स्ट्रोक का थर्मोलिसिस से सफल उपचार

पालमपुर —  अधरंग के स्ट्रोक से प्रभावित मरीजों का पालमपुर अस्पताल में सफल इलाज हो रहा है, आवश्यकता बस इतनी है कि बीमारी के लक्षण दिखने के साढ़े चार घंटे के भीतर रोगी को अस्पताल पहुंचा दिया जाए। पालमपुर अस्पताल में अब तक ऐसे 18 मरीजों को पूरी तरह ठीक किया जा चुका है। पालमपुर अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रेम भारद्वाज के अनुसार फेशियल वीकनेस, आर्म वीकनेस, स्पीच प्रोब्लम, हॉफ पैरालिसिस, चलने-फिरने में झटका लगना और ठीक से दिखाई न देना स्टोक के लक्षण हैं। ऐसा होने पर यदि मरीज को साढ़े चार घंटे के अंदर ऐसे संस्थान में पहुंचाया जाए, जहां पर सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध हो तो मरीज के ठीक होने की संभावना काफी अधिक रहती है। इतना जरूर है कि इस विधि से क्लोट के मरीजों का ही उपचार हो पाता है ब्लीडिंग वालों का नहीं। समय पर मरीज के पहुंचने से इंजेक्शन के माध्यम से क्लोट हटाया जाता है। इससे 25 फीसदी लोगों में 24 घंटे के भीतर स्टोक से आई कमजोरी समाप्त होने लगती है। 70 प्रतिशत मरीज तीन माह के समय में पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। ऐसे मामलों में जागरूकता अति आवश्यक है, जिससे कि बीमारी का पता लगते ही मरीज को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाए।  इस तरह के मरीजों को जो इंजेक्शन दिया जाता है उसकी बाजार में कीमत 50 से 60 हजार रुपए है जिसे अस्पताल में निःशुल्क दिया जाता है।

निजी-सरकारी अस्पताल में तालमेल

स्ट्रोक के लक्षण दिखने पर पपरोला की 65 वर्षीय बनीता को सोमवार शाम पालमपुर स्थित विवेकानंद संस्थान में लाया गया। जहां पर डा. तोमर ने रोगी की हालत देखते हुए पालमपुर अस्पताल में डा. प्रेम भारद्वाज से बात की और बनीता को पालमपुर अस्पताल पहुंचाया गया। शाम पांच बजे बनीता की जांच शुरू की गई और जांच के दौरान इसमें अधरंग के लक्षण देखे गए और क्लोट की पुष्टि भी हुई। इसके बाद पालमपुर अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रेम भारद्वाज और उनकी टीम ने तुरंत मरीज का उपचार शुरू किया और उसे थर्मोलाइज किया गया। समय पर उपचार मिलने से मरीज ने धीरे-धीरे रिकवरी शुरू की और इस समय वह काफी ठीक है। बनीता को स्ट्रेचर पर लाया गया था और एक घंटे के बाद ही उनकी हालत में सुधार आने लगा। डा. प्रेम भारद्वाज के अनुसार मरीज एक घंटे के भीतर 80 प्रतिशत ठीक हो गया और चलने-फिरने लगा।