अफसर आए और गए, पर वानर अध्ययन वहीं का वहीं

शिमला— हिमाचल में वानर व्यवहार अध्ययन मजाक बनने लगा है। प्रदेश का वाइल्ड लाइफ विंग लोक प्रतिक्रिया से बचने के लिए बार-बार मंकी स्टडी का हवाला देकर किसानों-बागबानों व आम आदमी की इस विकराल होती समस्या से पल्लू झाड़ता दिख रहा है। दिलचस्प बात है कि अब तक चार पीसीसीएफ सेवानिवृत्त हो चुके हैं व कई वाइल्ड लाइफ विंग से ट्रांसफर किए जा चुके हैं, मगर यह स्टडी खत्म नहीं हो पा रही। हिमाचल में वानरों की असल संख्या कितनी है,  इसे लेकर भी वाइल्ड लाइफ विंग ठीक से लोगों को जानकारी नहीं दे पाता। वानर उत्पात रोकने के नाम पर कभी पूर्वोत्तर राज्यों को इन्हें ट्रांसफर करने की बातें आधारहीन साबित होती रहीं तो कभी स्टरलाइजेशन पर ही सवाल उठते रहे। बावजूद इसके इस बड़े मसले पर पूर्व की सरकारें भी गंभीरता नहीं दिखा पाईं, जबकि करोड़ों की राशि इस मद में खर्च की जा चुकी है। अब फिर से इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस बंगलूर की सहायता से ऊना के साथ-साथ अन्य हिस्सों में मंकी स्टडी के ऐलान किए गए हैं, मगर पहले की अध्ययन रिपोर्ट्स का क्या हुआ, इस पर विभाग मौन रहता है। प्रदेश में वानरों की संख्या बावजूद स्टरलाइजेशन के बढ़ रही है। शिमला में हर दूसरी फीमेल मंकी की गोद में एक बच्चा दिखता है, जो इस मुहिम को असफल साबित करने के लिए काफी है। हालांकि विभागीय दावा है कि अब तक सवा लाख से भी ज्यादा मंकी स्टरलाईजेशन हो चुकी है, जिसके नतीजे आने वाले वक्त में पता लगेंगे। बहरहाल, मंकी स्टडी के नाम पर प्रदेश की फसलें व बागबानी नष्ट न हों, नई सरकार के लिए इसे सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी।

कैलिफोर्निया के छात्र स्टडी पर

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट शिमला में वानर स्टडी कर रहे हैं। यह साइंटिफिक स्टडी है, जिसके बूते वे अपनी थीसिस  तैयार करेंगे। यानी हिमाचल को इस अध्ययन से कोई भी लाभ नहीं होने वाला। क्योंकि वाइल्ड लाइफ विंग ने मांग के बावजूद उन्हें समन्वय के लिए कोई अधिकारी दिया ही नहीं।

सिंबलवाड़ा में प्राइमेट पार्क नहीं

सिरमौर के सिंबलवाड़ा में वानर उत्पात को कम करने के लिए स्टरलाइजेशन के बाद वानरों को एक ऐसे प्राइमेट पार्क में रखने की योजना थी, जहां उनके आहार-व्यवहार व स्वास्थ्य का भी पूरा प्रबंध किया जाना था, मगर खर्चों से बचने के लिए इसे सिरे ही नहीं चढ़ाया जा सका, जबकि सालाना इस मद में एक करोड़ से भी कम का खर्चा आना था और फसलें प्रभावित क्षेत्रों में काफी दर में बचाई जा सकती थी।