होली के रंग … प्यार के संग

By: Feb 25th, 2018 12:20 am

जिंदगी जब सारी खुशियां स्वयं में समेट कर प्रस्तुति का बहाना मांगती है, तब प्रकृति मनुष्य को होली जैसा त्योहार देती है। असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इससे जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बांटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है…

त्योहारों का देश है। हर माह यहां कोई न कोई रंग-बिरंगा और सजीला त्योहार होता है। लेकिन माघ एवं फाल्गुन, ये दो माह मदनोत्सव से जुड़े हैं। मदन का दूसरा नाम है-प्रणय, प्रेम और शृंगार। इसलिए यह मौसम ही प्रणय और प्रेम का मौसम बन गया है जिसमें नृत्य, गायन, मस्ती एवं शृंगार की छटा प्रकृति से लेकर इनसान के चेहरों तक पर बिखरी होती है। ये सभी प्रेम का संदेश बांटते हैं। यह वह मौसम है, जिसमें वसंत से प्रकृति भी नई साज-सज्जा व शृंगार से संवरती होली में मस्ती व खुशी से झूमती नजर आती है। भविष्य पुराण के अनुसार नारद जी ने महाराज युधिष्ठिर से कहा, राजन! फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन सब लोगों को अभयदान देना चाहिए, जिससे सारी प्रजा उल्लासपूर्वक हंस सके।

जिंदगी जब सारी खुशियां स्वयं में समेट कर प्रस्तुति का बहाना मांगती है, तब प्रकृति मनुष्य को होली जैसा त्योहार देती है। असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इससे जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बांटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार को हमने कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया है। कभी होली के चंग की झंकार से जहां मन की गांठें खुलती थीं, दूरियां सिमटती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इसलिए हमें इसे ऐसा ही मनाना है, ताकि हमारी संस्कृति भी जीवंत रहे और अपनापन भी बना रहे। अधिकांश लोगों का मन तो उल्लास पर्व होली के इस रंगीले त्योहार में डूबने और खो जाने को ही करता है। रंगों का त्योहार ‘होली’ का पर्व शुरू हो गया है। होलिका रूपी सामाजिक बुराई और आपसी द्वेष को जड़ से मिटाने का त्योहार है ‘होली’। यह त्योहार सिर्फ  भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के अनेक देशों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि होली भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम देशों में पूरे उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर कई दिनों तक समारोह आयोजित किए जाते हैं और आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में भारतीय परंपरा के अनुरूप होली मनाई जाती है। प्रवासी भारतीय दुनिया के जिन-जिन कोनों में जाकर बसे हैं, वहां पर होली मनाने की परंपरा है।

जिस तरह से भारत में कई प्रकार से होली मनाई जाती है, ठीक वैसे ही दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह से होली मनाने का प्रावधान है। कैरिबियाई देशों में लोग इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते हैं। होली का एक उल्लास भरा एहसास एक बार फिर से हमारे घर द्वार आकर इसके रंगों में शामिल होने का न्योता दे रहा है। इस अवसर पर हम भी अहंकार-द्वेष की तमाम सीमाएं तोड़कर क्यों न अपनों के साथ पुनः एक हो जाएं।

अलग अंदाज में  होली

  1. इन दिनों गाय के गोबर से बने कंडों से होली जलाने के लिए सामाजिक स्तर पर जनचेतना अभियान चलाया जा रहा है । यह एक सामयिक कदम है, जिससे गोरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों में सफलता प्राप्त की जा सकती है। मालवा क्षेत्र में प्राचीन काल से ही पर्यावरण मित्र होली की परंपरा रही है। मालवा की प्राचीन नगरी उज्जैन में सिंहपुरी की होली का नाम इसमें प्रमुखता से आता है। उज्जैन शहर में सिंहपुरी में विश्व की सबसे प्राचीन होली हमें पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन का संदेश देती है। वनों को बचाने के लिए यहां लकड़ी से नहीं, बल्कि गाय के गोबर से बने उपलों से पारंपरिक होलिका का दहन किया जाता है। इससे हमारे वन भी बचेंगे और हर तरफ हरियाली बनी रहेगी। इसलिए हमें भी इस गांव से सीख लेनी चाहिए और होली जलाने के लिए लकड़ी नहीं, गोबर के उपलों का प्रयोग करना चाहिए।


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