रूठे बादल तड़पती धरा

By: Jan 22nd, 2018 12:05 am

हिमाचल प्रदेश सूखे की कगार पर है। राज्य में बारिश 49 फीसदी कम हुई है। प्रदेश के खेत-खलिहान जहां सूखे की चपेट में हैं, जिससे आने वाले समय में लोगों के हलक सूखने की नौबत आ सकती है। जल्दी ही मौसम ने करवट नहीं ली और बर्फबारी के साथ झमाझम बारिश नहीं हुई,तो इस साल भयंकर परेशानी उठानी पड़ सकती है…

हिमाचल में ड्राई स्पैल के चलते किसानों-बागबानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। गेहूं की दस फीसदी फसल अभी तक प्रभावित हो चुकी है। इसके अलावा बागबान भी अभी तक बागीचों में प्रूनिंग ही कर पाए हैं। अधिकतर क्षेत्रों में पौधों के तौलिए बनाने और नई पौध लगाने के लिए गड्ढों का कार्य लटका हुआ है। इन कार्यों के लिए बागबान  बारिश व बर्फबारी का इंतजार कर रहे हैं।  बारिश नहीं होने के कारण बागीचों में नए पौधे लगाने का समय भी निकलने लगा है। या यूं कहें कि इस मर्तबा 15 से 20 दिन का समय निकल गया है। किसान और बागबानों की चिंता तो जायज है, लेकिन आने वाले समय में पेयजल योजनाओं से पानी की भी किल्लत साफ दिखाई दे रही है। शिमला समेत कई क्षेत्रों में पानी का संकट जहां अभी से खड़ा हो चुका है, वहीं बिजली उत्पादन भी इस साल बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। बिजली उत्पादन प्रभावित होने से जहां राज्य सरकार को करोड़ों  का नुकसान होगा,ऊपर से बिजली बोर्ड की वित्तीय स्थिति भी खराब होगी। यहीं नहीं, निजी परियोजनाओं को भी संकट झेलना पड़ सकता है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जितनी बर्फ चाहिए,उतनी नहीं है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान बढ़ने लगा है जिससे ग्लेशियर अभी से पिघलने शुरू हो गए हैं,ऐसे में गर्मियों में पेश आने वाली स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। मौसम की यह बेरुखी आने वाले समय में प्रदेश सरकार और यहां के लोगों की कड़ी परीक्षा लेने वाली है। प्रदेश में पेयजल सप्लाई की बात करें तो सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग के पास  45 पेयजल आपूर्ति परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं,जहां नियमित परीक्षण किए जाते हैं। विभाग ने प्रदेश के सभी जल भंडारण टैंकों की सफाई का कार्य पूर्ण कर लिया है। सभी उपायुक्तों को उपमंडल स्तर पर पानी की गुणवत्ता की समय-समय पर जांच सुनिश्चित करवाने के निर्देश दिए गए हैं। सभी जिलों को पेयजल स्रोतों को दूषित होने से बचाने के लिए उपाय करने तथा पीलिया जैसी जलजनित बीमारियों से बचाव के लिए सुपर क्लोरिनेशन प्रक्रिया आरंभ करने के निर्देश दिए हैं।   पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी के टैंकों तथा पशुओं के चारे के लिए आवश्यक प्रबंध करने के निर्देश सरकार ने दिए हैं। फिर भी स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो आने वाले दो सप्ताह में खेतों की नमी के स्तर पर प्रभाव पड़ सकता है।

बारिश से बड़ी राहत के आसार नहीं

मौसम विभाग ने उम्मीद जताई है कि प्रदेश में 23 जनवरी को पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होगा। हालांकि इसके भी ज्यादा प्रभावशाली रहने की उम्मीद नहीं है, परंतु कुछ राहत प्रदेश को मिल सकती है। यदि नॉर्थ अटलांटिक में हवाओं का रुख तेज होता है तो पश्चिमी विक्षोभ प्रभाव दिखाएगा लेकिन यदि वहां इसका असर ज्यादा नहीं रहा तो यहां कुछ स्थानों पर हल्की बारिश होगी और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही बर्फबारी हो सकती है। मौसम विभाग ने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया है, जिससे यहां कई साल बाद के मौसम का पता चल सके। मात्र एक सप्ताह के फोरकॉस्ट की ही स्टडी हो पाती है। प्रदेश में मौसम विभाग का इतना बड़ा स्ट्रक्चर नहीं है, जिसे डिवेलप किया जा रहा है। विभाग के निदेशक मनमोहन सिंह के अनुसार अगले सप्ताह पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो सकता है,लेकिन यह कितना प्रभावशाली होगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।

सरकार ने प्लान बनाने के दिए निर्देश

सरकार ने आने वाले दिनों में होने वाले संकट से निपटने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। भविष्य की चिंता को देखते हुए यहां अफसरशाही ने मंथन किया। सभी जिलों में वर्षा आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है तथा पाया गया है कि प्रदेश में वर्षा ऋतु के बाद वर्षा में 49 प्रतिशत की कमी है। सूखा आकस्मिक योजना तैयार करने व इसका जायजा लेने के निर्देश सरकार ने दिए हैं। सभी क्षेत्र पदाधिकारियों को सूखे जैसी स्थितियों से निपटने के लिए आकस्मिक योजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।

बदलते मौसम पर हो रहे शोध

मौसमी बदलाव का कृषि पर अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों तरह का प्रभाव पड़ता है । लंबे समय से इस तरह के रुझान देखने में आए हैं । इस विषय पर अनेक शोध हुए हैं ,जिनमें डिस्ट्रिक्ट लेवल कंटिजेंसी प्लान फॉर वैदर एब्रेशन-इन हिमाचल प्रदेश , एग्रोक्लाइमेटिक एटलस ऑफ हिमाचल प्रदेश, इंपेक्ट ऑफ एलनीनो ऑन रेन फॉल एंड क्रॉप प्रोडक्टिविटी, एग्रो मटीरियोलॅजी ऑफ वीट एंड रेपसीड-मस्टर्ड  शामिल हैं।  कृषि विवि पालमपुर के मौसम विभाग के वैज्ञानिक डा. राजेंद्र प्रसाद के अनुसार इस विश्वविद्यालय ने अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के  वित्त सहयोग से डिस्ट्रिक्ट लेवल कंटिजेंसी प्लान फॉर वैदर एब्रेशन इन हिमाचल प्रदेश का प्रकाशन वर्ष 2013 में किया था, जिसे इस वर्ष विश्वविद्यालय द्वारा अपडेट किया जा रहा है । इस प्रकाशन में विभिन्न मौसमी परिस्थितियों से कैसे, निपटें का पूरा ब्यौरा दिया गया है ।  परंतु अभी तक भी मौसम से समग्र रूप से निपटने के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है ।

लो चिलिंग किस्मों के सेब लगाएं बागबान

बागबान इन दिनों सेब में लो चिलिंग आवर्स की समस्या का सामना कर रहे हैं। नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डा. जेएन शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय उन फसलोें को बढ़ावा दे रहा है, जो मौसम में अधिक उपयुक्त है, लो चिलिंग आवर्स की समस्या से निपटने के लिए विश्वविद्यालय किसानोें को लो चिलिंग किस्मों को लगाने के सुझाव दे रहा है। ये किस्में उन जगहों में लगाई जा सकती हैं,जहां किसान मौसम की वजह से सेब की कई किस्मों की खेती नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालय उच्च घनत्व पौधारोपण को भी बढ़ावा दे रहा है।

कीवी-अनार को दें तवज्जे

नौणी विवि के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख एसके भारद्वाज ने बताया कि किसानों को लो चिलिंग आवर्ज की समस्या से निपटने के लिए अनुकूली रणनीतियां अपनाने की जरूरत है। विश्वविद्यालय फसल विविधीकरण का प्रचार कर रहा है। किसानों को फलों की किस्म स्तर पर भी विविधीकरण करना चाहिए, ताकि बदलते मौसम का सामना किया जा सके। इसलिए एक ही क्षेत्र में फसल की विभिन्न किस्मों को लगाया जा सकता है।  मौसम आधारित पूर्वानुमान कृषि सलाहकार का उपयोग करना चाहिए और तदानुसार उनकी खेती गतिविधियों की योजना बनानी चाहिए। रूटिंग सीजन के दौरान पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वर्षा जल संचयन का भी पालन किया जाना चाहिए। पोलिथीन मल्चिंग तकनीक के जरिए मिट्टी में नमी को संरक्षित करने में मदद मिलेगी । विश्वविद्यालय ऐसे क्षेत्रों में अनार, कीवी जैसे अन्य फसलों को लगाने के किसानों को प्रेरित कर रहा है।

अच्छी पैदावार की आस कम

ओच्छघाट पंचायत के किसान किशन लाल ने कहा कि जनवरी का महीना भी आधा गुजर चुका है, लेकिन बारिश का अभी दूर-दूर तक कोई पता नहीं है, जिस कारण फसलों का नुकसान हो रहा है व अच्छी पैदावार की आस नहीं है।

चार हजार करोड़ की बागबानी पर संकट

राज्य में बारिश नहीं होने के कारण जहां खेतों की नमी गायब हो चुकी है, वहीं बर्फबारी नहीं होने से सेब की फसल संकट में है। सेब के चिलिंग ऑवर्स पूरे नहीं हुए हैं,जिस कारण पौधों में विभिन्न तरह की बीमारियां लगने का खतरा है। इससे राज्य की चार हजार करोड़ की सेब आर्थिकी पर संकट पैदा होने लगा है।

2007-2009 में भी अप्रैल में टूटा था ड्राई स्पैल

मौसम विभाग की मानें तो वर्ष 2007 व 2009 में भी इसी तरह का ड्राई स्पैल जनवरी महीने में रहा था। तब भी यहां पर्याप्त बर्फ नहीं पड़ी थी और बारिश भी नहीं हुई। परंतु बाद में अप्रैल महीने में यह स्पैल टूट गया और यहां पर स्थिति सामान्य हो गई। इस दफा भी मौसम विभाग ऐसी ही उम्मीदें लगाए बैठा है।

बिना बर्फबारी पर्यटन कारोबार चौपट

शिमला व कुछ दूसरे पर्यटन क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं होने के कारण पर्यटन कारोबार चौपट हो चुका है क्योंकि पर्यटन कारोबार भी मौसम पर ही निर्भर करता है। विंटर सीजन में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक केवल बर्फ देखने के लिए पहुंचते हैं,लेकिन अभी तक यहां बर्फबारी नहीं हुई, जिस कारण टूरिस्ट भी नहीं आ रहे। पहाड़ी राज्य में विंटर टूरिस्ट सीजन सबसे महत्त्वपूर्ण रहता है परंतु ड्राई स्पैल की मार इस बार कारोबार पर खूब पड़ रही है।

नई सरकार के सामने चुनौती

राज्य में नई सरकार के सामने मौसम की यह बदमिजाजी अहम चुनौती है। अभी सरकार का गठन हुआ है,जो कि प्रदेश के कर्जे को देखकर परेशान है, इस पर पैसा कहां से आए। सरकार यही सोचने में लगी है,उस पर सूखे की संभावित मार उसके सामने चैलेंज है। खुद आईपीएच मंत्री इसे बड़ा चैलेंज बता चुके हैं। इन परिस्थितियों में यह मौसम सरकार की भी परीक्षा लेने जा रहा है। इसके लिए अभी से सोच विचार शुरू हो गया है, लेकिन किया क्या जाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस सिलसिले में अधिकारियों से चर्चा भी की है।

गेहूं की 10 फीसदी फसल को नुकसान

मौजूदा समय में बारिश नहीं होने के कारण प्रदेश में रबी मौमस की गेहूं की 10 फीसदी फसल को नुकसान हो चुका है। प्रदेश के कृषि महकमे ने इसकी रिपोर्ट फील्ड से मांगी है। इसके अलावा जौ,लहसुन, प्याज, मटर, सरसों, आलू, टमाटर व मूली की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ा है। सेब, बादाम, अनार, नाशपाती की फसल पर भी सूखे की मार पड़ने लगी है। ये फसलें लगभग 40 से 50 फीसदी प्रभावित हो रही हैं। कहां-कहां पर कितना नुकसान हुआ ह,ै इसका आकलन जल्दी लगाया जाएगा, उसके बाद सरकार तय करेगी कि किसानों को इस पर कितनी राहत देनी है। इतना ही नहीं, माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में फसलों को और नुकसान हो सकता है।

80 फीसदी खेती बारिश पर निर्भर

कृषि विभाग भी आसमान की ओर नजर गड़ाए हुए है क्योंकि प्रदेश में मात्र 20 फीसदी क्षेत्रफल ऐसा है, जिसे सिंचित किया जाता है। इसके विपरीत 80 फीसदी कृषि क्षेत्र बारिश पर ही निर्भर करता है और किसान पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करते हैं। किसानों को बेसब्री के साथ अब बारिश का इंतजार है।

…तो पानी के लिए मचेगा कोहराम

ड्राई स्पैल के चलते भविष्य में पानी के लिए हाहाकार मचना तय है। राजधानी शिमला में इन दिनों में पानी की राशनिंग शुरू हो गई है क्योंकि यहां के पेयजल स्रोतों में पानी की कमी होने लगी है। नदियां व नाले सूखने शुरू हो चुके हैं और प्रदेश का पेयजल सिस्टम पूरी तरह से उन्हीं पर निर्भर करता है। यदि पहाड़ों पर बर्फ नहीं गिरती है तो यहां पानी का संकट खड़ा हो जाएगा। राज्य में 8411 पेयजल योजनाएं हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति को सुनिश्चित बना रही हैं। 1559 पेयजल आपूर्ति योजनाओं पर काम किया जा रहा है। इसके अलावा 264 ट्यबवेल पानी पहुंचा रहे हैं। वहीं ग्रेविटी की 6588 स्कीमें अलग से हैं, जिनसे गांवों में पानी पहुंचाया जा रहा है।

100 दिन का टारगेट,पर मुश्किल भी बड़ी

आईपीएच विभाग ने अपने 100 दिन के टारगेट में सूखे को सबसे ऊपर रखा है,जो कि उसके सामने बड़े चैलेंज के रूप में आने जा रहा है। यहां लोगों को पानी कैसे पहुंचाया जाएगा, इसकी व्यवस्था के लिए कहा गया है। परंतु यदि बड़ी मात्रा में सूखा पड़ता है तो उसके भी हाथ-पांव फूल जाएंगे यह तय है।

पानी नहीं तो बिजली नहीं

प्रदेश सरकार की आर्थिकी का एक मुख्य भाग बिजली से मिलता है। बिना पानी के यहां पर बिजली के उत्पादन पर संकट खड़ा हो जाएगा।  इससे जहां सरकार को पैसा नहीं आएगा ,वहीं बिजली बोर्ड व निजी परियोजनाएं भी मुश्किल में पड़ सकती हैं। नदियों में जिस तरह से पानी की कमी हो रही है, उससे अभी ही उत्पादन वैसे ही 40 फीसदी का रह गया है, जो कि आने वाले दिनों में बढ़ेगा ही नहीं बल्कि ड्राई स्पैल के चलते न्यूनतम स्तर पर रहेगा। बिजली का उत्पादन नहीं होता है तो लोगों को बिजली के कट झेलने पड़ सकते हैं, वहीं उद्योगों को भी बिजली नहीं मिलेगी। इसका प्रभाव मैदानी राज्यों पर भी रहेगा क्योंकि गर्मियों में हिमाचल ही उनकी बिजली की जरूरत पूरी करता है।

टैंकरों की व्यवस्था की तैयारी

सरकार के आईपीएच महकमे ने सभी जोन के अधिकारियों को रोजाना की रिपोर्ट देने को कहा है। पेयजल योजनाओं की स्थिति क्या है और उनमें कितनी पानी की कमी हो रही है, इस पर निर्देश दिए गए हैं। अधिकारी फील्ड से यह रिपोर्ट लेकर मुख्यालय को भेजेंगे। जहां पर भी  सूखे की मार अधिक लगेगी वहां पर पहले से पानी के टैंकरों की व्यवस्था करने को आईपीएच मंत्री ने कहा है। इससे पहले भी विभाग पेयजल टैंकरों की व्यवस्था करता है। राज्य में सबसे अधिक सूखाग्रस्त इलाके हमीरपुर, ऊना, और कांगड़ा जिला में रहते हैं, जहां पर पेयजल योजनाओं से पानी नहीं आता। यहां पर टैंकरों की व्यवस्था कर लोगों को पीने का पानी उपलब्ध करवाने के लिए इंतजाम करने को कहा गया है।  इस साल सूखे की संभावना को ध्यान में रखते हुए पहले से सरकार तैयारियों में जुट गई है। अधिकारियों के स्तर पर बैठकें कर स्थिति का जायजा लिया जा रहा है।

एक हजार से ज्यादा हैंडपंप बंद, इतने ही खराब

विभाग ने पूरे प्रदेश में 30978 हैंडपंप भी लगाए हैं, जिनसे लोग पानी पी रहे हैं। विभाग के मुताबिक पिछले सालों में एक हजार से अधिक हैंडपंपों का पानी गंदा निकला है,जिन्हें बंद कर दिया गया है। वहीं इतनी ही संख्या में हैंडपंप खराब भी हो चुके हैं। खराब पड़े हैंडपंपों को सरकार ने ठीक करने के निर्देश दिए हैं,ताकि पेयजल संकट के समय इनसे कुछ राहत मिले। इस पर आईपीएच विभाग ने भी रिपोर्ट मांगी है। साथ ही पेयजल योजनाओं की स्थिति का आकलन रोजाना किया जाएगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App