महान अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन

कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के जनक कहे जाने वाले अमर्त्य सेन भारत के गिने-चुने ‘नोबेल पुरस्कार’ विजेताओं में से एक हैं। अर्थशास्त्र विषय में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1998 में यह सम्मान प्रदान किया गया था। इसके बाद वर्ष 1999 में अमर्त्य सेन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया था। मानव समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। अर्थशास्त्र विषय में अपने असाधारण योगदान के लिए जब अमर्त्य सेन को नोबेल पुरस्कार विजेता के लिए नामांकित किया गया, तब उन्होंने सब से पहले अपनी माता को फोन पर यह बात बताई थी। परंतु उनकी मां को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उनके पुत्र ने इतना बड़ा सम्मान अर्जित कर लिया है। जब उनकी माता ने समाचार पत्र और टेलीविजन में यह खबर देखी तब वह बहुत प्रसन्न हुईं। अमर्त्य सेन एक संपन्न व सुशिक्षित बंगाली कायस्थ परिवार में जन्में थे। अमर्त्य सेन के पिता ढाका विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र पढ़ाते थे। आगे चल कर अमर्त्य सेन नें प्रेसीडेंसी कालेज में शिक्षा हासिल की। उस के बाद उच्च शिक्षा हेतु वह इंग्लैंड में कैेंब्रिज के ट्रिनिटी कालेज चले गए। वहां पर उन्होंने वर्ष 1956 में बीए की डिग्री हासिल की। उसके बाद उन्होंने वर्ष 1959 में पीएचडी किया। यह बात दिलचस्प है कि भारत के प्रथम नोबेल प्राइज विजेता रबिंद्रनाथ टैगोर ने ही अमर्त्य सेन का नामकरण किया था। अमर्त्य सेन नें अपने मूल विषय अर्थशास्त्र पर लगभग 215 शोध किए हैं। शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत स्वदेश गमन भारत लौटने के बाद अमर्त्य सेन जादवपुर विश्वविद्यालय से जुड़े। वहां उन्होंने एक अर्थशास्त्र प्राध्यापक की भूमिका अदा की। उसके बाद उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स तथा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी अध्यापक के तौर पर सेवाएं दी थी। अमर्त्य सेन एक अर्थशास्त्री क्यों बने। वर्ष 1943 में बंगाल राज्य में भयंकर आकाल पड़ा था। इस आपदा में कई लोग बेमौत मारे गए। इस त्रासदी के वक्त अमर्त्य सिर्फ  दस वर्ष के थे। इस घटना का उन पर बहुत गहरा असर पड़ा था। उनका मानना था कि    अर्थशास्त्र का सीधा संबंध समाज के निर्धन और उपेक्षित लोगों के सुधार से है।