बच्चों ने भगाया ‘राक्षस’

By: Jan 11th, 2018 12:10 am

कुल्लू  – कुल्लू रंग मेला की दूसरी संध्या पर एक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन कुल्लू के बाल कलाकारों ने प्रख्यात नाटककार डा. शंकर शेश द्वारा लिखित नाटक ‘राक्षस’ का शानदार मंचन किया। संस्था द्वारा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से तथा भाषा एवं संस्कृति विभाग कुल्लू के संयुक्त तत्त्वावधान में किए जा रहे इस नाट्योत्सव की दूसरी संध्या में जाने माने रंगकर्मी शेरू बाबा बतौर मुख्यातिथि उपस्थित रहे। उन्होंने बच्चों की प्रतिभा की सराहना की। केहर सिंह ठाकुर द्वारा निर्देशित यह नाटक इनसान के अपने भीतर, अपने ही भयों, अपने ही निर्णयों से उपजे राक्षस के बारे में प्रतीकात्मक रूप से कहता है। नाटक कहता है जब हम स्वार्थ, स्वहित, स्वसुख तथा मतलब का मंत्र अलापने लगते हैं तो राक्षस हमारे भीतर अमूर्त रूप से अनुभव में आकार लेने लगता है। वह राक्षस इनसानी आत्मा को जमा देता है और उस इनसान को सभी संवेदनाओं से मुक्त करके केवल एक यंत्र बना देता है।  नाटक आरंभ होता है एक मंडली से जो नाटक मंचन कर रही है और नाटक  का मुखिया उसी नाटक में एक ऐसे गांव की कहानी सुनाता है जो स्वार्थी है, केवल अपने ही बारे में सोचता है, उस गांव की प्रगति की चाल बहुत ही धीमी है। उस गांव के लोग सामने आते हुए खतरे को देख कर भी अनदेखा करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में राक्षस उस गांव की ओर बढ़ता जाता है। यह राक्षस वही है जो हर इनसान के भीतर ही पनपता है। लेखक ने बहुत ही सुंदरता से इनसानी जागरूकताओं को बांटा है। इस प्रकार अखबार बेचने वाले बोलते हैं कि सबसे पहला हमला राक्षस का जागृतिनगर पर होता है। जागृतिनगर के बाद राक्षस का हमला विश्वासनगर पर होता है, विश्वासनगर का हर बच्चा, हर औरत डट कर लड़ते हैं लेकिन हार जाते हैं क्योंकि हमारे भीतर के राक्षस का कद अब बहुत बड़ा हो गया है। इस प्रकार श्रद्धानगर, करुणानगर जैसे गांव भी राक्षस तहस-नहस कर देता है। फिर हार कर डर से उस गांव के लोग राक्षस के साथ समझौता करने लगते हैं। उस गांव में एक ही जागरूक व्यक्ति है, जो कहता है कि समझौता मत करो। आज अगर आप लोगों ने समझौता कर लिया तो सदियों तक राक्षस से लड़ने की स्थिति में नहीं रहोंगे। हर समझौता हमें बौना और नपुंसक बनाता जाएगा, लेकिन वे सब मिलकर उसे गांव से बाहर फेंक देते हैं और राक्षस के साथ यह समझौता करते हैं कि हर दिन गांव से एक आदमी राक्षस के पास भेजा जाएगा। सबसे पहले उस जागरूक व्यक्ति को भेज देते हैं। लेकिन अंततः जब गांव के हर बड़े आदमी पर राक्षस के डर का पर्दा पड़ता है तो एक जागरूक स्त्री गांव के बच्चों को राक्षस के खिलाफ  तैयार करती है और अंततः बच्चों के अपने विश्वास से राक्षस का अंत करवा देती है। वह उस राक्षस के नुमाइंदों को कहती है कि देखो इन बच्चों के हाथों में सर्जना की खुजलाहट है। वे आ रहे हैं इसी ओर अपने नन्हे हाथों में कुदाली, फाबड़े, पाने, पेंचकस, मशीन का पहिया और माइक्रोस्कोप लिए हुए। उनकी सांसों में शताब्दियों से बनी जड़ता की बर्फ  को पिघला देने वाली गर्मी है। उनकी निगाह में राक्षस का डर नहीं है, बल्कि उनकी आवाजों में नया आह्वान है। नाटक में विपुल, अवंतिका, ममता, पिंकी, सपना, अक्षय, सूरज, प्रोमिला, प्रीति, अभय, रिलेक्षी, खेम राज, नरेंद्र आदि 15 बच्चों ने अपने अभिनय से दर्शकों का अचंभित कर दिया। पार्श्व संगीत में ढोलक पर निखिल रहे, जबकि आलोक प्रबंध व सहायक निर्देशन आरती ठाकुर का रहा। सेट, मेकअप तथा वस्त्र परिकल्पना मीनाक्षी की रही।


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