मां ललिता देवी मंदिर अनदेखी का शिकार

कालाअंब – औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित उत्तरी भारत की प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता बालासुंदरी मंदिर में जहां लगातार विकास हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इस मंदिर से मात्र साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित मां ललिता देवी का मंदिर आज भी अनदेखी की मार झेल रहा है। आलम यह है कि मां ललिता का मंदिर बीते कई वर्षों से अपने विकास की बाट जोह रहा है, परंतु इस  मंदिर के अच्छे दिन आने का नाम नहीं ले रहे हैं। गौरतलब है कि त्रिपुर बालासुंदरी, त्रिपुर ललिता सुंदरी और त्रिभुवनेश्वरी को बैष्णों माता की तीन पिंडियों का स्वरूप माना जाता है और पूरे उत्तरी भारत में कहीं और इनका स्थान नहीं है। माता बालासुंदरी के मंदिर में जहां लगातार विकास हो रहा है, वहीं दूसरी ओर उनकी बहन मां ललिता के मंदिर में आज भी विकास की दरकार है। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जहां मां बालासुंदरी मंदिर में श्रद्धालुओं का साल भर तांता लगा रहता है, वहीं दूसरी ओर उनकी बहन मां ललिता के मंदिर में इक्का-दुक्का श्रद्धालु ही जाते हुए नजर आते हैं। इसका मुख्य कारण इस मंदिर तक सड़क सुविधा न होना है। इस मंदिर तक सड़क सुविधा न होने के कारण श्रद्धालु बालासुंदरी मां के दर पर ही शीश नवाकर लौट आते हैं, परंतु यदि मां ललिता देवी के मंदिर तक सड़क की सुविधा होती तो मां बालासुंदरी मंदिर में शीश नवाने पहुंचने वाला हरेक श्रद्धालु बालासुंदरी मां की बहन ललिता मां के दर्शन करने के लिए जरूर पहुंचता, जिससे इस मंदिर के विकास को भी चार चांद लग जाते। सबसे ज्यादा दिक्कत श्रद्धालुओं को गर्मी व बरसात के दिनों में झेलनी पड़ती है, क्योंकि गर्मियों में त्रिलोकपुर में जिला सिरमौर में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ती है। ऐसे में लोगों को इस साढ़े तीन किलोमीटर के फासले को पैदल तय करना बेहद मुश्किल हो जाता है और बरसात के दिनों में कच्चा रास्ता होने के चलते पूरी तरह कीचड़ में तबदील हो जाता है।  उधर, इस संबंध में जब त्रिलोकपुर पंचायत के प्रधान वीरेंद्र परमार से बात की गई तो उन्होंने कहा कि लोगों की   मलकियत जमीन होने के चलते माता के मंदिर तक सड़क नहीं बन पा रही है। उन्होंने कहा कि बावजूद इसके भी उन्होंने लोगों को समझाकर आधे रास्ते को जेसीबी मशीन लगाकर करीब 10 फुट चौड़ा कर दिया है।