हाँ में फौजी हूँ

By: Nov 6th, 2017 12:05 am

सरहदें किसी भी देश की परिभाषा होती हैं, बिना सरहदों का भला देश कैसा। सैनिक रातों को जागता है तभी पूरा देश चैन की नींद सो पाता है। इनकी अहमियत सरहदों मात्र पर ही नहीं,बल्कि ये सैनिक और उनके परिवार चुनावों में भी अहम भूमिका निभाते हैं। देश के रखवालों का प्रभाव दखल के जरिए बता रहे हैं…

खुशहाल सिंह

एक सैनिक का जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित होता है। वह अपने देश पर मर मिटने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हम जब घर में चैन की नींद सो रहे होते हैं, तो वह सरहदों पर जागता है और दुश्मनों की गोलियों का सामना करता है। बहादुरी इसके रक्त में कूट-कूट कर भरी होती है और वह कभी दुश्मनों को अपनी पीठ नहीं दिखाता बल्कि दुश्मनों पर हावी रहता है। एक सैनिक न केवल युद्ध काल में बल्कि शांतिकाल में भी देश के नागरिकों की मदद के लिए आगे आता है। देश में आने वाली बाढ, भूकंप, दुर्घटना आदि आपदाओं के वक्त जब प्रशासन के हौसले पस्त हो जाते हैं तो यही वह सैनिक हैं, जो कि आगे बढ़कर अपने नागरिकों की जान अपनी जान को हथेली पर रखकर बचाता है।  सैनिक की ड्यूटी बेहद कठिन होती है और वह अपने परिवार को छोड़ कर पूरा साल भर देश की सुरक्षा में तैनात रहता है। गर्मी हो या ठंड उसके लिए देश की रक्षा करना पहला पहली ड्यूटी होती है। साल में सिर्फ दो महीने के लिए जवान अपने परिवार के साथ रहने आता और यदि एमर्जेंसी हो तो मोर्चे पर वापस जाने में देर नहीं करता। एक ओर हम अपने  घरों में चैन की नींद सो रहे होते हैं तो सैनिक कहीं पर जमीन पर घास का बिछौना बनाकर उस पर रात काट लेता है। सैनिक को नींद में भी देश की सुरक्षा की चिंता रहती है,  तभी तो हर तरह के खतरों से आज तक देश सुरक्षित रहा है। इसलिए वह गर्व से कहता है कि….हां मैं फौजी हूं….

1.11 लाख पूर्व सैनिक
1.15 लाख वर्तमान फौजी
04 परमवीर चक्र विजेता
10 महावीर चक्र विजेता
02 अशोक चक्र विजेता
18 कीर्ति चक्र विजेता
847 गैलेंटरी अवार्ड

फौज में प्रदेश के जांबाज

देश की सुरक्षा में तैनात जवानों में एक बड़ी तादाद हिमाचल के जवानों की है। राज्य के अधिकतर हिस्सों, खासकर निचले क्षेत्रों में शायद ही ऐसा कोई घर हो जहां से कोई न कोई सदस्य सेना में अपनी सेवा न दे रहा हो। देश की रक्षा करने का जब्जा यहां के नौजवानों में किस कद्र है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में इस समय पूर्व सैनिकों की संख्या 1.11 लाख के करीब है, जबकि युद्ध विधवाएं व पूर्व सैनिकों की  विधवाओं की संख्या 35 हजार हैं। वहीं, करीब 1.15 लाख जवान सेना में अभी सेवाएं दे रहे हैं।  भारतीय सशस्त्र सेना की बात करें, तो इसके तीन अंग हैं। इनमें थल सेना, नौसेना, और वायु सेना शामिल हैं। थल सेना जहां जमीन पर देश की रक्षा करती है, वहीं वायु सेना आकाश और नौ सेना समुद्र में देश की सुरक्षा  के लिए हर वक्त तैनात रहती है।

आर्मी के बाद प्रदेश में ऊंचे ओहदे

देश में सेना के उच्च पदों पर रहे सेना अधिकारियों ने हिमाचल में भी बड़े नाम कमाए हैं। हिमाचल लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर मेजर जनरल सीएम शर्मा सेना में कार्य कर चुके हैं तो अभी मौजूदा समय में भी मेजर जनरल धर्मवीर राणा लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। हिमाचल प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा में भी कई बड़े पदों पर सेना से सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारी या तो सेवाएं दे चुके हैं या अभी भी सेवाएं दे रहे हैं। पुलिस विभाग में एडीजीपी  के पद पर पहुंचने वाले सेवानिवृत्त सेना अधिकारियों में केसी सडयाल और केएस राणा शामिल हैं।

ग्राउंड से पहले युवाओं का कड़ा इम्तिहान

हिमाचल से सेना में जाने वाले युवाओं की तादाद अन्य राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है, लेकिन भर्ती के लिए कोई खास सुविधा यहां के युवकों को नहीं मिलती। देखने में आया है कि भीड़ ज्यादा होने के कारण कई दिनों तक युवकों को भर्ती स्थल में रहना पड़ता है।  ऐसे में सबसे बड़ी समस्या भर्ती के लिए आने वाले युवाओं के सामने रात गुजारने की होती है।  उन्हें मंदिरों में भी रातें गुजारनी पड़ती हैं। वहीं, होटल वाले भी इनसे भारी-भरकम किराया वसूलते हैं। ऐसे में कई बार युवकों को सड़कों पर ही रात बितानी पड़ती है।  यहां पर रेलवे सुविधा  भी नाममात्र की है। ऐसे में यहां के युवकों को सड़क परिवहन पर ही ज्यादा निर्भर होना पड़ता है। कई बार युवकों को बसों की कमी के कारण उनकी छतों पर बैठने को मजबूर होना पड़ता है। परिवहन निगम द्वारा भी इन युवकों के लिए कोई विशेष बसों का इंतजाम नहीं किया जाता है।

ऐसे की जाती हैं भर्तियां

भारतीय थलसेना, नौ सेना और वायु सेना के लिए समय-समय पर भर्ती अभियान चलता रहता है। यह अभियान खुली भर्ती के रूप में व सिलेक्शन बोर्ड के माध्यम से चलाया जाता है।  थलसेना में सैनिक (जीडी) मैट्रिक   और तकनीकी में दस जमा दो  विज्ञान संकाय में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित अनिवार्य है। वहीं नौ सेना और वायु सेना में भर्ती के लिए विज्ञान विषय में   जमा दो पास होना जरूरी है। इनके लिए समय-समय पर भर्ती रैली की जाती है। वहीं शार्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से अफसरों का चयन किया जाता है।

नेशनल अकादमी खोलने की मांग

हिमाचल का देश की सुरक्षा में  अहम योगदान देने के कारण हिमाचल की ओर से कई बार नेशनल अकादमी खोलने की भी मांग उठती रही है, जिससे हिमाचली युवाओं को सेना के लिए तैयार किया जा सके।  वहीं हिमाचल में भर्ती रैलियों के माध्यम से भर्तियां की जाती रही है। इसके अलावा यह भी मांग की जाती रही है कि हिमाचल में वार मेमोरियल हर जिलों में खोले जाएं, ताकि लोगों को सेना के शौर्य से अवगत करवाया जा सके।

आजादी के आंदोलन में हिमाचल के सेनानी

देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करने में हिमाचल के स्वतंत्रता सेनानियों का बड़ा योगदान रहा है। भले ही ये लोग किसी संगठित सेना के अंग नहीं थे, लेकिन वे विभिन्न संगठनों से जुड़े थे और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले सैनिकों से कम नहीं थे।

सिरमौर में पझौता आंदोलन

प्रदेश के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सिरमौर के पझौता आंदोलन को सम्मान के साथ याद किया जाता है। यह आंदोलन भारत छोड़ो आंदोलन का एक हिस्सा रहा था। अंग्रेजी सेना ने यहां विद्रोह को सख्ती से कुचला, जिसमें कुछ लोग शहीद हुए तो दर्जन भर स्वतंत्रता सेनानी घायल हो गए।

ऊना-कांगड़ा में आजादी की जंग

ऊना में भी कई सेनानियों ने आजादी के संग्राम में अपना योगदान दिया तो कांगड़ा में पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की अगवाई में कई सेनानियों ने भारत मां को आजाद करने में अपना योगदान दिया। वहीं, आजाद हिंद फौज के बहुत से सिपाही बिलासपुर से थे, जिन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ काम किया। सोलन के कई सेनानियों ने भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया।

हमीरपुर-मंडी के सूरमा

हमीरपुर से भी कई महानायकों ने जंग-ए-आजादी में योगदान दिया और यहां कई लोग आजाद हिंद फौज के सक्रिय सदस्य रहे। मंडी से कई वीरों ने आजादी के दिन के लिए संघर्ष किया। तात्कालिक सुकेत वर्तमान सुंदरनगर से भी एक दर्जन सेनानी आजादी के आंदोलन का हिस्सा रहे। देवभूमि कुल्लू भी आजादी के रण से अछूती नहीं रही। कु्ल्लू के रणबांकुरों का 1857 के विद्रोह में बड़ा नाम रहा है। कुल्लू से क्रांति वीर प्रताप सिंह और उनके संबंधी वीर सिंह ने सेना का गठन किया और अंग्रेजी हुकूमत से टक्कर ली, लेकिन बाद में पकड़े गए और उनको फांसी के फंदे पर चढ़ाया गया।

आजादी की जंग का हिस्सा धामी गोलीकांड

शिमला में धामी गोलीकांड तो आजादी के इतिहास में  जाना जाता है। यहां 1937 में धामी प्रजामंडल की स्थापना की गई, जिसके सदस्यों ने वहां के राणा के खिलाफ आंदोलन को बिगुल फूंका। आंदोलन की अगवाई करने वाले भागमल सौठा को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन विद्रोही नहीं रुके। राणा ने गोली चलाने का आर्डर दे दिया और जिसमें दो लोग शहीद हो गए। प्रदेश की वादियों में गोली चलाने की यह पहली घटना थी, जिसकी गूंज दिल्ली तक गई थी।

शूटर विजय ने बढ़ाया मान

शूटिंग में भारत का डंका बजाने वाले हमीरपुर के विजय कुमार भी देश की सेना में सेवाएं दे चुके हैं। उन्होंने ओलंपिक में सिल्वर पदक जीतकर  भारत का गौरव बढ़ाया है।  बड़सर में गांव हरसौर के निवासी विजय कुमार को उनकी उपलब्धि के लिए पद्मश्री, राजीव गांधी खेल रतन, अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। सेना में भी उनको अति वशिष्ट सेना मेडल  प्रदान किया गया। विजय ने अंतराष्ट्रीय स्तर की खेलों में 20 स्वर्ण, 15 रजत  व  15  कांस्य पदक जीते हैं। इसके अलावा   राष्ट्रीय स्तर पर 113 स्वर्ण, 22 रजत व 18 कांस्य पदक हासिल किए हैं।

विकास में पिछड़े छावनी क्षेत्र

देश के अन्य हिस्सों की तरह हिमाचल में भी सेना के अधीन कुछ छावनी एरिया है, जो कि इतिहास को संजोए हुए हैं। यह बात और है कि ये छावनी एरिया विकास की इस दौड़ में पीछे छूट गए हैं। यहां लोग मालिकाना हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं और इनको मूलभूत सुविधाओं के भी तरसना पड़ रहा है। हालांकि कहने के लिए तो ये एरिया नगर परिषदों का दर्जा रखते हैं, लेकिन इनकी हालात बदतर है। मौजूदा वक्त में पूरे देश में 62 छावनी एरिया है, जिनमें से सात हिमाचल में भी हैं।  इनमें  सबाथू, डगशाई, कसौली, डलहौजी, बकलोह (चंबा), योल, जतोग छावनी एरिया शामिल हैं। अंग्रजों के समय में से आस्तिव में आए इन एरिया के लोग कई दशकों से अपने हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन इलाकों में सबसे बड़ी समस्या जमीनों और संपत्तियों के मालिकाना हक को लेकर है। यहां जमीनें केंद्र सरकार या रक्षा मंत्रालय की है, जिनका मालिकाना हक आसानी से ट्रांसफर नहीं होता। ऐसे में इनमें भवनों को नए  स्वरूप में बनाने की अनुमति आसानी से नहीं मिल रही। यही वजह है कि छावनी एरिया में पुराने और जर्जर भवन ही नजर आ रहे हैं। लेकिन इनकी ओर राज्य सरकारों का कोई ध्यान नहीं रहता,  वहीं वोट बैंक कम होने के कारण केंद्र में भी सरकारें इनको ज्यादा तवज्जो नहीं देतीं।

सरकार दे रही है कई सुविधाएं

हिमाचल में सैनिकों व पूर्व सैनिकों को सरकार की तरफ से कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं। हिमाचल में परमवीर चक्र, अशोक चक्र विजेताओं को मिलने वाला अनुदान 30 लाख दिया जा रहा है। सेना के महावीर चक्र विजेताओं को 20 लाख रुपए की राशि बतौर अनुदान दी जा रही है। यही नहीं, परमवीर चक्र, अशोक चक्र विजेता को हर साल तीन लाख का अनुदान और महावीर चक्र विजेताओं को हर साल दो लाख का अनुदान भी दिया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के सेवानिवृत्त सैनिकों को भी तीन हजार रुपए प्रतिमाह सहायता राशि दी जा रही है। हिमाचल में युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को पांच लाख रुपए अनुग्रह राशि, युद्ध के दौरान 50 प्रतिशत या इससे अधिक विकलांगता होने पर 1.50 लाख रुपए, 50 प्रतिशत से कम विकलांगता पर 75 हजार रुपए और युद्ध के दौरान शहीद हुए अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को 1.50 लाख रुपए दिए जाने का प्रावधान किया गया है। हिमाचल में युद्ध विधवाओं की  पचास हजार रुपए की सहायता राशि दी जा रही है।

हिमाचल को बटालियन की जरूरत

इंडियन एक्स सर्विसमैन लीग मूवमेंट के अध्यक्ष एवं कारगिल युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर का कहना है कि केंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों को वन रैंक-वन पेंशन का एक बड़ा तोहफा दिया है। सरकार इसमें कमियों को दूर करेगी, इसका सरकार ने भरोसा दिया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल से बड़ी संख्या में लोग सेना में हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हिमाचल की एक अलग से बटालियन हो। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में पूर्व सैनिकों को अनुबंध पर तैनाती करने की बजाय नियमित तौर पर नियुक्ति दी जानी चाहिए। उन्होंने राज्य सरकार से नौकरी में मौजूदा 15 फीसदी कोटे को भी बढ़ाने की मांग की है।

अर्द्धसैनिक बलों को मदद

सेना व अर्द्धसैनिक बलों में सेवा के दौरान युद्ध में शहीद होने पर 20 लाख रुपए, घायल होने पर पांच लाख  तथा 50 प्रतिशत या इससे अधिक विकलांग होने की स्थिति में 2.50 लाख रुपए की अनुग्रह राशि दी जा रही है। सरकार द्वारा युद्ध में शहीद व अपंग हुए सैनिकों के आश्रितों को मुख्यमंत्री सैनिक कल्याण निधि से हर साल दो करोड़ से अधिक की अनुदान राशि दी जा रही है। यही नहीं, सैनिक कल्याण विभाग द्वारा कई सेवारत भूतपूर्व सैनिकों की लड़कियों तथा विधवाओं को सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण भी सरकारी खर्च पर दिया जा रहा है। वीरता पुरस्कार विजेताओं को डीलक्स और पथ परिवहन निगम की बसों में निःशुल्क यात्रा की सुविधा दी जा रही है। वर्तमान में 716 वीरता पुरस्कार विजेता इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। इसके अतिरिक्त 655 युद्ध विधवाओं को भी   निगम की बसों में  निःशुल्क सुविधा प्रदान की जा रही है।

अलग से खोला विभाग

सेवारत सैनिकों व पूर्व सैनिकों को राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से वर्ष 1973 में अलग से सैनिक कल्याण विभाग चल रहा है, ताकि सैनिकों, पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों के समुचित विकास व कल्याण के लिए आरंभ की गई विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों का सही प्रकार से कार्यान्वयन सुनिश्चित बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त, पूर्व सैनिकों की सुविधा के लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड का गठन भी किया गया है। यही नहीं, पूर्व सैनिकों को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए विशेष रोजगार कक्ष स्थापित किया गया है, जो पूर्व सैनिकों को सेवानिवृत्ति के उपरांत रोजगार दिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है। राज्य सरकार द्वारा पूर्व सैनिकों को सरकारी सेवाओं में 15 प्रतिशत का आरक्षण प्रदान किया जा रहा है।

वीरता दिखाने में हिमाचल आगे

एक छोटा सा पहाड़ी प्रदेश होने के बावजूद  हिमाचल प्रदेश के चार बहादुर सैनिकों को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अब तक नवाजा जा चुका है। इसके अलावा दो को अशोक चक्र और दस वीर सैनिकों को महावीर चक्र प्रदान किए गए हैं। हिमाचल के बहादुर सैनिकों को अभी तक कुल 847 गैलेंटरी अवार्ड प्रदान किए जा चुके हैं और यहां के 18 सैनिकों को कीर्ति चक्र से भी नवाजा गया है। देश में पहला सबसे बड़ा शौर्य पुरस्कार परमवीर चक्र पाने वाले सोमनाथ शर्मा हिमाचल से संबंध रखते थे।  उन्होंने 1947 में पाकिस्तान के साथ लड़े पहले युद्ध में वीरता की गाथा लिखी थी। सोमनाथ ने अपने 55 साथियों के साथ 500 पाकिस्तानियों को छह घंटे तक रोके रखा, जब तक कि सेना की अतिरिक्त मदद पहुंच नहीं  गई। मेजर सोमनाथ के साथ 4 कुमाऊं की डेल्टा-कंपनी बलिदान हो गई। मेजर शर्मा को मरणोपरांत देश का पहला परमवीर चक्र प्रदान किया गया। उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा को 1950 में यह चक्र सौंपा गया। कारगिल युद्ध में देश को विजय दिलाने में  कैप्टन बतरा का नाम हमेशा याद रखा जाएगा।  महज 25 वर्ष की आयु में  उन्होंने कारगिल युद्ध को फतह दिलाने वाली दो अहम चोटियों 5140 और 4875 पर तिरंगा फहराया और बाद में वीरगति को प्राप्त हुए। उनको भी देश के सबसे बड़े वीरता सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया। नायब सूबेदार संजय कुमार ने भी कारगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया और उनको इसके लिए सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया। धर्मशाला के मेजर धनसिंह थापा को भी 1962 के युद्ध में वीरता के लिए सबसे बड़े शौर्य पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया। इसके अलावा कैप्टन अमोल कालिया को कारगिल युद्ध के दौरान उनके अदम्य साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया।  यही नहीं, इसी कारगिल युद्ध में 1999 में हिमाचल के 52 सैनिक दुश्मनों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। इसके अलावा हर मोर्चे पर फौजियों ने दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं। इन्हीं हीरों से प्रेरणा पा कर प्रदेश के युवा भारतीय फौज में जाने का सपना संजोए है।  यहां के युवाओं को मलाल है कि प्रदेश को अपनी बटालियन या रेजिमेंट नहीं मिल पाई । अगर हिमाचल की अपनी रेजिमेंट या बटालियन हो तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार के ज्यादा अवसर मिल सकेंगे।

सरहद से लेकर प्रदेश की सियासत तक

सरहदों की हिफाजत करने के बाद प्रदेश के जांबाजों ने प्रदेश की राजनीति  में अपनी अलग ही पहचान बनाई है। हिमाचल की राजनीति भी सेना के लोगों का कब्जा रहा है। हिमाचल में कई ऐसेनाम हैं जो कि सेना में सेवा के बाद राजनीति के क्षितिज में छाए। इनमें मेजर जनरल विक्रम सिंह कटोच हमीरपुर से सांसद रहे हैं। कर्नल धनी राम शांडिल वर्तमान में सरकार के समय में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मंत्री हैं। सरकाघाट से कर्नल इंद्र सिंह विधायक के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं। वहीं, जयसिंहपुर से कैप्टन आत्मा राम भी राजनीति में चमके। ब्रिगेडियर  खुशहाल सिंह ठाकुर, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई, वह भी राजनीति में शामिल हो गए हैं। हिमाचल की राजनीति में पूर्व सैनिक और कार्यरत सैनिकों की बड़ी ताकत है। कुल मिलाकर देखा जाए तो करीब अढ़ाई लाख परिवार इस वर्ग से हैं।


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