सिकुड़ रहे हिमाचल के वेटलैंड्स

By: Feb 1st, 2018 12:10 am

प्रदेश को कुदरत ने बख्शी है जन्नत, पर कोई भी सहेज नहीं पाया

शिमला— हिमाचल में तीन अंतरराष्ट्रीय स्तर के व दो राष्ट्रीय स्तर के वेटलैंड्स घोषित हैं। बावजूद इसके प्रदेश में गुजरात, पंजाब, ओडिशा व जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर इन्हें पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की नीति तैयार नहीं हो सकी, जबकि अन्य राज्यों में इन्हीं पर आधारित लाखों पर्यटक हर साल आकर्षित किए जाते हैं। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार व स्वरोजगार के बड़े साधन मिलते हैं और सरकारों को करोड़ों का राजस्व भी हासिल होता है। प्रदेश में आलम यह है कि उचित नियंत्रण व देखभाल की कमी के कारण अब ज्यादातर वेटलैंड्स खत्म हो रहे हैं। हिमाचल में पौंग, श्रीरेणुकाजी व चंद्रताल रामसर साइट्स घोषित हैं। रिवालसर व खजियार राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड घोषित किए गए हैं, मगर इन्हें कभी भी टूरिज्म के लिहाज से विकसित करने के संयुक्त प्रयास संबंधित विभाग नहीं कर पाए, जबकि ओडिशा की चिल्का लेक, पंजाब के हरिके, जम्मू-कश्मीर के मानसर, सुरिंसर और होकसर जैसे वेटलैंड इतने विकसित हैं कि हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक यहां पहुंचते हैं। लेह-लद्दाख में भी यही आलम है, मगर हिमाचल के ये वेटलैंड ऐसे किसी भी बड़े कार्यक्रम के अभाव में अब या तो खजियार की तरह दम तोड़ने लगे हैं या फिर माइग्रेटेड बर्ड्स की आमद तक ही सीमित है। हर साल टूरिज्म के लिए करोड़ों के प्रोजेक्ट आते हैं। वन विभाग के पास भी करोड़ों का फंड निर्धारित रहता है, मगर इन वेटलैंड्स पर आधारित कभी भी कोई बड़ा कार्यक्रम तैयार नहीं हो सका। यदि पौंग को छोड़ दें तो हिमाचल में ऐसा कोई वेटलैंड नहीं है, जिसे पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की योजना भी तैयार की गई हो। इन वेटलैंड्स की कैचमेंट, ट्रीटमेंट तो गाहे-बगाहे होती है, मगर बड़े कार्यक्रम तैयार नहीं होते।

रिवालसर नायाब, पर निखारे कौन

रिवालसर ऐसा वेटलैंड है, जहां बौद्ध, सिख व हिंदू धर्म के अनुयायी पहुंचते हैं। यहीं सात सरें भी हैं, यानी पानी के ऐसे स्रोत, जिन्हें प्रकृति की अनूठी रचना कहा जा सकता है, मगर पर्यटन के लिहाज से इस क्षेत्र के लिए कोई कार्यक्रम तैयार नहीं हो सके। जब यहां मछलियां मरती हैं, सिल्ट बढ़ती है, तभी प्रशासन व संबंधित एजेंसियां जागती हैं।


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