सियासी हांडी में पक रहा हमीरपुर मेडिकल कालेज

By: Nov 16th, 2017 12:10 am

हमीरपुर- मैं हमीरपुर मेडिकल कालेज हूं और चार साल से सियासी हांडी में पक रहा हूं। यूपीए सरकार में मेरे साथ खोले गए चंबा और नाहन मेडिकल कालेज में पढ़ाई शुरू हो गई है। मेरी दुर्दशा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मेरे बाद जन्म लेने वाला मंडी का नेरचौक कालेज भी फल-फूल रहा है। दिसंबर, 2016 में एमसीआई की टीम मुझे मान्यता देने आई थी। मौके पर न आधारभूत ढांचा था, न स्टाफ। लिहाजा मुझे फटकार के साथ जिल्लत झेलनी पड़ी और आज तक मजाक का पात्र बना हूं। प्रशासन ने भी मेरी नुमाइश लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस कारण पर्यावरण मंत्रालय से लगाई गई आपत्तियों को हटाने में दो साल का समय लग गया। अब विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा कीचड़ मुझ पर उछाला गया। लोग पूछते हैं कि हमीरपुर मेडिकल कालेज कब शुरू होगा। इसका जवाब न सरकार के पास है और न प्रशासन के पास। मेरी कहानी सबकी जुबानी चढ़ी हुई है। भूमि चयन को लेकर प्रशासन ने एक साल इधर-उधर की गप्पें हांकी। मार्च, 2015 में रंगस में जोलसप्पड़ के पास 37 एकड़ भूमि चिन्हित कर ली गई। निशानदेही में कहा गया कि कालेज के लिए चिन्हित किया गया भूखंड फोरेस्ट लैंड की जद में है। इस कशमकश में राजस्व तथा वन विभाग ने एक साल गवां दिया। अंततः मंत्रालय ने कहा कि पहाड़ी राज्य में 20 एकड़ जमीन पर्याप्त है। इसके चलते नए सिरे से निशानदेही कर स्थापना के लिए 37 से घटाकर 21 एकड़ जमीन चिन्हित कर दी। इस आधार पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को चंडीगढ़ में नवंबर, 2016 में मंजूरी का प्रस्ताव भेजा गया। अत्याधिक फोरेस्ट लैंड होने के कारण पर्यावरण मंत्रालय ने आब्जेक्शन लगा दिया। फाइल फिर दिल्ली भेजी गई। अब मिनिस्ट्री ने कहा कि मेडिकल कालेज के लिए सबसे पहले अस्पताल की व्यवस्था जरूरी है। केंद्र के निर्देश पर जिला अस्पताल को मेडिकल कालेज का हास्पिटल बना दिया गया। अब नया नकूना निकाला गया कि अस्पताल की साढ़े छह एकड़ जमीन उपलब्ध है। इस भूखंड को जोड़कर जोलसप्पड़ में जमीन 16 एकड़ के आसपास की पर्याप्त हो जाएगी। अब कालेज की स्थापना के लिए जोलसप्पड़ में 16 एकड़ भूखंड का मसौदा तैयार कर पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया। इस दफा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का ऑफिस चंडीगढ़ से देहरादून शिफ्ट हो गया। यूजर एजेंसी ने मंत्रालय को भेजी फाइल में टॉप टू बॉटम त्रुटियां रखी थीं। लिहाजा मंत्रालय ने मंजूरी की फाइल में चार बार ऑब्जर्वेशन लगाकर फाइल लौटा दी। इस प्रक्रिया के लिए एक साल का वक्त लग गया।

* नाहन और चंबा मेडिकल कालेज शुरू हो सकते हैं तो हमीरपुर में क्या दिक्कत थी। सरकार ने भेदभाव के चलते कालेज को लटकाया है

कविराज, कशीरी निवासी

* नेरचौक की अधिसूचना हमीरपुर मेडिकल कालेज के बाद हुई है। वहां कालेज खुल गया, पर यहां एनओसी में सालों लग गए। इसमें राजनीतिक बू आती है

पूजा ढटवालिया, व्यवसायी

* प्रशासन की लचर व्यवस्था और नेताओं की कमजोर इच्छा शक्ति कालेज में बाधा है।छोटी सी बीमारी पर मरीज टांडा रैफर हो रहे हैं

अशोक धमीजा, एमडी, सूरज स्वीट्स

2014 में घोषणा

यूपीए सरकार ने मार्च, 2014 में चंबा, नाहन और हमीरपुर मेडिकल कालेज खोलने का ऐलान किया। मई, 2014 को केंद्रीय मंत्रालय ने अधिसूचना भी जारी कर दी। कालेज की स्थापना के लिए 206 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया और 53 करोड़ पहले चरण में स्वीकृत भी हो गए, पर कालेज अब तक सियासी पालने में झूल रहा है।

एमसीआई के सामने जग हंसाई

दिसंबर, 2016 को एमसीआई की टीम जायजा लेने पहुंची तो कालेज को हंसी का पात्र बनना पड़ा। तब यहां न पैरामेडिकल स्टाफ था, न फैकल्टी। न लैब, न क्लासरूम। इस कारण एमसीआई की टीम फटकार लगाकर लौट गई।

80 डाक्टरों के इंटरव्यू भी हुए

हमीरपुर मेडिकल कालेज के लिए 80 चिकित्सकों के इंटरव्यू लिए गए। नियुक्ति के बाद चार्ज चिकित्सकों को छोड़ अन्य सभी डाक्टर दूसरे जिलों में भेज दिए। अब यहां सिर्फ एक प्रिंसीपल, दो सुपरीटेंडेंट और एक सहायक वित्त नियंत्रक है। अगले साल भी कालेज के आंगन में चिकित्सकों की पौध लग पाएगी, यह बहुत बड़ा यज्ञ प्रश्न है।


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