हिमाचल को बंदर सताते रहे, ‘नेताजी’ टरकाते रहे

By: Nov 7th, 2017 12:15 am

वानर सेना को निर्यात करने का मसला ठंडे बस्ते में, प्राइमेट पार्क के लिए प्रदेश के किसी भी हिस्से में नहीं मिली जमीन

शिमला – चुनावी बयार में बह रहे हिमाचल को  अरसे से वानर उत्पात की समस्या से निजात नहीं मिल सकी है।  पांच वर्षों के दौरान इसके स्थायी समाधान के लिए कभी पूर्वोत्तर राज्यों को वानर भेजने की योजनाएं औंधे मुह गिरती रहीं तो कभी केंद्र को इनके निर्यात की छूट की मांग की फाइलें घूमती रही। इसी जद्दोजहद में हर साल हिमाचल में वानरों द्वारा 2200 लोगों को काट खाने की शिकायतें विभिन्न अस्पतालों व स्थानीय निकायों में पहुंचती है। मगर दावों व बड़े एलानों के बावजूद प्रदेश के लोगों, किसानों व बागबानों को कोई बड़ी राहत नहीं मिल सकी है।  विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी घोषणा पत्र में भी इस समस्या से निजात का जिक्र तो है, मगर ये होगा कैसे, इसका जवाब नहीं। राज्य सरकार की तरफ से केंद्र को इस बारे  में एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके भेजी गई थी, जिसमें प्रदेश को कृषि-बागबानी क्षेत्र में पहुंचने वाले 300 करोड़ से भी ज्यादा नुकसान का हवाला दिया गया। वहीं हर दिन विभिन्न क्षेत्रों में वानरों द्वारा लोगों को काट-खाने की भी घटनाओं का जिक्र था। इसमें स्टरलाईजेशन के आंकड़ों का भी उल्लेख किया गया था।  यही नहीं प्रदेश के किसी भी हिस्से में प्राइमेट पार्क स्थापित करने के लिए लोगों के प्रतिरोध के चलते जमीन ही उपलब्ध नहीं हो पाई। शिमला जुब्बड़हट्टी के समीप लोगों के दबाव के चलते प्राईमेट पार्क के टेंडर रद्द करने पड़े थे। शोघी व तारादेवी के समीप 3-4 एकड़ जमीन उपलब्ध नहीं हो पाई।  ऐसा ही कदम हमीरपुर, बिलासपुर, सोलन व कुछ अन्य क्षेत्रों में भी उठाया जाना था, मगर वन मुख्यालय को जो रिपोर्ट्स मिलती रही, उसमें फील्ड अधिकारियों ने कहा कि स्थानीय लोग ऐसे किसी भी पार्क के लिए तैयार नहीं है। यही वजह रही कि केंद्र सरकार से वानर निर्यात करने के लिए अनुमति मांगी गई। उसका क्या हश्र हुआ, यह अधिकारियों को भी नहीं मालूम। इससे पहले सिरमौर के सिंबलवाड़ा में भी ऐसे ही प्राइमेट प्रोजेक्ट की तैयारी थी, मगर इसकी अनुमति नहीं मिल सकी थी। केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि लंबे समय तक वानरों को इन्क्लोजर में नहीं रखा जा सकता है।

सवा तीन लाख संख्या

प्रदेश में वानरों की संख्या सवा तीन लाख आंकी गई है। अब तक डेढ़ लाख वानरों की स्टरलाइजेशन की जा चुकी है।  इतना ही नहीं, प्रदेश में स्थित नौ स्टरलाइजेशन केंद्रों में हर रोज लगभग 15 बंदरों की स्टरलाइजेशन की जा रही है। स्टरलाइजेशन के बाद वानरों में बड़ा व्यवहार परिवर्तन देखा जा रहा है। वे अब लोगों पर ज्यादा हमले कर रहे हैं।

बंदरों में आए दिन बढ़ रहा चर्म रोग

शिमला के बंदरों में चर्म रोग एक महामारी की तरह बढ़ रहा है। अंदेशा यह भी है कि यदि इसकी समय रहते रोकथाम नहीं की गई तो स्थानीय लोगों के लिए भी यह दिक्कत बन सकता है। बहरहाल   राहत मिलती नहीं दिख रहीं ।


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