आया वसंत, आया वसंत…

By: Jan 20th, 2018 12:08 am

वसंत पंचमी का अपना विशेष महत्त्व है। यह पर्व भारत में, बांग्लादेश में, नेपाल में, और भी कई राष्ट्रों में अपने-अपने ढंग से मनाया जाता है। हर वर्ष उत्तरायण माघ शुक्ल पंचमी को आने वाला ऋतु परिवर्तन का यह पर्व अपनी कई विशेषताओं को संजोए हुए है। हां जी, वसंत आगमन…

यह भारत भू-धरा कितनी पवित्र और पावन है, इसके लिए किसी साक्ष्य या प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। यहां हर त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हर उस दिन को याद किया जाता है, जिस दिन उसका महत्त्व होता है। हालांकि नया वर्ष, नव संवत् चैत्र नवरात्र के आरंभ से शुरू होता है, परंतु हम भारतीय हमेशा सम्मान की परिपाटी का निर्वहन करते आए हैं, इसलिए पहली जनवरी को भी नववर्ष मानकर नववर्ष की शुभकामनाएं अपने मित्रों को देते हैं। लोहड़ी, मकर संक्रांति, जनवरी मास में आने वाले अन्य त्योहारों को हम बड़ी प्रसन्नता के साथ फेसबुक और व्हाट्स ऐप पर मिठाइयां बांटकर, पतंगें उड़ाकर मनाते हैं। भले ही कोई फेसबुक मित्र हमें सामने मिल जाए और हम उसे पहचान न पाएं या फिर यह भी हो सकता है कि पहचाने भी और बात न करे या बधाई न दे, परंतु ऐसा करने पर हम असभ्य या असंस्कारी कतई नहीं माने जा सकते हैं, क्योंकि हमने फेसबुक पर ही बधाई संदेश जो प्रेषित कर दिया है और चैट की चुटकियां भी ले ली हैं। अब एक और उत्सव मनाने के लिए मेरे प्यारे देशवासी तैयार हो जाएं, इस त्योहार का अपना एक विशेष महत्त्व है। यह पर्व भारत में, बांग्लादेश में, नेपाल में, और भी कई राष्ट्रों में अपने-अपने ढंग से मनाया जाता है। हर वर्ष उत्तरायण माघ शुक्ल पंचमी को ऋतु परिवर्तन का यह पर्व अपनी कई विशेषताओं को संजोए हुए है। हां जी… वसंत आगमन।

आया वसंत पाला उड़ंत

कहते हैं सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु की आज्ञा से जब ब्रह्माजी ने मनुष्य योनी की रचना की तो उन्हें कुछ नीरसता सी प्रतीत हुई, जैसे कोई कमी रह गई है, तो उन्होंने ऋतुओं का सृजन किया। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठा, मानव तो मानव, पशु-पक्षी भी उल्लास से भर उठे, चारों तरफ सुरम्य वातावरण बन गया। मनमोहक प्राकृतिक छटा हर किसी को मंत्रमुग्ध करने लगी। वृक्षों पर नए पत्तों का आना, आम की बौरें, खेतों का सरसों के पीले फूलों से लहलहाना, भांति-भांति के फूलों का खिलना, चारों तरफ की हरियाली बरबस मन को आकर्षित करने लगती है। अतः इस दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा का भी विधान है। राधा-कृष्ण जी की भी विशेष पूजा-अर्चना इस दिन होती है। जिस प्रकार सैनिकों के लिए विजयदशमी का महत्त्व, विद्वानों के लिए ब्यास पूजा (गुरु पूर्णिमा) का महत्त्व, व्यापारियों के लिए दीपावली का महत्त्व, कारीगरों के लिए विश्वकर्मा का महत्त्व है, उसी प्रकार कवि, लेखक, गायक, वादक, नाटककार, नृत्यकार, सबके दिन का आरंभ सरस्वती पूजन से होता है और वसंत पंचमी को सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। अतः वसंत पंचमी जैसे पर्व की विशेषता की जानकारी प्रत्येक भारतीय युवा को होनी चाहिए। इतना ही नहीं, यह दिन अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी रखता है। मोहम्मद गौरी ने सत्रह बार भारत पर आक्रमण किया और सोलह बार पृथ्वीराज चौहान से हार कर क्षमादान प्राप्त करता रहा, परंतु सत्रहवीं बार पृथ्वीराज चौहान जब उससे परास्त हुए तो गौरी ने अपनी बर्बरता का परिचय देते हुए उनकी आंखें निकाल लीं और आनंद लेने के लिए चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने की कला को देखना चाहा। तभी चौहान के परममित्र चंदबरदायी ने एक कविता के माध्यम से चौहान को सचेत किया ः

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।

इसी को आधार बनाकर पृथ्वीराज चौहान ने जो शब्दभेदी बाण चलाया, वह गौरी के सीने के आर-पार हो गया। पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदायी ने एक साथ जीने-मरने की जो कसम खाई थी, उसका निर्वहन करते हुए एक-दूसरे पर खंजर चलाकर शहीद हो गए, और वह दिन था वसंत पंचमी का। वसंत पंचमी के दिन ही हिंदी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म भी हुआ था। भारत में मनाए जाने वाले हर पर्व की अपनी एक विशेषता है। समय की परिवर्तनशीलता ने भले ही व्यक्ति को जरूरत से अधिक  व्यस्त और मनमौजी बना दिया है। परंपराओं का पालन तो अब नाममात्र ही रह गया है। भले ही मातृ दिवस, पितृ दिवस, मैत्री दिवस जैसे दिन मनाए जाते हैं, भैयादूज जैसे त्योहार अब केवल औपचारिकता मात्र हैं। भाइयों के पास राखी बंधवाने का समय नहीं, तो बहनें भी राखी फेसबुक और व्हाट्सऐप पर भेजने लगी हैं और ऐसे ही शगुन का आदान-प्रदान हो जाता है। पर वसंत तो हर वर्ष आता है नियत तिथि को, पीतांबरधारी बनकर और हम भारतीय अपनी नितांत व्यस्तताओं के चलते सरसों के पीले खेतों में न जा पाएं तो फोटो गैलरी में अपनी तस्वीरें एडिट करके ही डाल देते हैं, जो हमारे प्रकृति प्रेम को दर्शाती हैं। हमारा तो हर त्योहार प्रेम, भाईचारे और सद्भावना का संदेश देता है। हमें एक-दूसरे के साथ बांधता है। नित नए परिवर्तन, नई टेक्नोलॉजी, मौसम का बदलता अंदाज, प्राकृतिक आपदाएं भी हमें डावांडोल नहीं कर पाती, बल्कि नवचेतना भरकर उत्साहित करती हैं। तभी तो कुछ बात है ऐसी कि मिटती नहीं हस्ती हमारी…।

-प्रियंवदा,  मकान नंबर 273/11,  पुराना बाजार,  सुंदरनगर,  जिला मंडी (हिमाचल प्रदेश)


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