टैक्स चोर उद्योग का भंडाफोड़

बीबीएन – टैक्स चोरी कर सरकार को करोड़ों का चूना लगा रहे बद्दी के नामी दवा उद्योग का आबकारी एवं कराधान विभाग के दक्षिणी प्रवर्तन क्षेत्र परवाणू ने भंडाफोड़ किया है। बद्दी में यह दवा उद्योग पांच साल से सरकार को करोड़ों रुपए के टैक्स का चूना लगा रहा था। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब दक्षिणी प्रवर्तन क्षेत्र की एक इंस्पेक्टर इस दवा उद्योग केजैसे ही नाम के अन्य व्यापारी की रिटर्न खंगाल रही थी। दवा उद्योग की रिटर्न खंगालने पर पता चला कि उसकी बिक्री का बड़ा हिस्सा टैक्स फ्री दिखाया जा रहा था, जबकि प्रदेश में लगभग सभी प्रकार की दवाइयों पर पांच प्रतिशत की दर से टैक्स लगता है, दवा उद्योग द्वारा कर मुक्त सामान बेचा जाना इस उद्योग को संदेह के घेरे में ले आया। यही नहीं, इस उद्योग प्रबंधन ने टैक्स चोरी के लिए सी फार्म से भी छेड़छाड़ की थी, लेकिन उसकी यह होशियारी जांच के दौरान पकड़ी गई। फिलवक्त आबकारी एवं कराधान विभाग ने दवा उद्योग को टैक्स चोरी पर पौने चार करोड़ से भी अधिक का टैक्स लगाते हुए वसूली शुरू कर दी है। उद्योगपतियों में इस टैक्स चोरी के पकड़े जाने के बाद से हड़कंप मचा हुआ है। उद्योगपति ने पांच साल में लगभग 50 करोड़ की दवाइयों पर टैक्स की चोरी कर डाली थी। टैक्स व ब्याज की कुल तीन करोड़ 85 लाख की राशि में से उद्योगपति ने 35 लाख रुपए सरकारी खजाने में जमा भी करवा दिए हैं। शेष राशि जमा करने के लिए उसे एक महीने का समय दिया गया है। जब रिटर्न खंगालते वक्त यह मामला पकड़ में आया, तो उद्योगपति ने विभागीय कार्रवाई से बचने का भरसक प्रयास किया व कई महीनों तक स्वयं को इस मामले की सुनवाई से अलग भी रखा, परंतु प्रवर्तन क्षेत्र द्वारा कड़ा रुख अपनाए जाने के बाद उद्योगपति ने मामले की सुनवाई  में भाग लेना आरंभ किया व दलील दी कि उसकी औद्योगिक इकाई में से नामी ग्रुप की दवाइयां भी बनाई जाती हैं, जो पूर्णतय कर मुक्त हैं। जब उद्योगपति से उन दवाइयों को कर मुक्त घोषित करने की अधिसूचना प्रस्तुत करने को कहा, तो उद्योगपति ने कुछ समय बाद अपनी पुरानी दलील पलटते हुए बताया कि वे दवाइयां कर मुक्त नहीं हैं और इन्हें एक प्रतिशत कर की दर से प्रदेश के बाहर बेचा गया है। विभागीय जांच में उद्योगपति की यह दलील भी पूरी तरह से गलत साबित हुई है, क्योंकि न तो उसने एक प्रतिशत की दर से उक्त बिक्री पर पिछले सालों मैं टैक्स जमा किया था व न ही सामान प्रदेश से बाहर ले जाते समय बैरियर पर इसकी कोई घोषणा की थी। विभाग के अधिकारियों ने उद्योगपति से ‘सी’ फॉर्म की मांग की, ताकि यह साबित हो सके कि दवाइयां सचमुच में ही अंतरराज्यीय व्यापार द्वारा प्रदेश के बाहर बेची गई हैं या नहीं। इस उद्योग के उत्पादन का आधे से अधिक हिस्सा वास्तव ही में ‘सी’ फार्म के द्वारा अंतरराज्यीय व्यापार के तहत प्रदेश के बाहर बेचा जाता था। अधिकारियों ने बताया कि उनके द्वारा ऐसी टर्नओवर को नहीं छेड़ा गया और विभागीय कार्रवाई केवल कर मुक्त दर्शाई गई दवाइयों के टर्नओवर  तक  ही सीमित  रहीं। उद्योगपति द्वारा ‘सी’ फार्मों की मौलिक राशि से की गई  छेडछाड़ या हेराफेरी आसानी से पकड़ में आ गई, लेकिन आबकारी एवं कराधान विभाग के अधिकारियों ने पुष्टि के लिए चुनिंदा सी फार्म की फोरेंसिक प्रयोगशाला जुन्गा में जांच करवाई और जांच में स्पष्ट हो गया कि उद्योगपति ने ‘सी’ फॉर्मों पर अंकित मौलिक राशि में भारी परिवर्तन किए थे। किसी ‘सी’ फार्म में दस लाख, बीस लाख, तीस लाख, तो किसी में चालीस-पचास लाख तक जोड़ दिए गए थे, ताकि प्रदेश के खजाने को टैक्स चोरी से चूना लगाया जा सके। दो फार्मों पर तो सत्तर-सत्तर लाख रुपए तक की राशि बढ़ाई गई थी। विभाग के दक्षिणी प्रवर्तन क्षेत्र परवाणू के अधिकािरयों ने जब उद्योगपति का सामना इन तथ्यों से करवाया, तो उसने  तुरंत अपनी गलती स्वीकारते हुए सारा टैक्स अदा करने की हामी भर दी।

इंस्पेक्टर रीमा को उपलब्धि के लिए सर्टिफिकेट

यह मामला खोजने में इंस्पेक्टर रीमा सूद ने अहम भूमिका निभाई है व उसे इस उत्कृष्ट कार्य के लिए  प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया गया है। आबकारी एवं कराधान अधिकारी, डा. अमित शोष्टा, इंस्पेक्टर रूपिंदर सिंह, दीपचंद शर्मा, कुलदीप शर्मा, शशिकांत व मनोज सचदेवा ने भी टैक्स चोरी के इस बड़े मामले का भंडाफोड करने में अहम भूमिका निभाई। दक्षिणी प्रवर्तन क्षेत्र परवाणू के उप आबकारी एवं कराधान आयुक्त डा. सुनील कुमार ने खबर की पुष्टि की है।  उद्योग से संबंधित मामला अभी शुरू किया गया है और इस प्रकार की हेराफेरी करने के लिए उद्योगपति को पांच करोड़ तक का अलग से जुर्माना भी लगाया जा सकता है।