शिशु पालना केंद्र भरेंगे माताओं की सूनी गोद

By: Dec 4th, 2017 12:10 am

मंडी— देश भर में भ्रूण हत्या रोकने या नवजातों को कचरे के ढेर में छोड़ने जैसे अमानवीय कृत्यों को खत्म करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की पहल आने वाले समय में रंग ला सकती है। डब्ल्यूसीडी की इस पहल का नाम है ‘शिशु पालना केंद्र’। हिमाचल के मंडी जिला से शुरू हुई यह मुहिम पूरे हिमाचल में शुरू हो चुकी है। लाहुल को छोड़ दें, तो हर जिला अस्पताल में शिशु पालना केंद्रों को स्थापित कर दिया गया है। ऐसे में ये शिशु पालना केंद्र आने वाले समय में देश व प्रदेश में माताओं की सूनी गोद भरने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। जानकारी के अनुसार देश में इस समय बच्चों को गोद लेने के इच्छुक माता-पिता की संख्या तो बहुत है, लेकिन ऐसे बच्चे, जिन्हें गोद लिया जा सके, उनकी संख्या बहुत ही कम है। इन हालातों में शिशु पालना केंद्र के बारे में लोगों को जागरूक करना होगा। जोनल अस्पताल मंडी में स्थापित शिशु पालना केंद्र के बेहतर रिजल्ट इसी साल 22 जून को सामने आ चुके हैं, जब करीब एक से दो दिन की नवजात बच्ची को इस शिशु पालना केंद्र में नई जिंदगी मिली थी। हिमाचल ही नहीं, देश भर के अस्पतालों में ऐसे शिशु पालना केंद्र चलाने की योजना है। शिशु पालना केंद्र के बच्चों को कानूनी तौर पर गोद लेने के लिए सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। इसके बाद बच्चों को गोद लेने के लिए ऑनलाइन ही अप्लाई किया जाता है। राज्य स्तर पर बच्चों को गोद लेने दंपति के मामले सारा (स्टेट अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी) व केंद्र में कारा (सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथारिटी) के जरिए होता है। उधर, महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त निदेशक  आरएस गुलेरिया ने बताया कि मंडी से शुरू हुई पहले के बाद शिशु पालना केंद्र हर जिला अस्पताल में स्थापित कर दिए गए हैं। इन्हें व्यापक रूप दिया जाएगा। ये शिशु पालना केंद्र सुनी माताओं की गोद भरने में अहम भू्मिका निभा सकते हैं।

क्या है शिशु पालना केंद्र

जिला अस्पतालों में स्थापित शिशु पालना केंद्र में कोई भी अपना नवजात शिशु छोड़ सकता है। शिशु छोड़ने वाले की न कोई छानबीन की जाती है, न ही उस पर कोई केस दर्ज किया जाता है। पालने में शिशु को छोड़ने के बाद आप वहां के एक स्विच को दबा कर निकल सकते हैं। स्विच दबाते ही घंटी नर्सिंग रूम में बजती है, जहां से तुरंत एक नर्स बच्चे को उठाकर शिशु वार्ड में दाखिल करेगी। इसके बाद डाक्टर शिशु की जांच करेगा और उसके मेडिकल फिट होते ही सरकारी संस्था को सौंप दिया जाएगा।

इसलिए पड़ी इनकी जरूरत

हमारे समाज की सोच ही शिशु पालना केंद्रों की जननी है। दरअसल कभी कुछ अविवाहित जब गर्भवति हो जाती हैं और समाज के डर से जब वे बच्चे नहीं अपना पातीं, तो उन्हें कचरे के ढेरों में छोड़ दिया जाता है। ऐसे में नई मासूम जानों को बचाने के मकसद से ये शिशु पालना केंद्र शुरू किए गए हैं। इसके अलावा जो कोई परिवार बच्चा पालने की स्थिति में नहीं हैं, वह भी स्वेच्छा से अपने नवजात यहां छोड़ सकते हैं।

देश में 14 हजार कतार में

शिशु पालना केंद्र कितने कामयाब हो सकते हैं, इसका अंजादा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि देश में इस समय करीब 14000 माता-पिता बच्चे गोद लेना चाहते हैं। हालांकि करीब 600 ही बच्चे गोद लेने के लिए उपलब्ध हैं। हिमाचल में भी करीब 128 माता-पिता बच्चे गोद लेना चाहते हैं, लेकिन करीब पांच ही बच्चे उपलब्ध हैं।

यह है गोद लेने का प्रावधान

देश भर में बच्चों को गोद लेने के लिए सारा वेबसाइट के ‘केयरिंग’ नाम के लिंक से होता है। यह सब सरकारी काम है। इस पर बच्चों को गोद लेने वाले अभिभावकों को अप्लाई करना होता है। इसके बाद जब बच्चा होता है, तो लिस्ट में सबसे पहले दंपति को सूचित किया जाता है और वे इच्छुक हैं, तो उन्हें बच्चा दिया जाता है। अगर इसमें वे बच्चा लेने से मना करते हैं, तो उनका नंबर लिस्ट में सबसे नीचे चला जाता है।


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