211 सड़कों-14 पुलों के टेंडर को मंजूरी दे आयोग

By: Nov 26th, 2017 12:15 am

लोक निर्माण विभाग ने इलेक्शन कमीशन को भेजा मामला, ग्रामीण क्षेत्रों में होना है निर्माण

शिमला – प्रदेश में लागू आदर्श चुनाव आचार संहिता के कारण 211 सड़कों और 14 पुलों के निर्माण का काम लटका हुआ है। इनके लिए लोक निर्माण विभाग ने टेंडर करने हैं, परंतु उनके पास चुनाव आयोग की मंजूरी नहीं है। लोक निर्माण विभाग ने चुनाव आयोग से इनकी मंजूरी के लिए मामला भेजा है, ताकि विभाग टेंडर लगा सके और इन योजनाओं पर काम शुरू हो सके। जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 210 सड़कें व 11 पुलों की मंजूरी प्रदेश को मिली हुई है, वहीं सेंट्रल रोड फंड के तहत एक सड़क व तीन पुलों के निर्माण की मंजूरी मिली है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में 782.2345 करोड़ प्रदेश को मंजूर हुए हैं, वहीं  सेंट्रल रोड फंड में राज्य को 30.18 करोड़ की धनराशि मंजूर हुई है। पीएमजीएसवाई में पहले चरण में 150.67 करोड़ रूपए की राशि खर्च की जाएगी, जिसमें राज्य का शेयर मिलाकर 182.02 करोड़ रुपए में पहला चरण पूरा होगा। इसके बाद दूसरे चरण में 349.04 करोड़ की राशि खर्च की जाएगी, जिसके साथ अपग्रेडेशन पर 78.03 करोड़ खर्च होगा। पुलों के लिए इसमें 22.48 करोड़ रखा गए हैं। ये कुल राशि 782.2345 करोड़ रुपए की बनती है। पहले चरण में तैयार होने वाली सड़कों की लंबाई 296.67 किलोमीटर होगी, जबकि दूसरे चरण में 633.09 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जाएगा। 150.35 किलोमीटर सड़कों की अपग्रेडेशन की जाएगी जबकि पुलों की लंबाई 400.36 किलोमीटर की आंकी गई है। कुल 1,299.69 किलोमीटर लंबाई वाली सड़कें इस राशि में से तैयार की जाएंगी। इसमें केंद्र सरकार का शेयर 697.8634 करोड़ रुपए का होगा, जबकि हिमाचल सरकार का शेयर 84.3411 करोड़ रुपए का रहेगा। उधर, सेंट्रल रोड फंड के तहत देहरा डीवीजन की ज्वालामुखी-देहरा-जवाली-राजा का तालाब सड़क को 10 करोड़ से चौड़ा किया जाना है। जयसिंहपुर डिविजन के तहत मंड खड्ड पर आलमपुर-हरसिपत्तन रोड पर डबल लेन पुल का निर्माण 11.22 करोड़ रुपए से किया जाना है।

देरी हुई तो बढ़ जाएगी योजनाओं की लागत

चुनाव आयोग से मांगी गई अनुमति में साफ किया गया है कि सड़कों व पुलों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट केंद्रीय मंत्रालय द्वारा अपने नियमों के तहत मंजूर  की गई है। ऐसे में यदि काम शुरू होने में देरी होती है तो इससे प्रोजेक्ट की लागत बढ़ सकती है, जिससे कई दूसरी वित्तीय व प्रशासनिक दिक्कतों का सामना संबंधित विभागों को करना पड़ेगा।


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