बिना बजट धक्के खा रहा आरएमटी नग्गर

पतलीकूहल—ररौरिक मेमोरियल ट्रस्ट नग्गर में कर्मचारी व संरक्षण अधिकारी की संख्या 33 है, जिनकी पगार रौरिक स्थल के प्रवेश शुल्क के रूप में काटी जाने वाली टिकट पर रहती है। हालांकि पर्यटन सीजन में तो जैसे कैसे कर्मचारियों को तनख्वाह मिल जाती है, लेकिन शीतकालीन समय में प्रवेश शुल्क से पगार नहीं निकलती, जिसके लिए कर्मचारियें को पर्यटन सीजन का इंतजार करना पड़ता है। विश्व धरोहर के नाम से मशहूर नग्गर में देश-विदेश से आए सैलानियों से ग्रीष्म ऋतु में चहल-पहल से गुजरता है। लेकिन सर्द ऋतु में सैलानियों की आमद जहां कम रहती है, उससे उसे आर्थिक रूप से भी अक्षम रहना पड़ता है। लोगों का कहना है कि जिस तरह से नग्गर आज विश्व में भारत व रूस की मैत्री के स्थल के रूप में उभरा है लेकिन उसके संरक्षण में किसी भी सरकार का कोई योगदान नहीं है। आईआरएमटी नग्गर में तैनात भारतीय क्यूरेटर रमेश चंद्रा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नग्गर में आर्ट कालेज को स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे, मगर इसे किसी भी सरकार से बजट न उपलब्ध होने के कारण उनका सपना साकार नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस ट्रस्ट में 200 बीघा भूमि हैं यदि प्रदेश सरकार इसे अपनी गोद में लेती है तो तभी इस संस्थान की बेहतरी के लिए कुछ किया जा सकता है। ट्रस्ट ने कला को बढ़ावा देने के लिए कई पग उठाए हैं। चित्रकारों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यहां भारतीय संगीत नृत्य सिखाया जाता है। चित्रकारों की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं। कवि सम्मेलन किए जाते  हैं तथा नाटकों का मंचन किया जाता है। दीर्घा में प्रवेश के लिए शुल्क लिया जाता है, जिससे ट्रस्ट आर्थिक रूप से अपने कर्मचारियों की पगार देता है, लेकिन किसी भी सरकार की ओर से ट्रस्ट के लिए कोई अनुदान उपलब्ध नहीं है। लोगों का कहना है कि धरोहरें सभ्यता व संस्कृति का आईना होती हैं, लेकिन यदि इसके संरक्षण के बजट का प्रावधान नहीं होता, तो वह मात्र परिहास का विषय बन कर रह जाती है।