बुरांस के फूलों से गुलजार हुई अपनी आनी

आनी – आनी क्षेत्र की भीतरी घाटियां इन दिनों सुनहरे लाल व गुलाबी रंग के बुरांस के फूलों से गुलजार हो उठी हैं। बुरांस के फूल चार से सात हजार फुट की ऊंचाई के वनों में फरवरी से अप्रैल मई तक खिलते हैं। जंगलों में हालांकि मौसम के अनुकूल अन्य कई प्रकार के फूल भी खिलते रहते हैं, मगर बुरांस एक ऐसा वन पुष्प है जो अपनी लाल, गुलाबी सुंदरता से हर दार्शनिक को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है और कई इसकी सुंदरता को अपने कैमरे में कैद कर लेते हैं। इस फूल को स्थानीय भाषा में बराह और हिंदी में बुरांस कहा जाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक नाम ‘रोडोडैनरोन’ है। यह पुष्प बराह के पेडों पर लंबी नुकीली पत्तियों के मध्य गुलाब के फूल की भांति बड़े आकार में खिलता है। वनों में सुंदरता बिखेरने वाला यह फूल लोगों की धार्मिक आस्था से भी जुड़ा है। मान्यता है कि यह पुष्प देवी-देवताओं को भी प्रिय है और ऐसे में ग्रामीण लोग इसे साजा बैसाख के दिन अपने ईष्ट देवता को चढ़ाते हैं। घरेलू महिलाएं इस दिन घर के आंगन में रंगोली बनाकर इस पुष्प को घर के मुख्य द्वार के शीर्ष पर लगाती हैं। ग्रामीणों की मान्यता है कि बुरांस के फूल को चढ़ाने से जहां देवता प्रसन्न होते हैं, वहीं द्वार पर लगाने से घर बुरी नजर से बचा रहता है। यही नहीं यह पुष्प सुंदरता और धार्मिक महत्ता के अलावा औषधि के लिहाज से भी अति गुणकारी है। आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि बुरांस के फूलों का शरबत दिल के मरीजों के लिए रामबाण औषधि है और यह खून के दबाव को कम करने में भी सहायक है। इतना ही नहीं सिरदर्द, सुस्ती व जी मचलने में भी यह बेहद फायदेमंद है। आनी क्षेत्र में बुरांस के फूल इन दिनों आनी कुल्लू एनएच-305 सड़क मार्ग पर शमशर से कंडूगाड के मध्य सामने के वनों में देखे जा सकते हैं। प्रदेश सरकार ने यूं तो बुरांस को राज्य पुष्प का दर्जा दिया है, मगर वनों में बहुतायात में पाया जाने वाला यह पुष्प गुणकारी होने के बावजूद उपेक्षित है। सरकार यदि इसे दवा अथवा अन्य उत्पाद के तौर पर प्रयोग में लाए तो लोगों के लिए यह आय का अच्छा विकल्प भी बन सकता है।