इन महिलाओं को सलाम… सिर्फ समाजसेवा है काम

भले ही ज्यादातर महिलाएं समाज में बराबरी के हक के लिए लड़ रही हैं, लेकिन इन्हीं के बीच कई ऐसी हैं, जिन्होंने अपने दम पर खुद को पुरुषों से इक्कीस साबित किया है। महिला दिवस के आगमन पर ‘दिव्य हिमाचल’ ने कुछ ऐसी हस्तियों की पड़ताल की…                 -प्रस्तुत है नारी शक्ति का प्रतीक बनी कुछ महिलाओं की गाथा

20 साल से समाजसेवा

बबिता ओबराय महिला साहित्यकार संस्था कांगड़ा इकाई की अध्यक्ष हैं। बबिता साहित्य लिखने के साथ-साथ समाजसेवा का शौक रखती हैं। बबिता ने हाल ही में दर्द का चदचाप किताब भी लिखी है। बबिता पिछले दो दशकों से समाजसेवा से जुड़ी है। साहित्यकार संस्था में जुड़ने के बाद उन्होंने 100 से अधिक गरीब कन्याओं की शादियों के लिए कपड़े, गहना, बरतन, राशन व अन्य जरूरी सामान भी दिया जाता है।

समाजसेवा के लिए पदमश्री

डा. क्षमा मैत्रे चिन्मय ग्रामीण विकास संगठन की राष्ट्रीय निदेशक हैं। डा. मैत्रे को केंद्र सरकार ने समाजसेवा के क्षेत्र में उम्दा कार्य करने के लिए पदमश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है। डा. मैत्रे 1985 से समाज सेवा से जुड़ी हुई हैं। चिन्मय संस्था दिव्यांगों, महिलाओं, ग्रामीणों और युवाओं के उत्थान के लिए कार्य कर रही है।  उन्होंने सर्वप्रथम ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान चलाया था।

गरीब कन्याओं की शादी को सहायता

उमा भगत इन्नरव्हील क्लब में डिस्ट्रिक चेयरमैन की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। उमा वर्तमान में समाजसेवा के साथ-साथ सिटी केबल नेटवर्क के कारोबार में सहयोग करती हैं। उमा पठानकोट एमसी में पार्षद भी रह चुकी हैं। 1999 से उमा इन्नरव्हील क्लब के साथ जुड़ी है । उमा भगत हिमाचल, जम्मू और पंजाब के डिस्ट्रिक चेयरमैन के रूप में कार्यभार देख रही हैं। वर्तमान समय में पंजाब में पोलिथीन को समाप्त करने, हैप्पी स्कूल का निर्माण, स्वच्छता अभियान, गरीब बेटियों की शिक्षा व शादियों पर सहायता के कार्यों पर प्रमुखता से काम किया जा रहा है।

विशेष बच्चों की जिंदगी में मुस्कान ला रही अनुराधा शर्मा

अनुराधा शर्मा धर्मशाला में सूर्योदय चैरिटेबल ट्रस्ट  की संस्थापक हैं। अनुराधा विशेष बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए विशेष स्कूल चला रही हैं।  इसमें शिक्षा ग्रहण करने वाले विशेष बच्चों की कोई आयु सीमा नहीं रखी है। इसमें सबसे प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला सबसे छोटा बच्चा चार साल का है और सबसे अधिक आयु 51 साल के हैं। यह स्कूल अन्य स्कूलों की तरह ही चलता है। इसमें बच्चों को प्रार्थना व योगा से शुरुआत की जाती है। अनुराधा का कहना है कि उनकी सोच इस ट्रस्ट के जरिए इन बच्चों की जिंदगी में रौनक लाना है। अनुराधा ने बताया कि इसमें बच्चों से फीस नहीं ली जाती है मात्र सालाना 900 रुपए रजिस्टे्रशन फीस है। गरीब परिवारों से संबंध रखने वाले बच्चों के लिए निःशुल्क सेवा है।