बिलासपुर में ‘तां जे मित्रा लगदियां थी झडि़यां’

बिलासपुर – बिलासपुर प्रेस क्लब में शनिवार को आयोजित मासिक साहित्यक संगोष्ठी कवियों और साहित्यकारों की महफिल सजी। साहित्यकार रतन चंद निर्झर ने बतौर मुख्यतिथि के रूप में शिरकत की तथा सुखराम आजाद ने अध्यक्ष के रूप में संगोष्ठी में शिरकत की। इस संगोष्ठी में सबसे पहले फिल्मी दुनिया के मशहूर दिवंगत अभिनेता शशि कपूर तथा अमरीका में कार दुर्घटना में दिवंगत हुए बिलासपुर के डा. भूगोल सिंह चंदेल की स्मृति में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मंच संचालन रविंद्र कुमार भट्टा ने सर्वप्रथम कुलदीप चंदेल को पत्र वाचन के लिए आमंत्रित किया। पत्र वाचन का विषय था, आस्तित्व के संकट से जूझती भाषाएं व बोलियां। उन्होंने कहा कि बदलते परिवेश में दुनिया की कई भाषाओं व बोलियों पर संकट मंडराने लगा है। एक रिपोर्ट के अनुसार सारे विश्व में लगभग 2500 भाषाएं लुप्त हो चुकी है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी बोलियों व भाषा संरक्षित रखने में प्रयास करने चाहिए। इसके बाद प्रदीप गुप्ता ने शशि कपूर के व्यक्तित्व व फिल्मोंं के विषय पर पत्र वाचन किया। प्रदीप गुप्ता ने कहा कि शशि कपूर एक ऐसे अभिनेता थे, जो नए अभिनेताओं को प्रोत्साहित करते थे। अमिताभ बच्चन उनके प्रोत्साहन के बाद ही फिल्मी जगत के सुपर स्टार बने हैं। इस अवसर पर सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी रोशनदीन ने फक्कड़ व पिलोसर कवि दिवंगत कामरेड शमसेर सिंह के व्यक्तितत्व व कृतत्व पर प्रकाश डाला। तू छुटिटयां ते आणा कद्दू , ते  रस्तेच नैणा बछाई बैठिरू मशहूर पहाड़ी गीत शमशेर सिंह का ही लिखा हुआ है। यू ट्यूब में उनके द्वारा गाया गाया हिमा दी धारां ते लैणी गवाइंयां गोष्ठी में सुनाया गया। इस अवसर पर हुसैन अली ने रूख्शते यार की घड़ी थी, हंसती हुई रात रो पड़ी थी, ओंकार कपिल द्वारा मिंझो नी लगदा ऊण भी आउंगियां से बेला, कुलदीप चंदेल ने गया से जमाना, तां जे मित्रा लगदियां थी झडि़यां, सौण, भागों, कौ, माघ रहदें थे बरसदे, अमरनाथ धीमान ने अम्मे नी मेरिए सुपने च आईके बुरी दे यां चुकाई, जीत राम सुमन ने  बांटा रा पत्थर हंऊ, बाटा च ही गर्ड़ऊ रैंदा, आउंदे जांदे माणुए रे पैरा च नपुई रैंदा, शिव पाल गर्ग ने मुंह ते दी बोलेया, बस रेहा तीझो तकदा, इंदे्रश शर्मा ने गिरगिट की तरह रंग बदलते मेरे देश के नेता, सदन में लड़ते रहते मेरे देश के नेता, अश्वनी सुहिल ने आसमान से ज्यादा  जमीन की कदर जानता हूं, डा. जय नारायण कश्यप ने अप्पू तां लमचलमा हंउत लंबी ता डींग , छोरू व तू वां अलकडया डींग, प्रदीप गुप्ता ने अंतिम यात्रा पर जा रहे हैं, कुछ वर्षों से चित्थडों में लिपटा पड़ा रहा, अब उसे नए वस्त्र पहना रहां हूं। सुशील पुंडीर ने पंचा साला रे कमारा  जवाब होणा, 18 तरीका जो मेरा हसाब हौंणा। रविंद्र भटटा ने सोचता था, ऐसा ही रहूंगा, जैसा रहता आया हूं, सुख राम आजाद ने बात इंकार करने के बाद हौंठ सिले भी सिले तो वक्त गुजरने जाने के बाद तुम मिले भी तो क्या मिले, रतन चंद निर्झर ने रास्ते कमाई के लघु कथा सुनाने के बाद कविता प्रस्तुत  की बहुत अच्छे थे वे दिन, जब सांझे होते थे तीज त्योहर, गरीबी में जीते थे, पर अमीरों  सा होता था दिल कविता प्रस्तुत की। आखिर में संगोष्ठी में मुख्यातिथि रतन चंद निर्झर ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। यह बात आज की इस संगोष्ठी में प्रस्तुत विभिन्न रचनाओं को सुनकर सामने आई है। उन्होंंने दिवगंत कामरेड शमशेर सिंह को हिमाचल का जन कवि बताया।