेख का जन्म 2 अक्तूबर, 1942 को एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। उनका पारिवारिक माहौल बेहद धार्मिक था। छोटी सी आयु में ही वह भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने लगी थीं। उन्होंने फिल्म ‘आसमान’ 1952, में बाल कलाकार के रूप में फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्हें ‘बेबी आशा पारेख’ के रूप में पहचान मिली। निर्देशक बिमल रॉय ने 12 वर्ष की आयु में उन्हें फिल्म ‘बाप-बेटी’ में लिया।  इसे कुछ खास सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने और भी कई फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई। उन्होंने फिल्मी दुनिया में कदम रखते ही स्कूल जाना छोड़ दिया था। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने दुबारा फिल्मी जगत में जाने का निर्णय किया, लेकिन फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ के निर्देशक विजय भट्ट ने उनकी अभिनय प्रतिभा को नजरअंदाज करते हुए उन्हें फिल्म में लेने से इनकार कर दिया, लेकिन अगले ही दिन फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म ‘दिल देके देखो’ में उन्हें शम्मी कपूर की नायिका बना दिया। यह फिल्म उन्हें और नासिर हुसैन को काफी नजदीक ले आई थी। नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी अगली 6 फिल्मों ‘जब प्यार किसी से होता है, फिर वही दिल लाया हूं, तीसरी मंजिल, बहारों के सपने, प्यार का मौसम और कारवां’ में भी नायिका की भूमिका में रखा। खूबसूरत और रोमांटिक अदाकारा के रूप में लोकप्रिय हो चुकी आशा को निर्देशक राज खोसला ने ‘दो बदन, चिराग, मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में एक संजीदा अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया। आशा जी ने गुजराती और पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया। नासिर हुसैन के अलावा दूसरे बैनर्स में काम करने से आशा पारेख  की छवि बदलने लगी थी। उन्हें गंभीरता से लिया जाने लगा था।   शम्मी कपूर के साथ उनकी केमिस्ट्री खूब जमी और फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ ने तो कई रिकार्ड कायम किए। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ‘फिल्म फेयर अवार्ड 1970’, पद्म अवार्ड 1992’ लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2002 में प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त भारतीय फिल्मों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें ‘अंतरराष्ट्रीय भारतीय अकादमी सम्मान- 2006’ भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल महासंघ द्वारा लिविंग लीजेंड सम्मान भी दिया गया। उन्होंने 1990 में गुजराती सीरियल ‘ज्योति’  के साथ टीवी निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा।


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