मशालों से भगाई बुरी आत्माएं

 बंजार— उपमंडल बंजार में बूढ़ी दिवाली पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया। मार्गशीर्ष की अमावस्या की  देर रात को उपमंडल के कई गांवों में बूढ़ी दिवाली की खूब धूम रही। मशालें जलाने के साथ-साथ नाच-गानों का दौर चलता रहा। उपमंडल बंजार के गांवों में बूढ़ी दिवाली का पर्व प्रति वर्ष बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व उपमंडल के चेथर, गुशैणी, शपनील, हिडंव, थाटा डाहर, शिल्ही में मनाई गई। लोग इस अवसर पर कार्तिक मास की विश्व विख्यात दिवाली की तरह बाकायदा अपने घरों को सजाते हैं तथा बाजारों में खूब खरीद-फरोख्त करते हैं। गांवों के बुजुर्गों का कहना है कि मार्गशीर्ष मास की अमावस्या की रात को कबीरी नामक गीत को इस मौके पर गाया जाता है। बता दें कि इस पर्व के लिए घर का एक-एक मर्द विशेष लकड़ी की मशाल जलाकर ढोल-नगाड़ों की थाप पर गाते व पहाड़ी नृत्य करते हुए एक विशेष स्थान पर एकत्रित होते हैं, वहां पर नाचते हुए मशालों का एक अग्नि कुंड जलाया जाता है, जिसके चारों और कबीरी गीत का गायन करते हुए नाचते हैं। कहीं-कहीं पर  मशालों को जलाकर पूरे क्षेत्र की परिक्रमा करते की जाती है, ताकि भूत-प्रेत व अन्य बुरी आत्माएं वहां से दूर चली जाएं तथा क्षेत्र में शांति बनी रहे। उपमंडल बंजार के बाश्ंिदे जगदीश, मोहन लाल, रंजना, यशपाल, रमेश व बालक राम आदि का कहना है कि यह परंपरा का शस्त्रों में भी उल्लेख है। इस दिवाली को उपमंडल के हजारों लोगों ने रविवार रात को धूमधाम से मनाया। पर्व के उपलक्ष्य पर पहाड़ी संस्कृति से पहाड़ी नाटी स्वांग तथा गूढ़ रहस्य वाली गाथाओं का आयोजन किया गया।