हिमाचल में कितने तेंदुए..किसी को खबर नहीं

By: Feb 2nd, 2018 12:15 am

1990 के बाद नहीं हुई लैपर्ड की गिनती, प्रदेश के कई इलाकों मेें लगातार बढ़ रहे हैं हमले

शिमला— हिमाचल में लैपर्ड्स यानी तेंदुओं के लगातार बढ़ते हमलों के बावजूद प्रदेश में 1990 के बाद इनकी गण्ना नहीं हो सकी। वाइल्ड लाइफ विंग इसके लिए अभी तक भी कोई तैयारी पूरी नहीं कर पाया है, जबकि हिमाचल में शहर से लेकर गांव तक लोग आए दिन बढ़ते तेंदुओं के हमलों के कारण दहशत में जी रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों में लैपर्ड गणना का कार्य लगभग पूरा हो चुका है, मगर हिमाचल व उत्तराखंड इसमें शामिल ही नहीं हो सके, जबकि दोनों ही प्रदेशों में लैपर्ड्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। हिमाचल में वाइल्ड लाइफ विंग ने मुंबई की एक एनजीओ को लैपर्ड बिहेवियर स्टडी का जिम्मा सौंपा है, मगर इसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। प्रदेश के जंगलों में लैपर्ड की बढ़ती संख्या के कारण इसकी फूड चेन का हिस्सा वानर व लंगूर शहरों में शरण ले रहे हैं। वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों ने अध्ययन ही नहीं किया है कि वास्तव में ये तथ्य भी शहरों में वानरों की बढ़ती संख्या के पीछे एक कारण है या नहीं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में लैपर्ड अटैक के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। हर साल औसतन 1200 के करीब ऐसे मामले रिपोर्ट होते हैं। विंग के मुताबिक ऐसे मामले तो आते हैं, मगर इनकी संख्या 100-150 के लगभग ही होती है। हिमाचल में 1990 में जब लैपर्ड सेंसस किया गया था तो उस दौरान जंगलों में इनकी संख्या 65 के लगभग आंकी गई। अब सिकुड़ते जंगलों के कारण इनकी चहलकदमी शहरी क्षेत्रों में भी बढ़ रही है। इस बात की सख्त जरूरत है कि वाइल्ड लाइफ विंग लैपर्ड सेंसस करवाने के लिए जल्द कदम उठाए।

बेशकीमती स्नो लैपर्ड का ही सेंसस

हिमाचल में बर्फानी तेंदुए की गणना लाहुल-स्पीति में जारी है। अभी तक 18 स्नो लैपर्ड रिपोर्ट हुए हैं। यह आंकड़ा खुद में दिलचस्प है, क्योंकि प्रदेश की इस बेशकीमती वाइल्ड लाइफ से आकर्षित होकर विदेशी सैलानी व वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ बड़ी संख्या में स्टडी के लिए यहां पहुंचेंगे। स्नो लैपर्ड की स्टडी अभी तक पूरे विश्व में कहीं भी नहीं हो सकी है। लिहाजा यह बड़ी बात है कि हिमाचल में स्नो लैपर्ड की संख्या में अच्छा इजाफा हो रहा है।

बेहोशी की दवा दागने वाली गन्स का अभाव

विंग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक लैपर्ड के बढ़ते अटैक के बावजूद विंग पर्याप्त संख्या में ट्रैंक्यूलाइजर गन्स हासिल करने में भी सफल नहीं हो सका है। आए दिन ऐसी सूचनाएं मिलती हैं कि तेंदुए घायल अवस्था में मिले, मगर ऐसी बेहोशी की दवा दागने वाली बंदूकों के अभाव में उन्हें समय पर रेस्क्यू सेंटर ही नहीं भेजा जा सका।


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