नगरोटा भाजपा में नहीं ‘आल इज वेल’

नगरोटा बगवां — नगरोटा बगवां विधानसभा क्षेत्र में 20 साल बाद हुए सत्ता परिवर्तन के बाद भी सत्तासीन पार्टी के  कई पुराने कार्यकर्ताओं के अच्छे दिन आज भी नहीं आए। विधानसभा क्षेत्र में 25 साल बाद कमल तो खिला, लेकिन विडंबना है कि लंबे सूखे के बाद आई बहार तथा ऐतिहासिक जीत का आनंद लेने से आज भी कार्यकर्ता वंचित हैं। आलम यह है कि कल तक पार्टी का झंडा फर्मावरदार  मानने वाले कार्यकर्ता ही आज सामने आने से कतराने लगे हैं। समय की नजाकत ऐसी कि नेता टाइप लोग ही मंच पर आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।  ऐसा उस दिन से हुआ जब मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर रखी मंडल की बैठक में एक बड़े ओहदेदार को मंच से जलील कर खदेड़ा गया। बड़ोह में मुख्यमंत्री की जनसभा में स्थिति और भी भयावह होती, अगर कुछ नेताओं ने बीच-बचाव कर हालात पर पर्दा डालने की कोशिश न की होती। यही वजह रही कि यहां उत्पन्न होने वाली स्थिति को भांपते हुए मंडल के कई ओहदेदार पहले ही गायब रहे। यूं तो पार्टी के भीतर उस समय से ही कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था, जब से भाजपा हाई कमान ने अरुण मेहरा की पार्टी में एंट्री सुनिश्चित की थी और उससे बढ़कर राज्य कार्यकारिणी में स्थान दिया । नगरोटा भाजपा को पहले से ही विपक्ष के प्रति नरम माना जाता रहा है तथा इस तरह के सवाल पार्टी के भीतर से ही उठते रहे हैं। अपने ही भाजपाई साथियों के जबरदस्त विरोध के बाद सत्ता पर काबिज हुई कूका ब्रिगेड अब पूरे एक्शन में है, जो चुनावों के दौरान तथा इससे पहले नकारात्मक रुख अपनाने वाले नेताओं को चुन-चुन कर निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं चूक रही। इस ब्रिगेड का मानना है कि मंडल में कई कार्यकर्ताओं की विपक्ष से सांठ-गांठ ने उनकी लीड को एक हजार में समेटा तथा चुनाव नतीजों के बाद बड़े नेताओं के समक्ष कथित हाजिरी भर अपना असली चेहरा छिपाने में लगे हैं। उधर, कूका ब्रिगेड काली भेड़ों के नाम पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठी है। यह गनीमत है कि चुनावों के बाद अभी तक पार्टी का कोई आम इजलास न हुआ तो नौबत दूर तक जाती। कुल-मिलाकर भाजपा ने भले ही नगरोटा की हॉट सीट पर अपना कब्जा जमा लिया हो, लेकिन पार्टी के भीतर उपजी पुरानी कलह आज भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है।