उफ़ ! यह मौसम
हिमाचल में बारिश होते ही अचानक ठंड बढ़ जाती है और धूप चमकते ही गर्मी पसीने छुड़ाने लगती है। मौसम के इस बदलते मिजाज को देखकर हर कोई अचरज में है। सभी यह सोचने को मजबूर हैं कि आखिर यह क्या हो रहा है…
इस बार के दखल में मौसम के तेवरों की तफतीश कर रहे हैं शकील कुरैशी व टेकचंद वर्मा…
मार्च में ही पसीने छुड़ाने लगी गर्मी
हिमाचल प्रदेश में मौसम साल-दर-साल बदलता जा रहा है। जहां फरवरी माह में कभी कड़ाके की ठंड लोगों को गर्म वस्त्र ओढे़ रहने को मजबूर करती थी। वहीं, अब इस महीने में गर्मी पसीने छुड़ा रही है। मौसम के बदलते रुख से लोग भय भी खाने लगे हैं कि न जाने कब ठंड पड़ जाए और कब गर्मी हो जाए। ऐसे में सर्द-गर्म मौसम कृषि, बागबानी सहित लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है। विंटर सीजन में बारिश-बर्फबारी कम होने से फरवरी व मार्च माह में ही धरती तपने लगी है, जबकि पहाड़ी प्रदेश में दिसंबर से लेकर मार्च माह तक का समय विंटर सीजन में गिना जाता है। मौसम में साल-दर-साल बदलाव आ रहा है, जिसके लिए विशेषज्ञ ग्लोबल वर्मिंग को मुख्य कारण मान रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक तापमान में उछाल आने से पश्चिमी विक्षोभ डिसटर्बेंस फ्रीक्वेंसी कम हो रही है। इससे हिमाचल भी उछूता नहीं रहा है। हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष भी पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता कम रही, जिसके चलते राज्य के अधिकतर क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश व बर्फबारी हुई। हालांकि मौसम में बदलाव प्राकृतिक प्रक्रिया है। मगर मौसम विभाग के अध्ययनों के मुताबिक प्रदेश के मौसम में साल-दर-साल बदलाव आ रहा हैऔर तापमान चढ़ने से स्नो लाइन खिसकने लगी है। स्नो फॉल के दिन घटने लगे हैं। राज्य में हैवी रेन फॉल दिन अभी भी सामान्य हैं। हैवी टू हैवी रेन फॉल दिन चढ़ रहे हैं, जबकि सामान्य बारिश के दिन घट रहे हैं ,जो खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं। बदलाव से कभी सामान्य से अधिक बारिश फसलों को चौपट कर रही है,तो कभी सूखा भारी पड़ जाता है। मौसम विभाग के निदेशक डा. मनमोहन सिंह का कहना है कि मौसम में बदलाव प्राकृतिक प्रक्रिया है। मगर अध्ययनों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का असर मौसम पर पड़ रहा है,जिससे राज्य में असामान्य वर्षा व बर्फबारी हो रही है।
हिमाचल में घटने लगी पश्चिमी विक्षोभ की आमद
हिमाचल प्रदेश में पश्चिमी विक्षोभ की फ्रीक्वेसी घटने लगी है। मौसम विभाग के निदेशक डा. मनमोहन सिंह ने बताया कि अध्ययन के तहत प्रदेश में हैवी रेन फॉल सामान्य है। हैवी टू हैवी रेन फॉल में इजाफा हुआ है। हैवी-टू-हैवी रेन फॉल के दिन बढ़ रहे हैं, जबकि राज्य में सामान्य बारिश के दिन घट रहे हैं। यह बदलाव पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता कम होने के कारण आ रहा है।
इस बार प्रचंड गर्मी
हिमाचल प्रदेश में जहां विंटर सीजन के दौरान सामान्य से कम बारिश हुई। वही समर सीजन में सूरज की किरणें आग उगलेगी। मौसम विभाग के निदेशक डा. मनमोहन सिंह ने बताया कि पूर्वानुमानों के तहत इस समर सीजन के दौरान समूचे हिमाचल प्रदेश में प्रचंड गर्मी पड़ेगी। राज्य के अधिकतर क्षेत्रों में तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। खास तौर पर राज्य के मैदानी इलाकों में प्रचंड गर्मी पड़ेगी। वहीं, पहाड़ों पर भी बीते वर्ष के मुकाबले गर्मी का प्रकोप अधिक रहेगा। ऊना में बीते वर्ष समर सीजन के दौरान अधिकतम तापमान 44.8 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। इस समर सीजन के दौरान सूरज की किरणें आग उगल कर नए कीर्तिमान कायम करेंगी।
बर्फबारी का आंकड़ा (शिमला)
वर्ष दिसंबर जनवरी फरवरी मार्च
2000-01 – 9.9 – –
01-02 – 40.3 100.5 45.9
02-03 0.4 10.2 51.0 –
03-04 0.4 96.6 – –
04-05 – 94.3 30.3 –
05-06 – – – –
06-07 – – 113.0 7.0
07-08 – 1.0 33.2 –
08-09 19.8 8.7 15.0 –
09-10 – 1.8 – –
10-11 13.0 8.5 10.0 –
11-12 – 95.0 24.4 –
12-13 9.0 63.6 20.2 –
13-14 7.8 25.3 30.0 12.9
14-15 38.1 0.7 9.0 26.0
15-16 0.3 2.1 22.6 –
16-17 3.0 82.7 – 20.8
17-18 – 7.0 13 –
कल्पा
वर्ष दिसंबर जनवरी फरवरी मार्च
00-01 14 153.3 157 675.4
01-02 50.3 93.1 174.6 159
02-03 2 45.5 139.9 85.6
03-04 75.1 117 43.9 –
04-05 13.9 142.8 154 89.4
05-06 1.8 149 30.1 88
06-07 37.8 – 82.3 134.9
07-08 65.6 181.8 53.3 –
08-09 – 45.2 49.4 15.8
09-10 24.1 35.4 84.7 –
10-11 85.8 63.1 151.1 68.1
11-12 – 93.2 151.7 31.5
12-13 18 150.7 244.7 77.4
13-14 9.4 78.1 133 61
14-15 52 89.9 236 204
15-16 15 23 24.6 45
16-17 5 159 28.6 86.4
17-18 5 3 – –
जनवरी-फरवरी में बारिश के आकड़े
जिला सामान्य बारिश
बिलासपुर 129.3 50.4
चंबा 239.0 75.3
हमीरपुर 134.4 54.0
कांगड़ा 163.2 58.3
किन्नौर 209.9 28.6
कुल्लू 183.9 73.6
लाहुल-स्पीति269.9 51.8
मंडी 138.6 56.2
शिमला 139.4 44.2
सिरमौर 111.7 61.7
सोलन 137.8 54.9
ऊना 91.4 42.3
शिमला, कुल्लू, किन्नौर कल्पा, मनाली में घट रही बर्फ
मौसम विभाग के मुताबिक प्रदेश में पांच जगहों पर स्नो लाइन घटती जा रही है जिसमें जिला शिमला, कुल्लू, किन्नौर, कल्पा और मनाली के नाम हैं। कभी यहां पर बड़ी मात्रा में बर्फबारी होती थी और कई-कई दिनों तक लोगों को भी परेशानियां झेलनी पड़ती थीं। पिछले कुछ साल से देखा जा रहा है कि इन स्थानों,जो कि बर्फबारी के लिए प्रमुख थे,वहां बर्फ नाममात्र की ही गिरती है। सर्द मौसम में अब कभी कभार ही बर्फबारी होती है और होती भी है तो बहुत कम मात्रा में बर्फ पड़ रही है। इससे पहले बर्फबारी होने के बाद कई-कई दिनों तक यहां पर बर्फ देखी जा सकती थी,लेकिन अब एक दिन के बाद दूसरे दिन बर्फ नजर नहीं आती।
बरसों पुरानी रीत भी बदल गई…
सर्दियों में हिमाचल में कुछ खास महीने ऐसे रहते थे,जब यहां बर्फबारी होने की पूर्व ही आशंका रहती थी। नवंबर महीने से जनवरी महीने तक यहां जमकर बर्फबारी होती थी। हिल्सक्वीन शिमला की ही बात करें तो यहां के लोगों को यह मालूम रहता था कि इन महीनों में बर्फ पड़ेगी और जमकर पड़ेगी, लेकिन अब वैसी बर्फबारी देखने को नहीं मिलती। इसी साल की बात करें तो अभी तक दो या तीन दफा यहां बर्फ पड़ी मगर कुछ घंटों में ही पिघल गई।
सरकार के समक्ष अहम चुनौतियां
खेतीबाड़ी को बढ़ावा देना
मौसम के इस बदलते मिजाज के बाद सरकार के सामने कई अहम चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती किसान को प्रोत्साहित कर पारंपरिक खेती की ओर वापस ले जाने की है, जिसके लिए सरकार की ओर से कई तरह की योजनाएं चल रही हैं। किसानों को मृदा संरक्षण से जुड़ी सुविधाएं दी जा रही हैं । वहीं यह तक बताया जा रहा है कि किस मौसम में कौन सी फसल का उत्पादन कब किया जाए। कृषि क्षेत्र के लिए सरकार ने आगामी वित्त वर्ष में कई तरह की योजनाएं केवल इसीलिए शुरू करने की सोची है, ताकि किसानों को राहत मिले और यहां कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाया जा सके।
खेतों तक पानी पहुंचाना
वर्ल्ड बैंक और ब्रिक्स के माध्यम से करोड़ों रुपए का प्रोजेक्ट सिंचाई योजनाओं के लिए हासिल करने को भी सरकार प्रयास कर रही है। सिंचाई सुविधा को बढ़ाने के लिए फोकस किया जा रहा है, जिसके लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में भी करोड़ों रुपए की योजनाएं केंद्र सरकार को भेजी गई हैं। इसमें 300 करोड़ रुपए से ज्यादा की एक शैल्फ पहले ही मंजूर हो चुकी है। वहीं एनआरडीडब्ल्यूपी योजना में भी पैसा केंद्र सरकार से मांगा गया है।
वनों को आग से बचाना जरूरी
राज्य सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती वनों को आग से बचाने की भी है। आम तौर पर लोग अच्छे घास के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं, जिसे पूरा जंगल नष्ट हो जाता है। ऐसे मामलों पर लगाम लगाने के लिए वर्तमान सरकार ने सख्ती से निपटने की सोची है। क्योंकि समय पर बारिश नहीं हो रही है,इसलिए जंगलों को भी राहत नहीं मिलती। जंगलों की आग को रोकने के लिए प्रदेश में विशेष अभियान छेड़ा गया है, जिसमें लोगों को जागरूक किया जा रहा है। वहीं चीड़ की पत्तियों को एकत्र कर उनका उपयोग छोटे उद्योगों में करने पर भी बल दिया जा रहा है।
फसलों का मुआवजा
किसान की फसल खराब हो जाती है, जिसका मुआवजा भी अब सरकार को देना पड़ता है। इस पर भी करोड़ों रुपए का खर्च होता है। इसलिए सरकार ने फसल बीमा जैसी योजनाएं चलाई हैं, ताकि किसानों को कुछ हद तक राहत मिले । बावजूद इसके किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है। फसलों के साथ फलों के लिए भी सरकार फसल बीमा दे रही है। यही नहीं, केंद्र सरकार ने भी कुछ फसलों को इसमें शामिल कर किसानों को राहत देने की बात कही है, जिसका लाभ भी हिमाचल को मिल सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ रहा खतरा
डा. मनमोहन सिंह
निदेशक, मौसम विभाग
दिहिः क्यों बदल रहा है हिमाचल का मौसम? कौन से प्रमुख कारण?
डा. मनमोहन सिंह ः ग्लोबल वार्मिंग से ही मौसम में बदलाव आ रहा है। हिमाचल का मौसम भी इससे अछूता नहीं है। हिमाचल का मौसम स्थिर नहीं है। इसमें उतार-चढ़ाव चल रहा है। यह क्रम आगामी वर्षों में भी जारी रहेगा। अध्ययन के तहत पर्याप्त बारिश-बर्फबारी के लिए पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय रहने की आवश्यकता रहती है। मगर पश्चिमी विक्षोभ के धीमे पड़ने से प्रदेश में सामान्य से कम बारिश-बर्फबारी हुई है। मौसम में बदलाव के लिए पेड़ कटान व भवन निर्माण का कोई सीधा असर नहीं पड़ रहा है।
दिहिः विभिन्न क्षेत्रों में असामान्य वर्षा क्यों और हिमपात भी हो रहा है कम? कहां खिसकी स्नो लाइन?
डा. मनमोहन सिंह ः प्रदेश के मौसम पर ग्लोबल वार्मिंग का असर पड़ रहा है। यही कारण है कि कुछ स्थानों पर सामान्य से अधिक बारिश हो रही और कुछ स्थानों पर बादल सामान्य से कम बरस रहे हैं। बारिश-बर्फबारी पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता व कोर पर निर्भर रहती है। मगर तापमान में उछाल आने से पश्चिमी विक्षोभ भी प्रभावित हो रहा है। असामान्य मौसम के चलते जिला शिमला, कुल्लू, कल्पा, किन्नौर व मनाली में स्नो लाइन खिसक रही है।
दिहिः क्या उम्मीद की कोई किरण बाकी है? क्या मानें, कैसा होगा आगामी कल?
डा. मनमोहन सिंह ः मौसम में बदलाव प्राकृतिक प्रक्रिया है। यह भी नहीं कहा जा सकता है कि आगामी समय में बारिश-बर्फबारी कम होगी। मगर तापमान में चढ़ाव के चलते स्नो लाइन खिसक रही है। बारिश-बर्फबारी के दिन कम हो रहे हैं और विंटर सीजन जल्द सिमटने लगा है, जो चिंता का विषय है।
दिहिः बदलते मौसम के संदर्भ में हिमाचल के पास क्या विकल्प है? कैसे बचाएं और क्या कुछ करें?
डा. मनमोहन सिंह ः मौसम में बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के चलते आ रहा है। इसे केवल मात्र पर्यावरण संरक्षण कर ही रोका जा सकता है। इसके लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, आसपास ग्रीनरी कायम रखनी होगी। पर्यावरण को दूषित करना आगामी समय में जन मानस के लिए घातक साबित हो सकता है।
दिहिः आपका विभाग हिमाचली जनमानस को क्या संदेश देना चाहेगा?
डा. मनमोहन सिंह ः मौसम स्थिरता रखने के लिए पर्यायवरण में संरक्षण आवश्यक है। जनता को आसपास ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे। वाहनों का कम प्रयोग करना, कूड़ा कर्कट खुले में न फेंकना और आस-पास स्वच्छता कायम रखे।
दिहिः अब तक के संकेतों और रिसर्च के आधार पर बताएं कि गर्मियों में कैसा रहेगा मौसम?
डा. मनमोहन सिंह ः समर सीजन में मौसम के मिजाज कड़े रहेंगे। हिमाचल में इस समय सीजन के दौरान चिलचिलाती गर्मी पड़ेगी। मैदानों के साथ-साथ पहाड़ों पर भी भारी गर्मी पड़ेगी, जबकि मानसून में सामान्य बारिश की उम्मीदें हैं।
खड्ड-नदियों में घट रहा जलस्तर
कम बर्फबारी का असर नदियों व खड्डों पर भी पड़ रहा है। पहाड़ों पर भी बर्फबारी कम मात्रा में हो रही है, जिस कारण ग्लेशियरों में उतनी बर्फ नहीं है और गर्मियों में वहां से पानी कम आ रहा है,जिससे नदियां व खड्डें भी लगातार सूखने लगी हैं। इस पर पावर प्रोजेक्टों की मार भी उन पर पड़ रही है। ये सभी तरह के बदलाव मौसम की वजह से है, जिसे मौसम विज्ञानी भी मान रहे हैं। उनका कहना है कि यदि इस तरह से और कई साल स्नो लाइन घटती रही, मौसम का मिजाज यूं ही रहा तो संकट के बादल खड़े हो सकते हैं। मौसम परिवर्तन के कारण पहाड़ी राज्य में स्नो लाइन लगातार घटती जा रही है। जहां कभी हिमाचल को बर्फबारी के लिए जाना जाता था,वहां अब उतनी बर्फ देखने को लोग तरस गए हैं। यही नहीं, इसका सीधा असर प्रदेश की आर्थिकी पर पड़ रहा है क्योंकि इस वजह से अब पर्यटकों का रुझान भी यहां कम होने लगा है। जलवायु के इस परिवर्तन ने हिमाचल की आर्थिकी की रीढ़ तोड़ डाली है। गांव में रहने वाला किसान पहले यहां की आर्थिकी का सबसे बड़ा कारक रहता था, लेकिन अब इसमें बदलाव आने शुरू हो गए हैं।
मौसम के नखरों ने छुड़ाई खेती
हिमाचल में मौसम परिवर्तन एक बड़ा कारण है कि आज लोग पारंपरिक खेती को छोड़ने पर मजबूर हैं। गांव से लोग खेती छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं क्योंकि समय पर उनकी फसल नहीं हो पाती। एक तरफ बंदरों व आवारा पशुओं की समस्या है तो दूसरी ओर सबसे बड़ी समस्या मौसम परिवर्तन है। मौसम का मिजाज बिगड़ने से यहां पता नहीं चलता कि कब बारिश होगी या फिर फिर कब तक सूखा रहेगा। पहाड़ी राज्य के लोग अपनी खेती के लिए सालों से पूरी तरह से मौसम पर निर्भर करते हैं क्योंकि यहां पर सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी खेतों तक नहीं पहुंच पाता। अधिकांश खेती वर्षा जल पर ही निर्भर करती है। लेकिन समय पर वर्षा नहीं होने के कारण खेतों को नमी नहीं मिलती,जिससे फसल ही बर्बाद हो जाती है। कई दफा ऐसे मौके देखने को मिल रहे हैं कि जब किसानों को अपनी फसल के लिए बारिश की जरूरत होती है तो वह नहीं होती और तब बारिश हो जाती है जब उसकी जरूरत नहीं होती। ऐसे में लगातार बदलने ही मौसम के कारण लोगों को खेती छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है। बड़ी संख्या में लोग यहां पारंपरिक खेती को छोड़ चुके हैं। लोगों ने अपने खेतों में मकान बना लिए हैं या दुकानें बनाकर स्वरोजगार की दिशा में काम कर रहे हैं। एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिनका परिवार पहले खेतीबाड़ी से ही चलता था,लेकिन अब वो लोग नौकरी करने को मजबूर हैं और नौकरी के लिए ये लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
तापमान में भी उछाल
मौजूदा विंटर सीजन के दौरान जनवरी माह के दौरान न्यूनतम तापमान भी सामान्य से अधिक रिकार्ड किया गया। राजधानी शिमला की बात करें तो जनवरी माह के दौरान शिमला में न्यूनतम तापमान 4.7 डिग्री रिकार्ड किया गया, जो सामान्य से 2.1 डिग्री अधिक है। इसके अलावा कल्पा में -2.2 डिग्री, जो सामान्य से 1.7 डिग्री अधिक है।
घटने लगे बारिश के दिन
हिमाचल प्रदेश में सामान्य बारिश के दिन घटने लगे हैं। हालांकि राज्य में हैवी टू हैवी रेन फॉल के दिनों में इजाफा आया है और हैवी रेन फॉल के दिन भी सामान्य है। मगर सामान्य बारिश के दिनों में गिरावट आना खतरे की ओर इशारा कर रहा है। विंटर सीजन के दौरान जनवरी व फरवरी माह से भी सामान्य से कम बारिश हुई है। इन दो माह के दौरान सामान्य बारिश 72 फीसदी कम आंकी गई है। जनवरी माह के दौरान सामान्य से 9 प्रतिशत, फरवरी में 50 प्रतिशत और मार्च माह में अब तक सामान्य से 60 फीसदी कम बारिश हुई है।
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