किसी को नहीं पौंग विस्थापितों की परवाह

राजनीतिक पार्टियों ने अपने विजन डाक्यूमेंट-घोषणापत्र में नहीं दी जगह, आखिर कब तक करेंगे न्याय को इंतजार

शिमला – हिमाचल प्रदेश के पौंग विस्थापित आज भी राजनीतिक दलों के एजेंडे से बाहर हैं। किसी भी राजनीतिक दल ने विस्थापितों के मुद्दों को अपने विजन डाक्यूमेंट या घोषणा पत्र में जगह नहीं दी है। वर्षों से विस्थापन का दंश झेल रहे इन लोगों को राजनीतिक दल अपनी प्राथमिकता नहीं मानते, तभी उनके लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की कि वे पुनर्वासित हो सकें। राजस्थान में भाजपा की सरकार है और केंद्र में भी भाजपा सत्तासीन है। ऐसे में इस दल से लोगों को अधिक उम्मीद रही है। वर्षों से विस्थापित कोर्ट- कचहरी के चक्कर में पड़े हैं, परंतु अभी भी न्याय के इंतजार में बैठे हैं। कांग्रेस सरकार के समय में यहां राजस्थान सरकार के मंत्रियों ने शिमला में भी बैठक की, वहीं राजस्थान जाकर यहां के मंत्रियों ने भी वार्ता की। अभी भी कई लोग ऐसे हैं, जिनको पुनर्वास नहीं हो सका है और मुद्दा वैसा ही खड़ा है। चुनावी बयार में एक दफा फिर से पौंग विस्थापितों का मुद्दा कांगड़ा जिला की सियासत में गरमाया हुआ है। किसी भी दल द्वारा उनको तरजीह नहीं देने से ये लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में पौंग डैम के निर्माण से विस्थापित हुए लगभग दो हजार विस्थापित ऐसे हैं, जिनको अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है। इसमें 1500 के करीब वे विस्थापित हैं, जिनको सूचीबद्ध करने के बावजूद उनका हक नहीं मिल पाया है, जबकि 500 के करीब वे विस्थापित हैं, जिनको सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर पुनर्वास के लिए कहा गया है। इनका मामला हाई पावर कमेटी के पास है। राजस्थान में कई लोगों को उनकी जमीन के मुरब्बे देने का निर्णय लिया गया था।  वहीं राजस्थान सरकार के मंत्रियों के साथ यहां पर विस्तार से बातचीत की गई। इन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से भी बातचीत की। उम्मीद की जा रही थी कि जल्द इनके मसले हल हो जाएंगे, परंतु ऐसा नहीं हो पाया है। इस पर राजनीतिक दलों द्वारा घोषणा पत्रों में इनकी अनदेखी एक बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। इनके बारे में कोई भी दल गंभीर नहीं है। चुनाव में नेताओं को वोट तो याद आ रहे हैं, लेकिन विस्थापितों का पुनर्वास याद नहीं आ रहा।

1960 के दशक में हुआ था पौंग डैम का निर्माण

पौंग डैम का निर्माण 1960 के दशक में हुआ था। वर्ष 2003-04 में कई सालों बाद यहां के 10584 विस्थापितों को राजस्थान के श्रीगंगानगर व अन्य स्थानों पर जमीन मिल पाई थी। कई लोगों ने अपने मरब्बे बेच भी दिए और वर्तमान में 8901 लोगों के पास ये मरब्बे वहां पर हैं।