मुलाकात
नशे के बजाय भांग में ढूंढें आजीविका के अवसर…
आपकी नजर में भांग क्यों चढ़ गई?
लगातार मणिकर्ण घाटी भांग के धंधे में बदनाम होती जा रही है। सचमुच यह नशा तो है, लेकिन इस खेती को नशा नहीं, अच्छे काम में प्रयोग में लाने का मैंने फैसला लिया।
यह प्रयोग कैसे हुआ और शुरुआती कठिनाई क्या रही?
जब हम इसके रेशों का प्रयोग रस्सी बनाने के लिए करते हैं, तो मेरे दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न इसकी पट्टी बनाई जाए ताकि इसका रस्सी की तरह पक्का कोट बने। शुरुआत में इसके रेशे का धागा बारीक बनाने में कठिनाई आई, लेकिन अब तजुर्बा हो गया है।
वास्तव में भांग के रेशे को ऊन में लपेटना है क्या?
प्राकृतिक रूप से जंगल में उगे भांग के पौधे के रेशे निकालकर उसका धागा बनाया है और इसको ऊन के धागे के साथ मिलाकर गर्म कोट की पट्टियां तैयार की हैं। अब ऊन में लगभग इसके रेशे का मिश्रण करना आसान हो गया है।
पहला ग्राहक कौन था और अब मार्केटिंग किस तरह कर रही हैं?
अभी दो साल से नई पहल शुरू की है। सबसे पहले इसके शेले बनाए गई है। इसके बाद कोट की पट्टी बनाई। इसकी पट्टी अढ़ाई हजार रुपए तक मेहनत के हिसाब से बिक सकती है। आने वाले समय में मार्केटिंग हो सकती है।
भांग की उपलब्धता कहां से और इसमें सही पौधे चुनने का मानदंड?
प्राकृतिक रूप से उगी भांग के पौधों के रेशे कोट पट्टी बनाने के लिए अच्छी होते हैं, जो पौधे मोटे होंगे, उनके रेशे अच्छे निकलते हैं। उसी का प्रयोग पट्टी के लिए किया जाता है।
आपके अभिनव प्रयोग को सबसे पहले किसने प्रोत्साहन दिया और अब सरकारी विभाग या एजेंसियां कोई मदद कर रही हैं?
मेरे घर में जब दूरदराज से मेहमान आते हैं तो वह भांग के पौधे से बनाई जा रही कोट पट्टी को देखकर काफी खुश होते हैं। उनसे मुझे प्रोत्साहन मिलता है, लेकिन अभी सरकारी विभाग और एजेंसियों को मेरे कार्य के बारे में पता नहीं है। भविष्य में प्रोत्साहन की उम्मीद लेकर चली हूं।
कुल्लू के उत्पादों में और क्या किया जा सकता है, कोई अन्य योजना बना रही हैं?
मेरे इलाके में फसलों का काम बहुत कम होता है। अगर यहां पर सब्जियों का कार्य किया जाए तो मंडियों तक पहुंचाना नामुमकिन है। क्योंकि रशोल गांव तीन घंटे की खड़ी चढ़ाई में पड़ता है। मेरा सभी से आग्रह है कि भांग को नशा न बनाया जाए, इसका प्रयोग शेले, कोट पट्टी में लाया जाए, ताकि आने वाले समय में बड़ी योजना बन सकती है।
बुनकर समाज की वर्तमान स्थिति और इससे पैदा रोजगार का विस्तार कैसे संभव है?
गांव-गांव में बुनकर हैं, लेकिन बुनकरों को मेहनत लायक मेहनताना नहीं मिलता है। इस कोट पट्टी बनाने के लिए काफी समय लग जाता है। इसमें रोजगार के अवसर हैं, इसका अच्छा दाम मिल सकता है। गांव की तकदीर बदल सकती है।
वेसो देवी की जिंदगी में हथकरघा का अर्थ क्या है?
हथकरघा का काम काफी लंबे समय से कर रही हूं। ऊन के पट्टू अपने लिए भी काफी बनाए हैं और लोगों को बनाकर दिए हैं। मेरा रोजागार इसी पर चलता है और हथकरघा ही दुर्गम क्षेत्रों की महिलाओं का रोजगार है।
अब तक मिली सबसे अहम तारीफ और ऐसे क्षण जब रोजमर्रा की जिंदगी तूफ ान से भर गई?
भांग के पौधे की कोट पट्टी बनाने की तारीफ मेरे गांव वालों ने की है। गांव की महिलाएं हर दिन मेरे पास बैठने के लिए आती हैं तो वे तारीफ करती रहतीं है। इससे मुझे और ज्यादा शौक पैदा होता है। मेरे लिए यह तूफान नहीं है, मैं अभी इस कार्य को अग्रसर कर रही हूं। आने वाली पीढ़ी के लिए घर द्वार रोजगार साबित होगा।
केंद्रीय या राज्य की योजनाओं में कहां सुधार की गुंजाइश है और विपणन के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगी?
इस नशे ने मणिकर्ण घाटी को बदनाम किया है। मेरी घाटी के लोगों से भी उम्मीद है कि वे भांग को नशे में न लाएं। इसे हथकरघा की योजनाएं में लाया जाए तो बेहतर होगा, जिससे नशे का कारोबार लोग बंद करेंगे और लोगों का कोट पट्टी के रोजगार की तरफ ध्यान जाएगा।
क्या जीएसटी का प्रत्यक्ष या परोक्ष में आपके धंधे पर असर हुआ। कैसे देखती हैं?
जीएसटी के बारे मैं नहीं जानती हूं, लेकिन मुझे नहीं लग रहा है कि मेरे इस कारोबार पर इसका कोई प्रभाव पड़ा हो।
— मोहर सिंह पुजारी, कुल्लू