और अपने ही घर में बेगाने बनकर रह गए

मंडी —अंतरराष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि महोत्सव में इस बार प्रशासन ने बेशक स्थानीय व हिमाचली प्रतिभाओं को ज्यादा तवज्जो देने का प्रयास किया हो, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते ऐसे कई मंचों को शिवरात्रि महोत्सव में इस बार मौका नहीं मिल सका, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर छोटी काशी की पहचान बनाई है। लाखों रुपए खर्च कर सांस्कृतिक संध्याओं में मुंबइया, पंजाबी और प्रदेश के अन्य जिलों से कलाकार मंगवाया, लेकिन प्रशासन अपने ही जिला के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थाओं को दो मिनट का समय भी नहीं दे सका। मंडयाली संस्कृति को पहचान दिलाने वाले मांडव्य कला मंच, राष्ट्रीय स्तर पर मंडी के नाम का डंका बजाने वाले नवज्योति खेल एवं सांस्कृतिक कला मंच, मंडी महोत्सव का आयोजन करने वाली संस्था संवाद और जागृति कला मंच मंडी शिवरात्रि मेला कमेटी के पैमाने पर इस बार खरे ही नहीं उतरे। यह पहली बार हुआ जब इन मंचों को शिवरात्रि महोत्सव की संध्याओं में जगह ही नहीं मिल सकी। आयोजन समिति द्वारा जानबूझ कर इन मंचों को सांस्कृतिक संध्याओं से बाहर रखा गया। ऐसा कर शिवरात्रि मेला कमेटी ने अपने ही घर में इन संस्थाओं और इनसे जुड़े सैकड़ों कलाकारोें का अपमान किया है। नवज्योति कलामंच के प्रधान एवं राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त रंगकर्मी एवं निर्देशक इंद्रराज इंदू, महासचिव जयकुमार जैक, संवाद कलामंच के संयोजक पंकज  एवं सलाहकार ोमचंद शास्त्री, प्रधान मनजीत मन्ना, गौरव शर्मा, मांडव्यकला मंच के प्रधान मुरारी लाल, संरक्षक बीरबल शर्मा, उप प्रधान विनोद गुलेरिया ने कहा कि मंडी शिवरात्रि मेला देव संस्कृति और लोक संस्कृति के लिए विख्यात है। उन्होंने कहा कि सिर्फ गाना बजाना ही संस्कृति नहीं है। मंडी की लोक संस्कृति की झलक दिखाने वाली लुड्डी, जिसको राष्ट्रीय स्तर पर मांडव्य कला मंच ने पहचान दिलाई है। नवज्योति कला मंच, जागृति और संवाद कलामंच के नाटक राष्ट्रीय स्तर पर सराहे गए हैं। मांडव्य कला मंच और नवज्योति कला मंच ने मंडी जिला का परचम लहराया, मगर शिवरात्रि मेले में इन्हीं सांस्कृतिक संस्थाओं की अनदेखी कर इन्हें अपमानित किया गया। इधर, उपायुक्त एवं अध्यक्ष मेला कमेटी ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि यह जानबूझकर नहीं हुआ है। इन संस्थाओं द्वारा दिए गए आवेदन अलग से नहीं पहुंचाए गए। उन्होंने कहा कि मेले के अंतिम क्षणों में उनके ध्यान में यह मामला आया, तब कुछ नहीं किया जा सकता था।