आशीष भरमोरिया, मंडी
वर्करों का मिला सहयोग
प्रदेश भर में सुर्खियां बटोरने वाली गीता कहती हैं कि भले ही उन्हें काम के लिए पहचान मिलीं, लेकिन एमआर कैंपेंन सफल रहा है तो उसमें एक गीता नहीं सभी वर्कर का बराबर सहयोग है और कुछ लोगों का तो मुझसे ज्यादा भी है। यह सभी के लिए है। इसमें अधिकारियों डा. डीआर शर्मा, डा. अनुराधा शर्मा और हमारे बीएमओ का उत्साहजनक रवैया भी हमारे लिए बहुत है।
मुलाकात
सच्चे मन से काम करें, तो खुद-ब खुद आत्मसम्मान मिलता है…
मैं तो बस एक वर्कर के रूप में खुद को देखती हूं और आगे भी अपनी ड्यूटी के लिए एक समर्पित वर्कर की तरह ही कार्य करती रहूंगी। इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
साहस और संवेदना में कितनी नजदीकी रास्ता बनता है। आपके लिए इन दोनों के मायने क्या हैं?
बहुत ज्यादा मायने हैं। साहस बहुत जरूरी है। साहस है तो संवेदना भी साथ होनी चाहिए और संवेदना है और साहस नहीं तो भी बात नहीं बनेगी। दोनों का तालमेल बहुत ज्यादा जरूरी है।
आपके लिए कर्म की परिभाषा क्या है। क्या कर्म ही सफलता है या सफलता के लिए कर्म है?
बचपन से लेकर अभी तक देखा है कि कर्म ही प्रधान है। मेहनत करेंगे तभी कुछ मिलेगा। कर्म ही सफलता है सफलता के लिए कर्म नहीं है। सच्चे मन और पूरी लगन से काम करेंगे तो खुद- ब- खुद सफलता मिलेगी यह निश्चित है।
एक तस्वीर जो आपकी पहचान सारे विश्व समुदाय से जोड़ रही है, कैसा महसूस होता है?
यह कोई भी कर सकता है। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। काफी महिलाएं बाइक चलाती हैं। हां थोड़ा इस बात की खुशी है कि दुर्गम क्षेत्र में पहुंच कर वैक्सीनेशन किया। मुझे सिर्फ इस बात की खुशी है कि टारगेट से ज्यादा वैक्सीनेशन किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के टेबल कैलेंडर में जो तस्वीर एक प्रतीक बन गई, उसके पीछे की कहानी है क्या?
मैं खुद उस शख्स को ढूंढ रही हूं जिसने मेरी तस्वीरें सोशल मीडिया में प्रसारित की और बाद में उसे अखबारों मेें छापा। दरअसल काम के दौरान डेली रूटीन के तरह ही स्वास्थ्य विभाग के अपने एक स्थानीय ग्रुप में तस्वीरें डाली थीं। वह भी सिर्फ डेली वर्क के प्रमाण का हिस्सा थी। अब उस ग्रुप से किसने तस्वीरें सोशल मीडिया में अपलोड की, यह मेरे लिए भी पहेली है।
चारों तरफ मिली प्रशंसा के बाद जो आपने पाया तथा इसके बाद खुद से मुकाबला कितना बढ़ गया?
खुद से मुकाबला बढ़ा ही है साथ ही वर्करों का एक-दूसरे से मुकाबला बढ़ा है। दरअसल मैंने जो किया, वह कुछ ज्यादा बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इसे प्रचारित इतना कर दिया गया कि अब छोटी सी बात पर भी संभलना पड़ता है। यह सब मेरे साथ ही सभी वर्करों के लिए प्रेरणा है।
सेवा भाव जागृत करने के लिए किसी को प्रेरित किया जा सकता है या केवल नजरिए का अंतर है?
यह नजरिए का अंतर है। टारगेट पूरा कर वापस लौट सकती थी, लेकिन जब वहां टारगेट से कहीं ज्यादा बच्चे थे, तो खुशी थी कि इतने सारे बच्चों का टीकाकरण हुआ। सेवा भाव के लिए जागृत किया जा सकता है, लेकिन मेरी नजर में नजरिए का सबसे बड़ा खेल है।
खुद में अपनी कुशलता को वाहन चालक के रूप में कैसे देखती हैं?
ऐसा कुछ नहीं है। बहुत सी महिलाएं स्कूटी-बाइक और बुलेट भी चलाती हैं। हां, मैं भी चला लेती हूं बस इतनी सी बात है। कुशलता कैसे कहूं सामान्य रूप से ही बाइक चलाती हूं।
एक औरत होने के नाते जो केवल आप कर पाती हैं और अगर इस रूप से समाज में कुछ बदलना हो, आपके सामने कौन सा नारी चरित्र हमेशा प्रेरणा बनकर खड़ा रहता है?
समाज में लड़कियों को पढ़ाने के लिए और खूब पढ़ाने का सभी से आग्रह है। एक लड़की शिक्षित होती है तो समाज शिक्षित होता है। प्रेरणा बहुतों से मिलती है। बस सकारात्मक रहें तो प्रेरणा मिलेगी।
जीवन के मूल्य, आदर्श और सिद्धांत क्या हैं?
सच्चाई सबसे अधिक जरूरी है। इसके साथ ही आज के दौर में सहनशीलता भी उतनी ही होनी चाहिए। आखिरी में लेकिन शायद सबसे ऊपर चरित्र है। चरित्र के बगैर कुछ भी नहीं है।
जब दूसरों को ईर्ष्या होती है या जो आत्मसम्मान के लिए करती हैं।
ईर्ष्या के लिए आप कुछ नहीं कर सकते हैं। इसे सिर्फ नजरअंदाज किया जा सकता है। काम करना ही आत्मसम्मान है। सच्चाई से काम करें तो खुद की नजरों में जो आत्मसम्मान मिलता है, वह सुखद एहसास है।