अरब में नया आंदोलन

By: Nov 12th, 2017 12:15 am

कुछ हफ्ते पहले क्राउन प्रिंस ने इस्लाम की रूढि़वादी विचारधारा सलाफी के समर्थकों के खिलाफ अभियान चलाया था, जबकि रियासत में लंबे अरसे से सलाफियों का दबदबा है। अब उन्होंने एक और चौंकाने वाले कदम के तहत कई वरिष्ठ मंत्रियों, अधिकारियों और 11 राजकुमारों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है…

सऊदी अरब एक नए आंदोलन की राह पर है। वहां भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरू हो गया है। इसके सूत्रधार वहां के क्राउन प्रिंस यानी युवराज मोहम्मद बिन सलमान हैं। वह 2015 में देश के रक्षा मंत्री बनाए गए थे। वह तब से ही इस इस्लामिक रियासत में शासन के तौर-तरीके बदलने के लिए भारी अधीरता दिखा रहे हैं। जून, 2017 में सऊदी अरब के शाह सलमान ने अपने भतीजे मोहम्मद बिन नायेफ के बजाय मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस बना दिया और इसके बाद वह और ताकतवर हो गए।

कुछ हफ्ते पहले क्राउन प्रिंस ने इस्लाम की रूढि़वादी विचारधारा सलाफी के समर्थकों के खिलाफ अभियान चलाया था, जबकि रियासत में लंबे अरसे से सलाफियों का दबदबा है। अब उन्होंने एक और चौंकाने वाले कदम के तहत कई वरिष्ठ मंत्रियों, अधिकारियों और 11 राजकुमारों को हिरासत में लेने का आदेश दिया है। इनमें एक राजकुमार अलवलीद बिन तलाल (करीब 17 अरब डॉलर की संपत्ति) भी हैं, जो दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार हैं। इसके अलावा प्रिंस मोहम्मद ने शाही सेना नेशनल गार्ड के प्रमुख मुतैब बिन अब्दुल्ला को भी पद से हटा दिया है। हालांकि अभी तक इन गिरफ्तारियों की असली वजह पता नहीं है, लेकिन शाही सूचना के मुताबिक प्रिंस मोहम्मद के भ्रष्टाचार निरोधक नए अभियान के तहत यह कार्रवाई की गई है। इस घटनाक्रम को क्राउन प्रिंस द्वारा सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। प्रिंस नायेफ को तो वह पहले ही अपने रास्ते से हटा चुके हैं। प्रिंस अलवलीद के पश्चिमी देशों की सरकारों से करीबी संबंध हैं और उन्हें अपेक्षाकृत खुले विचारों का हिमायती माना जाता है। वहीं प्रिंस मुतैब मरहूम शाह अब्दुल्ला के सबसे लाडले बेटे हैं और शाही खानदान में भी काफी ऊंचा रुतबा रखते हैं। इन दोनों की गिरफ्तारी से प्रिंस मोहम्मद ने पैसे और सत्ता के उन केंद्रों को बेअसर करने की कोशिश की है जो भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सकते हैं। ताजा कार्रवाई के बाद 32 साल के प्रिंस मोहम्मद ने खुद को बेहद ताकतवर बना लिया है और सऊदी अरब में हालिया दशकों में कोई भी क्राउन प्रिंस कभी इतना मजबूत नहीं रहा।

व्यावहारिक रूप से प्रिंस मोहम्मद इस समय रियासत की नीतियों से जुड़े तमाम फैसलों को सीधे प्रभावित करने की स्थिति में हैं। उनके पास अब सऊदी अरब की तमाम सुरक्षा इकाइयों-सेना, आंतरिक सुरक्षा बल और नेशनल गार्ड की कमान आ चुकी है। एक तरह से शाह के नाम पर सत्ता उनके हाथों में है। हालांकि इस सबके बावजूद प्रिंस मोहम्मद एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं। एक छोटे से समयांतराल में ही वह एक साथ कई मोर्चे खोल चुके हैं, जहां शाही खानदान के सदस्यों पर कार्रवाई के नतीजे दिखना तो अभी बाकी है। सऊदी अरब में परंपरागत रूप से सत्ता के केंद्र शाही परिवार के अलग-अलग सदस्यों के हाथ में होते हैं ताकि इसके लिए कोई संघर्ष की स्थिति न बने। इन सदस्यों को जो भी फैसले करने होते हैं, उनकी पहले उलेमा (धार्मिक नेताओं की परिषद) से मंजूरी ली जाती है।

प्रिंस मोहम्मद के कदम इस परंपरा को पलटते हुए दिख रहे हैं। राजकुमारों और कुछ धार्मिक नेताओं की गिरफ्तारी करवाकर उन्होंने सऊदी अरब में दशकों से कायम सत्ता के संतुलन को हिला दिया है। जनता में एक बड़ा तबका उनके भ्रष्टाचार निरोधक अभियान का समर्थन करता है और वह इसके जरिए अपने बाकी बचे विरोधियों को भी ठिकाने लगा सकते हैं।

हालांकि प्रिंस मोहम्मद की अब तक की उपलब्धियों की बात करें तो इनमें कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना बनाई थी, लेकिन अब तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ। उनकी विदेश नीति भी उल्टी पड़ती दिखाई दे रही है। यमन में अरब के नेतृत्व वाली सेना हूती विद्रोहियों पर काबू पाने में नाकाम रही है। वहीं सीरिया में जारी गृहयुद्ध में भी राष्ट्रपति बशर अल असद का पलड़ा भारी हो चुका है। सऊदी अरब असद का विरोधी है। प्रिंस मोहम्मद अगर ऐसी गलतियां दोहराते रहे तो फिर यह खेल उनके ऊपर भारी पड़ सकता है। इसके नतीजे के रूप में सऊदी शाही घराने में सत्ता का संघर्ष खुलकर सामने आ सकता है। इस समय जबकि सऊदी अरब और ईरान के बीच तनातनी है, शाही घराने की फूट का असर व्यापक होगा।


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