लेडी सिंघम पूजा की परवाज

जब जीवन में कुछ करने की सोच रखी हो , तो बड़ी से बड़ी चुनौती भी आसान लगती है और ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कन्या भ्रूण हत्या में संलिप्त रैकेट का भंडाफोड़ करने वाली लेडी सिंघम एसआई पूजा ने। पूजा अपना आइडल कुल्लू की एसपी शालिनी अग्निहोत्री को मानती हैं। शालिनी अग्निहोत्री 2012 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं। एसआई पूजा शिमला के कुमारसेन की स्थायी निवासी हैं। उनका जन्म 4 जुलाई, 1992 को कुमारसेन में हुआ। पिता मेघराम कुमारसेन में ही दुकान करते हैं तथा माता आशा कुमारी गृहिणी हैं। बचपन से ही पुलिस की वर्दी पहनने का सपना मन में संजोए पूजा हमेशा पढ़ाई में अब्बल रही। पिता ने भी अपनी बेटी के सपने पूरे करने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ी। उनकी प्राथमिक शिक्षा कुमारसेन में हुई। उच्च शिक्षा सीनियर सेकेंडरी स्कूल बड़ा गांव से प्राप्त की। जमा दो उत्तीर्ण करने के बाद पूजा ने बीएससी पीजी कालेज बुशहर ( रामपुर) से की। इसके बाद एसएसबी के तहत निकले सब- इंस्पेक्टर के पद के लिए आवेदन किया। पहले ही प्रयास में वह सब-इंस्पेक्टर बन गईं। वर्ष 2016 में उन्हें पुलिस ट्रेनिंग सेंटर डरोह (पालमपुर) भेजा गया। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर उन्होंने पेरेंट यूनिट नाहन में ज्वाइन किया। यहां से महज 12 दिन बाद ही इन्हें प्राबेशन आधार पर हमीरपुर भेजा गया। यहां पहुंचते ही महिला पुलिस अधिकारी ने वर्षों से गैर कानूनी ढंग से भ्रूण की जांच करने वाले एक अस्पताल का पर्दाफाश कर अपनी काबिलीयत साबित कर दी। एसआई पूजा का कहना है कि उन्होंने डिपार्टमेंट ज्वाइन करते ही कसम खाई थी कि महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित रहेंगी। कन्या भ्रूण जैसे जघन्य अपराध करने वालों को किसी भी सूरत में वख्शा नहीं जाएगा। इस लेडी सिंघम के इसी हौसले को देखते हुए उन्हें अस्पताल का पर्दाफाश करने का अहम टास्क दिया गया था। अपने पहले ही टास्क में महिला एसआई ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवा दिया। उनका कहना है कि आगामी समय में भी वह इस मुहिम को जारी रखेंगी। पोस्टिंग चाहे जहां भी हो कन्या भ्रूण जैसे मामलों में सख्ती से निपटा जाएगा। उन्होंने कहा कि कन्या भ्रूण के कारण ही समाज में लड़कियों की संख्या कम हो रही है। उन्हें गर्व महसूस हो रहा है कि डीएसपी रेणु शर्मा के नेतृत्व में चलाए गए आपरेशन में एक भ्रूण को बचाया गया है। इस कारण एक नवजात अब संसार देख सकेगी। उनका कहना है कि न जाने इस अस्पताल में अब तक कितनी बच्चियों को संसार में आने से पहले ही मौत की नींद सुला दिया गया। पूजा का कहना है कि उनका मुख्य लक्ष्य अब बेटियों को बचना ही रहेगा।

 मुलाकात

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती…

अपने अनूठे अभियान में आपने आपराधिक हाथों से एक जीवन बचाया है? कैसा महसूस करती हैं।

एक बेटी अब इस संसार में आ सकेगी। इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं। एक जीवन बचाकर खुद पर गर्व हो रहा है।

पूरे अभियान में आपके कंधे पर विभागीय जिम्मेदारी, साहस और कर्मठता के अलावा गोपनीयता थी। कैसे निभाया, कितनी कठिन थी यह परीक्षा?

पुलिस में ऐसे टास्क मिलना मतलब आप पर उच्चाधिकारियों को भरोसा है। यह आपरेशन गोपनीय तरीके से चला। मन में बस यही था कि यह मिशन कामयाब हो। कामयाबी हासिल करने में सौ फीसदी भागीदारी निभाई। इसके बाद कामयाबी मिली।

इस पूरे मामले में आपकी प्रेरणा, सिद्धांत और रणनीति किस तरह एक-दूसरे के पूरक बने?

बचपन से ही देखती आई हूं कि समाज में लड़का व लड़की में भेद समझा जाता है। स्वयं एक लड़की हूं इसलिए इस वर्ग के लिए कुछ कर गुजरने की लालसा रहती थी। जब मौका मिला तो खुद को साबित कर पाईं। इसके लिए विशेष रणनीति बनाई गई थी। पूरे मामले में मेरी प्रेरणा डीएसपी रेणू शर्मा रहीं हैं।

सफलता से आपकी पहचान में तो इजाफा हुआ। उसे देखते हुए आप किस तरह की जिम्मेदारी ओढ़ना चाहेंगी?

पुलिस में हरेक जिम्मेदारी अहम होती है। कोई भी मामला हो, छोटे से लेकर बड़े स्तर का। जनता की सेवक हूं, सेवक बनकर ही काम करूंगी।

पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या है? और वर्दी की कसम किस तरह सफल हो सकती है?

पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती क्राइम को जड़ से समाप्त करना है।  कई बार राजनीतिक दबाव भी बन जाता है। ऐसे में काम की निष्पक्षता, निष्ठा पर सवाल उठना शुरू हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में अपनी ड्यूटी का ईमानदारी से निर्वहन करना व दबाव मुक्त रहकर स्थिति को संभालना चुनौती बन जाता है। पुलिस की वर्दी की कसम सरकार, पुलिस व लोगों के सहयोग से ही सफल हो सकती है। क्राइम करने वाले से ज्यादा क्राइम सहने वाला ज्यादा दोषी होता है।

पुलिस में आने की वजह और इस दायित्व में खुद को कितना सफल मानती हैं?

बचपन से ही सुनती आई हूं कि दहेज के लिए लड़की को प्रताडि़त किया जाता है। कई बार संसार में पहुंचने से पहले की कोख में बच्ची की हत्या कर दी जाती है। इस  क्राइम को जड़ से समाप्त करने की मन में ठानी है। यही वजह है कि पुलिस में भर्ती हुईं। अपने पहले ही केस में एक बच्ची को बचाने में कामयाब हुई हूं।

अमूमन औरतों के सामने ड्यूटी चार्ट नरम किया जाता है, क्या आप सहमत हैं?

मानती हूं कि कई बार महिलाओं के सामने ड्यूटी चार्ट नरम किया जाता है। क्योंकि शारीरिक प्रक्रिया की तुलना में महिलाओं को पुरूषों से ज्यादा परेशनियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि मानसिक रूप से महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक स्ट्रांग हैं।

हिमाचल की बेटियों को अब तक मिले आकाश से संतुष्ट हैं या अभी समाज के आईने छोटे हैं?

हिमाचल की बेटियां आकाश छू रही हैं। सेना, खेल व पढ़ाई में अपनी काबिलीयत दिखाकर लड़कियां साबित कर चुकी हैं कि वे किसी भी फील्ड में लड़कों से कम नहीं हैं।

ऐसी कौन सी यातनाएं आज भी औरतों को मिलती हैं, जिससे पूजा का मन दहल जाता है?

अकसर सुनती आई हूं कि दहेज को लेकर कई बार महिला आत्मदाह तक कर लेती हैं। आज भी जब ऐसा सुनने को मिलता है तो रूह कांप उठती है।

क्या पद्मावत देखी, देखी तो कैसे लगी?

पद्मावत मूवी देखने का मौका नहीं मिला। हालांकि पद्मावती के बारे में पढ़ा जरूर है। काफी साहसी महिला थीं, जिसने जौहर कर खुद को अग्नि में समर्पित कर दिया था।

पुलिस में न होती, तो क्या कर रही होती? कोई हॉबी जो आपको अलग कर देती है?

अगर मैं पुलिस में नहीं होती, तब भी सिविल सर्विसेज की तैयारी ही कर रही होती। समाजिक कार्य करना ही मेरा शौक है। इससे मुझे सुकून मिलता है।

इतिहास या समाज के किस चरित्र से प्रभावित रही या जो पढ़ा उसमें से कोई पंक्ति सिर या दिल पर छाई रहती है?

मैं स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी के चरित्र से काफी प्रभावित रही हूं। कवि हरिशंकर बच्चन की कविता की कुछ पक्तियां हमेशा याद रही हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

खुद नारी होने पर कब गर्व महसूस होता है?

जब भी किसी लड़की को उच्च मुकाम हासिल करते देखती हूं, तो खुद के नारी होने पर गर्व महसूस होता है।

जब कभी गुनगुनाने का मन होता है, तो पसंदीदा गीत और खेल

जब भी गुनगुनाने का मन करता है तो अरमान मलिक का गाना बोल दो न जरा गुनगुनाती हूं। मेरा पसंदीदा खेल क्रिकेट है।

— सुरेंद्र ठाकुर, हमीरपुर