रामपुर बुशहर में पाजा के पत्तों से होती है देवी-देवताओं की पूजा

By: Jan 15th, 2018 12:15 am

माघा साजा में ग्रामीण आज भी निभाते हैं प्राचीन परंपरा, दुर्लभ पेड़ की पत्तियों के धूप का होता है इस्तेमाल

रामपुर बुशहर – आज के दौर में भले ही आधुनिकता हावी हो, लेकिन मकर संक्रांति पर आयोजित माघा साजा को ग्रामीण आज भी पारंपरिक तरीके से धूमधाम से मनाते हैं। प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करने के लिए लोगों का जोश अभी भी बरकरार है। भले ही बाजार में तरह-तरह के खुशबू वाले धूप व अगरबत्तियां उपलब्ध हों, लेकिन आज भी रामपुर उपमंडल के विभिन्न इलाकों में जंगल में उगने वाले दुर्लभ पेड़ पाजा के पत्तों को इस माघा साजा में देवी-देवताओं के पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग ढोल-नगाड़े के साथ पाजा को घर लाते हैं। इस पाजा के पेड़ की पत्तियां लाने के लिए लोग दूर-दूर जाते हैं। बता दें कि माघा साजा को करीब एक माह तक ग्रामीण लोग सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वर्ग प्रवास पर गए देवी-देवताओं को श्रद्धा स्वरूप धूप के रूप में दुर्लभ वृक्ष पाजा की पत्तियां छोड़ते हैं। इस धूप को छोड़ने की एक विशेष प्रक्रिया है, जिसे आज भी लोग पारंपरिक तरीके से पूरा कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्रामीण एक धूढ़च में आग के अंगारे लेते हैं, उस पर धूप के तौर पर पाजा इस्तेमाल किया जाता है। पाजे को ग्रामीण स्तर पर देवी-देवताओं की पूजा के लिए काफी पवित्र माना गया है। यह प्रथा वर्षों से चली आ रही है। गौर हो कि देवी-देवताओं को एक माह तक तड़के धूप दिया जाता है। मान्यता यह है कि सुबह होने से पहले इस पूजा का क्रम पूरा हो जाना चाहिए। लोग पाजे को ही इस त्योहार में पूजा-अर्चना के लिए अहमियत देते हैं। लोग सुबह चार बजे उठते हैं और उसके पश्चात पकवान बनाने का दौर चलता है। रात खुलने से पहले अपने ईष्ट देवी-देवताओं की पूजा कर स्वर्ण प्रवास के लिए विदाई की जाती है। माघ साजा के दिन देवी-देवता एक माह के स्वर्ग प्रवास पर चले जाते हैं। ईष्ट देवताआें की विदाई के बाद लोग अपने रिश्तेदारों में पकवान बांटते हैं और बच्चे अपने बुजुर्गों को पाजा के पत्ते भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उस दिन से हर सुबह हर परिवार का एक सदस्य सुबह चार बजे उठकर देवी-देवताओं का घर के बाहर पूजन करता है। इस दौरान कोई भी धार्मिक कार्य नहीं होते, न ही क्षेत्र में कोई समारोह आयोजित किया जाता है। लोगों की मान्यता है कि जब तक देवता स्वर्ग प्रवास पर हैं, तब तक वे किसी भी शुभ कार्य को अंजाम नहीं देते। केवल सुबह तड़के उठकर देवी-देवताओं को पाजा की पत्तियों का धूप देकर सुख-शांति की कामना करते हैं। बहरहाल, आधुनिकता के इस युग में भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग दुर्लभ वृक्ष पाजा की पत्तियों का माघा साजा में पारंपरिक तरीके से अपने घरों में धूप के रूप में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं।


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