मौत के पहाड़

By: Dec 12th, 2017 12:20 am

सड़क हादसों से फिर दहला प्रदेश, 15 लोगों ने गंवाई जान

हादसे.. वजह फिर वही

क्रैश बैरियर होते तो बच जाती जिंदगियां

डैहर— हिमाचल की सड़कों पर पहाड़ कब काल बन जाएं, यह कहा नहीं जा सकता। इन दरकते पहाड़ों को रोकने में भी अभी तक सरकारें नाकाम रही हैं, लेकिन गहरी खाई में जानें समाने से रोकने के लिए भी सरकारें कदम नहीं उठा रहीं। क्रैश बैरियर की कमी के कारण सोमवार को सुंदरनगर के कांगू में छह जिंदगियां मौत की आगोश में समा गई। घटना स्थल पर अस्थायी रूप से लगाए गए पैरापिट के बीच का फासला ही बारातियों के लिए मौत का द्वार बन गया। घटनास्थल पर क्रैश बैरियर लगाए गए होते, तो शायद छह जिंदगियां बच जातीं और सात घायल भी अस्पतालों में जिंदगी की जंग न लड़ रहे होते। जिस जगह बारातियों की टैम्पो ट्रैवलर लुढ़की, वहां लोक निर्माण विभाग द्वारा कंकरीट के अस्थायी पैरापिट रखे गए हैं। पैरापिट के बीच की दूरी भी करीब 20 फुट है। क्रैश बैरियर की सख्त जरूरत है, लेकिन विभाग द्वारा भी ब्लैक स्पॉट चिन्हित कर, वहीं पैरापिट लगा दिए जाते हैं। क्रैश बैरियर न होने से शादी समारोह की खुशियां चंद मिनटों में ही उम्र भर के लिए गम में तबदील हो गईं। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि यदि दुर्घटनास्थल पर समय रहते हुए स्थायी क्रैश बैरियर लगाकर लोहे की बाड़बंदी की होती, तो आज छह लोगों की बेशकीमती जानें बचाई जा सकती थीं। पीडब्ल्यूडी के एक्सईएन वीके गुलेरिया ने बताया कि सड़क पर डंगा लगाने के साथ क्रैश बैरियर लगाने हेतु बजट स्वीकृत नहीं था। विभाग द्वारा चिन्हित बलैक स्पॉटों पर ही क्रैश बैरियर लगाए जाते हैं। दुर्घटनास्थल पर भी अगामी दिनों में क्रैश बैरीयर लगाए जाएंगे। सलापड़ से लेकर सुंदरनगर के बीच की दूरी किसी मौत के सफर से कम नहीं है।

हाथ में आया गियर

मंडी — अलग-अलग हादसों से दहले हिमाचल में सोमवार को एचआरटीसी की बस बड़े हादसे का शिकार होने से बच गई। जानकारी के अनुसार कुल्लू से शिमला जा रही बस का गियर लीवर ही टूट गया। चालक की सूझबूझ से कोई हादसा तो नहीं हुआ, लेकिन पूरे मामले में एचआरटीसी प्रबंधन की पोल जरूर खुल गई। घटना के वक्त बस में करीब 40 लोग सवार थे।

पल भर में मातम में बदली खुशियां

दत्तनगर से शादी में जा रहा था परिवार

रामपुर बुशहर— दत्तनगर से जब सीतादेवी परिवार के साथ चली, तो उनके चेहरे पर इस बात की खुशी थी कि वह शादी के बहाने पैतृक घर पुजारली जा रही है। ऐसे में शादी के बहाने वह सभी नाते रिश्तेदारों से भी मिल लेगी। सीतादेवी शादी के बाद दत्तनगर में रहती है। सीता देवी पुजारली में होने वाली शादी समारोह में शरीक होने के लिए पति सीता राम और बेटे मनजीत को भी साथ ले जा रही थी, ताकि वह भी रिश्तेदारों से मिल ले। 13 वर्ष का मनजीत खुश था कि वह शादी में खूब मस्ती करेगा। पूरा परिवार हंसते-खेलते घर से निकला। इस बीच उनकी बात गुरदयाल से हुई, जिसने इसी शादी में पुजारली जाना था। सीता देवी ने गुरदयाल से कहा कि वह उसका इंतजार बजीरबावड़ी में करेगी। सीता देवी का परिवार बजीरबावड़ी उतर गया और गुरदयाल का इंतजार करने लगा। बजीरबावड़ी से वह पहाड़ बिलकुल सामने दिखता है, जो दरका। सीता देवी की नजरें इस बीच कई मर्तबा उस पहाड़ की तरफ भी जरूर गई होंगी, लेकिन उसे क्या पता था कि यह पहाड़ ही उनका काल बनेगा। गुरदयाल जैसे ही आया सीता देवी और उसका परिवार उस गाड़ी में बैठ गया। गुरदयाल की गाड़ी में पहले ही दो अन्य लोग बैठे थे। सभी गाड़ी में बैठकर निरमंड की तरफ चल दिए। बजीर बावड़ी से महज 100 मीटर ही गाड़ी आगे गई होगी कि पूरा पहाड़ खिसक गया। यह गाड़ी पहाड़ दरकने वाली जगह से थोड़ी आगे निकल चुकी ही कि चपेट में आ गई। ऐसे में सवाल यह है कि क्या चालक गुरदयाल यह नहीं भांप पाया कि पहाड़ से पत्थर गिर रहे हैं। पहाड़ी से अगर कुछ गिरता है, तो पहले पत्थर के कुछ अंश गिरते है। एकाएक बड़ा पहाड़ एक साथ नहीं गिर सकता। ऐसे में क्या गुरदयाल ने यहां से निकलने का जोखिम लिया होगा। ये तमाम सवाल उस गाड़ी के साथ ही जमींदोज हो गए।

खुशियों वाले घर पहुंची खबर

जहां कल तक शादी का शहनाइयां बज रही थीं, वहीं सोमवार को पुजारली में मातम छा गया। जैसे ही यहां यह दर्दनाक खबर पहुंची। शादी वाले घर में रोने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगीं। किसे पता था कि पूरी खुशियां पल भर में बिखर कर रह जाएंगी।


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