पूजा एक साधारण परिवार में जन्मी है उनके पिता आईपीएच विभाग मे कार्यरत हैं, जबकि माता गृहिणी हैं। पूजा अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार व कोच स्वर्गीय दौलत राम, जयपाल चंदेल, मेहर सिंह को देती है, जिनके मार्गदर्शन व सहयोग से वह आज इन बुलंदियों पर पहुंची हैं। पूजा के शानदार प्रदर्शन के चलते 14 जनवरी, 2007 को हिमाचल केसरी अवार्ड, 21 फरवरी 2010 को हिमाचल के नंबर 1 मीडिया ‘ग्रुप दिव्य हिमाचल’ द्वारा बेस्ट स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ दी ईयर का खिताब देकर सम्मानित किया गया। 15 अगस्त, 2012 को प्रदेश सरकार ने पूजा को प्रदेश का सबसे बड़ा परशु राम अवार्ड देकर सम्मानित किया। 23 अगस्त 2012 को प्रदेश सरकार ने पूजा को एक्साइज एवं टैक्सेशन विभाग मे इंस्पेक्टर का पद देकर सम्मानित किया। वर्तमान में पूजा सोलन जिले में अपनी सेवाएं दे रही हैं
मुलाकात
हिमाचल में खेल सुविधाएं मिलें, तो बात बने…
जब पीछे मुड़कर चमत्कार कहां देखती है?
इंडिया टीम के लिए कैप्टन के रूप में खेलना एक चमत्कार से कम नहीं होता है और उससे बड़ा जब गोल्ड देश के नाम किया। यह आज भी सपने जैसा लगता है।
कबड्डी में जो पाया, उसके लिए आप खुद को कितना श्रेय देती हैं?
स्पोर्ट्स एक ऐसी चीज है, जहां अकेले आप कुछ हासिल नहीं कर सकते। मैंने जो कुछ हासिल किया उसमें मेरी फैमिली और गॉड फादर सुनील कुमार का पूरा हाथ है। 50 प्रतिशत मेरी मेहनत तो 50 प्रतिशत फैमिली का हाथ है।
अगर कबड्डी में आगे न बढ़ती तो आपका अन्य प्रिय खेल क्षेत्र क्या होता?
मैं कबड्डी में आगे नहीं बढ़ती, तो एथलेटिक्स में जरूर कुछ नाम कमाती।
जीत- हार के बीच आपका निर्णायक पक्ष क्या रहता है?
जीत और हार में रेडिंग साइड को निर्णायक मानती हूं। मैं खुद एक रेडर हूं। कई बार हुआ है कि लास्ट मूवमेंट पर मैच को बदला है।
अब तक की सबसे रोमांचक जीत?
स्पोर्ट्स में जितने ब्रांज थे, वे सभी मैंने अचीव कर लिए हैं। पांच अवार्ड स्टेट के लिए,चार इंटरनेशनल खेले, इंडिया टीम की कप्तानी की और 28 नेशनल टूर्नामेंट खेले हैं।
कोई हार, जिसने जीतना सिखा दिया?
ऐसे तो बहुत सारे मैच हुए हैं, जो मुझे कुछ न कुछ सिखा गए हैं। इनमें से एक मैच जिसे हमने ओवर कान्फिडेंस के चलते हरा दिया था। हमने उस टीम का कोई भी मैच नहीं देखा था। यह टीम तो कुछ भी नहीं थी। जब मैच खेला तो हम बहुत बुरी तरह से हार गए। इस मैच ने जीतना सिखा दिया।
जुखाला से धर्मशाला साई होस्टल का सफर कैसे बना?
साई होस्टल धर्मशाला में ट्रायल थे, तो हमारे कोच दौलत रामन ठाकुर ने हमें ट्रायल के लिए भेजा। उनका बहुत योगदान रहा, मुझे आज यहां पहुंचाने में।
वहां की व्यवस्था को कैसे देखती हैं?
साई स्पोर्ट्स के लिए सबसे अच्छा और बड़ा प्लेटफार्म होता है। वहां सारी चीजें बड़े ही सिस्टेमेटिक तरीके से होती हैं।
हिमाचल के खेल मंत्री से आपके तीन प्रमुख सुझाव।
तीन बातें बताना चाहूंगी कि सिलेक्शन ट्रायल कमेटी से एक्सपर्ट्स होने चाहिए। ट्रायल की वीडियोग्राफी होनी चाहिए और सिलेक्शन लिस्ट ट्रायल के बाद मीडिया में डिसप्ले होनी चाहिए।
कोई बड़ा सपना, जिसे हासिल करना बाकी है?
स्पोर्ट्स में जितने भी ड्रीम थे, वो सारे मैंने पा लिए हैं। मेरा लक्ष्य पुलिस विभाग में डीएसपी के पद पर सेवाएं देना है।
भारतीय महिला कबड्डी में हिमाचल की भूमिका और इसे कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है?
राज्य से तीन खिलाड़ी एशियन गेम्ज खेल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश बहुत ही अच्छा परफॉर्म कर रहा है और आगे भी अच्छा परफॉर्म करेगा। बस थोड़ा सा हिमाचल प्रदेश में सभी गेम्स के लिए अच्छी सुविधाएं हो जाएं, तो प्रदेश के खिलाड़ी भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
क्या आपको लगता है हिमाचल समाज खिलाडि़यों को सम्मान देने में कहीं कंजूस है?
मुझे नहीं लगता कि समाज सम्मान देने में कोई कंजूसी करता है। मुझे लोगों से बहुत ही सम्मान मिला है।
कबड्डी खेलते-खेलते आपका जीवन के प्रति नजरिया भी बदल गया। किस तरह इसे संबोधित करेंगी?
खेलते-खेलते हम बहुत सारे उतार-चढ़ाव वाली लाइफ देखते हैं और बहुत कुछ सीखते हैं और धीरे-धीरे हमारा नजरिया वैसा ही बन जाता है और हम हर चीज को अच्छे से समझने लगते हैं।
जूनियर खिलाडि़यों खास तौर पर महिला खिलाडि़यों को क्या टिप्स देंगी?
कभी मेहनत करने से पीछे मत हटना। लाइफ में कड़ी मेहनत करके हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।
कोई बिलासपुरी या हिमाचली गीत जिसे गुनगुना चाहेंगी?
मुझे गीत गाने नहीं आते हैं और मैं गानों को बहुत कम सुनती हूं। फिर भी ‘चक दे इंडिया’ गीत मैच के दौरान मुझमें हौसला बढ़ता है।
अभिषेक मिश्रा, जुखाला