सौंदर्य का पर्याय है कालाटोप

हिमाचल प्रदेश धर्म और संस्कृति का मनोहरी संगम है। राज्य में बने धार्मिक स्थल तो देखते ही बनते हैं। मंदिरों में गूंजती घंटियों के स्वर जहां माहौल को आध्यात्मिक बनाते हैं, वहीं यहां की ऊंची-ऊंची हिमाच्छादित पर्वत शृंखलाएं देवभूमि के प्राकृतिक सौंदर्य को अपनी पूरी जीवंतता के साथ परिलक्षित करती हैं। यूं तो राज्य में देखने के लिए अनेकों पर्यटन स्थल हैं, लेकिन सुरमयी वादियों के बीच स्थित ‘कालाटोप’ पर्यटन स्थल तो किसी जन्नत से कम नहीं है। चंबा जनपद के डलहौजी व खजियार के मध्य स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और दुलर्भ वन्य प्राणी प्रजातियों का शरण्यस्थल ‘कालाटोप’  प्रत्येक आगंतुक का प्रथम दृष्टि में ही मन मोह लेता है। डलहौजी से मात्र 9 किमी की दूरी पर स्थित वन्य प्राणियों की सैरगाहों में से एक है। ‘कालाटोप’ के जंगल में स्वच्छंद आकर्षण का केंद बिंदु है प्रकृति।  प्रेमी पर्यटकों के और जीवन के विविध रंगों को देखने और महसूस करने के लिहाज से उतनी ही रोचक है। प्राणियों को बचाने के इरादे से हिमाचल प्रदेश ने कई वन क्षेत्रों को अभयारण्य तथा वन्यप्राणी उद्यान घोषित किए हुए हैं, जोकि एक सराहनीय कार्य है। कालाटोप भी उसी कड़ी में आता है। इस शरण्यस्थल में अत्यंत सुंदर एवं दुर्लभ प्रजातियों के कलरव करते बहुरंगी पक्षी एवं विचरण करते वन्य प्राणी जैसे नील खखरोला, कोकलास कोलसा, कालीज जंगली मुर्गा, तेंदुआ, काला भालू खरगोश घरेलू-कक्कड़ व सांबर इत्यादि यहां पर विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। रात्रि के समय इस जंगल में जानवरों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। इस क्षेत्र में प्रकृति व इतिहास का अनूठा संगम देखने को मिलता है। घने देवदार विशालकाय दरख्तों व अन्य पेड़ -पौधों से घिरा यह स्थन सैलानियों का मन मोह लेता है। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में मौजूद वन विभाग का विश्राम गृह, जोकि सन् 1925 में बना है में ठहरना तल से 2440 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, में ठहरना एक रोमांटिंक अनुभूमि करवाता है।  ‘कालाटोप’ की शोभा भी अपने आप में निराली है। मंद-मंद बहती समीर के ठंडे झोंके और पेड़ों पर चहचहाते पक्षियों का कलरव ऐसा खूबसूरत मंजर पेश करते हैं कि पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। जनवरी माह के मौसम में ‘कालाटोप’ के डेनकुंड में जब बर्फ पड़ती है, तो उसके नजारे देखते ही बनते हैं। इस सैरगाह में देशी-विदेशी पर्यटकों के अलावा प्रकृति प्रेमियों व छायाकारों को जहां सदैव आकर्षित करता है, वहीं एकांत का सुकून लेकर प्रफुल्लित हो जाता है। जब मानसून बादलों को अपने आगोश में लेती है,तो इस दृश्य को देखकर मालूम होता कि किस हद तक कुदरत ने यहां खूबसूरती का थाल परोस रखा है। विश्राम गृह से सूर्योदय एवं सूर्य की किरणें व रात्रि में टिमटिमाते तारे कला व प्राकृतिक प्रेमियों को नैसर्गिक छटा के अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। ऐसा महसूस होता है कि घूमते रहें व प्रकृति के विभिन्न दृश्यों को अपने कैमरे में कैद करते रहें। यहां स्थित खान-पान के लिए बनी कैंटीन के बाहर बैठकर समूचे घने जंगल का सौंदर्यावलोकन किया जा सकता है, वहीं गर्म चाय व  शीत पेय की चुसकियां अलग ही संमा बांध देती हैं। विश्वास ही नहीं होता कि हम धरती पर ही हैं। यहां प्रकृति अपना पूरा खजाना मानों उड़ेलने को उतावली लगती हैं। जून-जुलाई माह में कभी हल्की बूंदाबांदी और साथ ही कुनकुनी धूप के सम्मिश्रण से प्र्रकृति का एक अनछुआ दृश्य सैलानियों को देखने को मिलता है। पर्यटक ‘कालाटोप’ अभयारण्य क्षेत्र की घुमावदार सड़क से अपने वाहन द्वारा पहुंच सकते हैं, जिसका प्रवेश शुल्क नाममात्र ही है, वहीं पैदल गुजरते हुए सैलानी प्रकृति सौंदर्य और खुशगवार मौसम आदि का लुत्फ उठाते हुए  जा सकते हैं। आप हिमाचल प्रदेश की वादियों का लुत्फ उठाने आएं, तो खजियार व डलहौजी के मध्य स्थित कालाटोप में अवश्य दस्तक दें।

— तुलसी राम डोगरा, पालमपुर