हिमाचली गीता का संदेश पूरे विश्व में फैला

हिमाचल में अगर एमआर (मीजल्स एंड रूबेला) टीकाकरण अभियान सफल रहा है, तो उसके पीछे स्वास्थ्य खंड जंजैहली में कार्यरत गीता वर्मा जैसी महिला हैल्थ वर्कर की भी बहुत बड़ी भूमिका है। गीता वर्मा बाइक चलाकर टीकाकरण के लिए ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में भी पहुंच गईं, जहां चौपहिया वाहनों तक के लिए सड़क नहीं थी। उनके अंदर बस एक ही जज्बा था कि कोई भी बच्चा टीकाकरण अभियान से छूट न पाए। 29 साल की युवा महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता (एएनएम) के इस जज्बे को सभी की प्रशंसा मिली और विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2018 के टेबल कैलेंडर में उनकी तस्वीर प्रकाशित की गई। इससे पहले टीकाकरण अभियान के बाद गीता वर्मा के कार्य को सराहते हुए उन्हें राज्य स्तरीय कार्यक्रम में स्वास्थ्य निदेशक के हाथों भी पुरस्कार मिला था। गौरतलब है कि गत 30 अगस्त से हिमाचल में खसरा एवं रूबेला टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था। टीकाकरण से पहले सभी स्कूलों अन्य संस्थानों से बच्चों की लिस्ट तैयार की गई थी, जिन्हें अभियान के दौरान टीके लगाए जाने थे, लेकिन कुछ दुर्गम क्षेत्र ऐसे भी थे, जहां न तो किसी की पहुंच थी और न ही अंदाजा था कि कितने बच्चे ऐसे इलाकों में होंगे। ऐसा ही स्वास्थ्य खंड जंजैहली का दुर्गम इलाका था। यहां कुछ गुज्जर बच्चे भी थे। यह प्रजाति घुमंतू होती है और कुछ समय के लिए यह एक स्थान पर मवेशियों के साथ डेरा डाल लेती है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से ऐसे बच्चों को भी चिन्हित किया था, लेकिन इनकी संख्या और जगह पर हमेशा संशय बना रहता है। अभियान से पहले उस इलाके में भी कार्य योजना तैयार की गई थी, लेकिन जगह काफी दुर्गम थी और बरसात के चलते रास्ते पूरी तरह खराब। फिर भी गीता ने हार नहीं मानी और अपनी बाइक उठाकर अन्य स्वास्थ्य कार्यकताओं के साथ दुर्गम क्षेत्र में टीकाकरण के लिए चल दीं। गीता वर्मा कड़ी मशक्कत के बाद जिस दुर्गम क्षेत्र में वैक्सीनेशन के लिए पहुंचीं, वहां 48 घुमंतू बच्चे मिले, जिन्हें एमआर के टीके लगाए गए।  गीता वर्मा के इस जज्बे को जिला और प्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों ने तो सराहा ही, बल्कि डब्ल्यूएचओ ने भी टीकाकरण के दौरान बाइक चलाते हुए गीता वर्मा की तस्वीर प्रकाशित कर उन्हें सम्मान दिया। गीता वर्मा के पति केके वर्मा हिमाचल पुलिस विभाग में कार्यरत हैं और उन्हीं से गीता ने बाइक चलाना सीखा। गीता दोपहिया और चौपहिया दोनों वाहन चलाती हैं और उनके पास लाइसेंस भी है। गीता वर्मा का कहना है कि बेशक उन्हें टीकाकरण के लिए सभी ओर से सराहना मिल रही हो, लेकिन जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. डीआर शर्मा, जिला कार्यक्रम अधिकारी डा. अनुराधा शर्मा व खंड चिकित्सा अधिकारी डा. धर्म सिंह की प्रेरणा और सहयोग इस तरह के जज्बे का आधार है। मूलतः करसोग के मोहनाग के रहने वाली गीता वर्मा का एक बेटा भी है।

 आशीष भरमोरिया, मंडी

वर्करों का मिला सहयोग

प्रदेश भर में सुर्खियां बटोरने वाली गीता कहती हैं कि भले ही उन्हें काम के लिए पहचान मिलीं, लेकिन एमआर कैंपेंन सफल रहा है तो उसमें एक गीता नहीं सभी वर्कर का बराबर सहयोग है और कुछ लोगों का तो मुझसे ज्यादा भी है। यह सभी के लिए है। इसमें अधिकारियों डा. डीआर शर्मा, डा. अनुराधा शर्मा और हमारे बीएमओ का उत्साहजनक रवैया भी हमारे लिए बहुत है।

मुलाकात

सच्चे मन से काम करें, तो खुद-ब खुद आत्मसम्मान मिलता है…

गीता वर्मा खुद को किस तरह देखती हैं।

मैं तो बस एक वर्कर के रूप में खुद को देखती हूं और आगे भी अपनी ड्यूटी के लिए एक समर्पित वर्कर की तरह ही कार्य करती रहूंगी। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।

साहस और संवेदना में कितनी नजदीकी रास्ता बनता है। आपके लिए इन दोनों के मायने क्या हैं?

बहुत ज्यादा मायने हैं। साहस बहुत जरूरी है। साहस है तो संवेदना भी साथ होनी चाहिए और संवेदना है और साहस नहीं तो भी बात नहीं बनेगी। दोनों का तालमेल बहुत ज्यादा जरूरी है।

आपके लिए कर्म की परिभाषा क्या है। क्या कर्म ही सफलता है या सफलता के लिए कर्म है?

बचपन से लेकर अभी तक देखा है कि कर्म ही प्रधान है। मेहनत करेंगे तभी कुछ मिलेगा। कर्म ही सफलता है सफलता के लिए कर्म नहीं है। सच्चे मन और पूरी लगन से काम करेंगे तो खुद- ब- खुद सफलता मिलेगी  यह निश्चित है।

एक तस्वीर जो आपकी पहचान सारे विश्व समुदाय से जोड़ रही है, कैसा महसूस होता है?

यह कोई भी कर सकता है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। काफी महिलाएं बाइक चलाती हैं। हां थोड़ा इस बात की खुशी है कि दुर्गम क्षेत्र में पहुंच कर वैक्सीनेशन किया। मुझे सिर्फ इस बात की खुशी है कि टारगेट से ज्यादा वैक्सीनेशन किया।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के टेबल कैलेंडर में जो तस्वीर एक प्रतीक बन गई, उसके पीछे की कहानी है क्या?

मैं खुद उस शख्स को ढूंढ रही हूं जिसने मेरी तस्वीरें सोशल मीडिया में प्रसारित की और बाद में उसे अखबारों मेें छापा। दरअसल काम के दौरान डेली रूटीन के तरह ही स्वास्थ्य विभाग के अपने एक स्थानीय ग्रुप में तस्वीरें डाली थीं। वह भी सिर्फ  डेली वर्क के प्रमाण का हिस्सा थी। अब उस ग्रुप से किसने तस्वीरें सोशल मीडिया में अपलोड की, यह मेरे लिए भी पहेली है।

चारों तरफ  मिली प्रशंसा के बाद जो आपने पाया तथा इसके बाद खुद से मुकाबला कितना बढ़ गया?

खुद से मुकाबला बढ़ा ही है साथ ही वर्करों का एक-दूसरे से मुकाबला बढ़ा है। दरअसल मैंने जो किया, वह कुछ ज्यादा बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इसे प्रचारित इतना कर दिया गया कि अब छोटी सी बात पर भी संभलना पड़ता है। यह सब मेरे साथ ही सभी वर्करों के लिए प्रेरणा है।

सेवा भाव जागृत करने के लिए किसी को प्रेरित किया जा सकता है या केवल नजरिए का अंतर है?

यह नजरिए का अंतर है। टारगेट पूरा कर वापस लौट सकती थी, लेकिन जब वहां टारगेट से कहीं ज्यादा बच्चे थे, तो खुशी थी कि इतने सारे बच्चों का टीकाकरण हुआ। सेवा भाव के लिए जागृत किया जा सकता है, लेकिन मेरी नजर में नजरिए का सबसे बड़ा खेल है।

खुद में अपनी कुशलता को वाहन चालक के रूप में कैसे देखती हैं?

ऐसा कुछ नहीं है। बहुत सी महिलाएं स्कूटी-बाइक और बुलेट भी चलाती हैं। हां, मैं भी चला लेती हूं बस इतनी सी बात है। कुशलता कैसे कहूं सामान्य रूप से ही बाइक चलाती हूं।

एक औरत होने के नाते जो केवल आप कर पाती हैं और अगर इस रूप से समाज में कुछ बदलना हो, आपके सामने कौन सा नारी चरित्र हमेशा प्रेरणा बनकर खड़ा रहता है?

समाज में लड़कियों को पढ़ाने के लिए और खूब पढ़ाने का सभी से आग्रह है। एक लड़की शिक्षित होती है तो समाज शिक्षित होता है। प्रेरणा बहुतों से मिलती है। बस सकारात्मक रहें तो प्रेरणा मिलेगी।

जीवन के मूल्य, आदर्श और सिद्धांत क्या हैं?

सच्चाई सबसे अधिक जरूरी है। इसके साथ ही आज के दौर में सहनशीलता भी उतनी ही होनी चाहिए। आखिरी में लेकिन शायद सबसे ऊपर चरित्र है। चरित्र के बगैर कुछ भी नहीं है।

जब दूसरों को ईर्ष्या होती है या जो आत्मसम्मान के लिए करती हैं।

ईर्ष्या के लिए आप कुछ नहीं कर सकते हैं। इसे सिर्फ नजरअंदाज किया जा सकता है। काम करना ही आत्मसम्मान है। सच्चाई से काम करें तो खुद की नजरों में जो आत्मसम्मान मिलता है, वह सुखद एहसास है।