बढेड़ा में प्रवचनों से संगत निहाल

ऊना – प्रभु में प्रेम हो जाना ही मनुष्य के समस्त पुरुषार्थों की सिद्धि है। असार संसार में कुत्ते की सूखी हड्डी की तरह सुख ढूंढ़ते हैं, इसीलिए निराश होना पड़ता है। हम भगवान को जानने का साधन नहीं करते तो स्वयं के साथ ही अन्याय कर रहे हैं। जिसने तन व मन को वश में कर लिया वह संसार में यशस्वी एवं पूज्य हो जाता है। दुनिया के मेले में खोकर अपने चित्त में अशांति न पैदा करो, एकमात्र श्रीहरि का आश्रय लेकर सुखी हो जाओ। सच्चिदानंद ईश्वर की भक्ति परम धन है। उक्त कथासूत्र श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस में परम श्रद्धेय स्वामी अतुल कृष्ण महाराज ने ठाकुरद्वारा बढेड़ा में व्यक्त किए। भगवान की कथा सुन-सुन कर जीव सभी बंधनों से मुक्त होकर परम लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है। संसार में भला ऐसा कौन है जिसने परमात्मा का आश्रय लिया और उसका कल्याण नहीं हुआ। जीवन में जब भी भय आवे भयहारी प्रभु की सहायता लो सभी झंझटों से पार हो जाओगे। नासमझी से हम स्वयं ही अपना दिवाला निकालने पर तुले हुए हैं। ईश्वर के भजन के बिना हम घाटे में ही रह जाएंगे। आज कथा में पूतना का उद्धार, शकटासुर एवं तृणावर्त का वध, कुबेर के पुत्रों पर कृपा, माखन चोरी, ब्रह्मा जी के मोह को दूर करना, चीर हरण एवं श्रीगिरिराज पूजन का प्रसंग श्रोताओं ने अत्यंत ही श्रद्धा से सुना। इस अवसर पर भगवान को छप्पन भोग अर्पित किया गया व कई झांकियां भी प्रस्तुत की गईं।