दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर क्यों भरता है

हिंदू विवाह पद्धति में कुछ परंपराएं ऐसी होती हैं, जिनका निर्वाह शादी में नहीं किया जाए तो शादी पूरी नहीं मानी जाती है। जैसे मंगलसूत्र पहनाना, मांग में सिंदूर भरना, बिछिया पहनाना आदि। रस्मों का निर्वाह शादी में तो किया ही जाता है साथ ही इन सभी चीजों को सुहागिन के सुहाग का प्रतीक माना जाता है। इसलिए हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार इन्हें सुहागनों का अनिवार्य शृंगार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन शृंगारों के बिना सुहागिन स्त्री को नहीं रहना चाहिए। किसी भी सुहागिन स्त्री के लिए मांग में सिंदूर भरना अनिवार्य परंपरा मानी गई है। यह सिंदूर केवल सौभाग्य का ही सूचक नहीं है, इसके पीछे जो वैज्ञानिक धारणा है वह यह है कि माथे और मस्तिष्क के चक्रों को सक्रिय बनाए रखा जाए, जिससे कि न केवल मानसिक शांति बनी रहे बल्कि सामंजस्य की भावना भी बनी रहे। अतः शादी में मांग भरने की रस्म इसलिए निभाई जाती है ताकि वैवाहिक जीवन में हमेशा प्रेम व सामंजस्य बना रहे। सिंदूर हमारी संस्कृति का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है। कहते हैं कि जब तक एक शादीशुदा लड़की की मांग में सिंदूर न हो, वह कितना भी सज-संवर ले, अच्छी नहीं लगती, लेकिन सिंदूर की सबसे खास बात यह है कि सिंदूर में बहुत सारे औषधीय तत्त्व जैसे हल्दी, चूना, कुछ धातु और पारा होते हैं। पारा शरीर को ठंडक पहुंचाने में मदद करता है। इससे शरीर को आराम भी मिलता है।  सिंदूर को विधवा और कुंवारी कन्याओं को लगाने से मना किया जाता है। ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्मस्थान के ठीक ऊपर स्त्रियां सिंदूर लगाती हैं जिसे सामान्य भाषा में सीमन्त अथवा मांग कहते हैं। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का यह भाग अपेक्षाकृत कोमल होता है। चूंकि सिंदूर में पारा जैसी धातु अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है, जो स्त्रियों के शरीर की विद्युतीय ऊर्जा को नियंत्रित करती है तथा मर्मस्थल को बाहरी दुष्प्रभावों से भी बचाती है। अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी स्त्रियों को सिंदूर लगाना आवश्यक है।