करियर का रंगमंच

By: Mar 21st, 2018 12:20 am

चंद साल पहले थियेटर फुलटाइम प्रोफेशन के तौर पर सोचना भी मुश्किल था, लेकिन अब थियेटर कई मौकों के साथ मेन स्ट्रीम करियर बन चुका है। अगर आपके व्यक्तित्व में रचनात्मक अभिव्यक्ति से दूसरों को आकर्षित करने का हुनर है, अभिनय में रुचि और दमदार आवाज है, तो ये गुण आपको जिंदगी संवारने का रास्ता दिखा सकते हैं…

ड्रामा या नाट्य विधा के प्रति युवाओं में हाल के वर्षों में तेजी से क्रेज बढ़ा है। ड्रामा को परफार्मिंग आर्ट का भी दर्जा दिया जा सकता है। अगर आपके व्यक्तित्व में रचनात्मक अभिव्यक्ति से दूसरों को आकर्षित करने का हुनर है, अभिनय में रुचि और दमदार आवाज है, तो ये गुण आपको जिंदगी संवारने का रास्ता दिखा सकते हैं। आदिकाल से आज तक इसका सिर्फ  स्वरूप ही बदला है, लेकिन अदायगी और अभिनय में बहुत अंतर नहीं देखा जा सकता है। स्कूलों और कालेजों में इस तरह की ड्रामेटिक सोसायटीज हैं, जहां युवाओं की बढ़ती भागीदारी से इस कला की ओर युवाओं का बढ़ता आकर्षण सहज ही देखा जा सकता है। स्टेज ड्रामा को मात्र रामलीला में किए जाने वाले विभिन्न पात्रों के अभिनय के स्तर तक ही रखकर नहीं देखा जा सकता है, बल्कि दुनिया भर में कितने ही नामी कलाकार इस विधा की देन हैं।

बालीवुड तक में ऐसे मझे हुए स्टेज कलाकारों की संख्या कम नहीं है, जिन्होंने अपने प्रोफेशनल करियर का सफरनामा रंगमंच की स्टेज से शुरू किया था। थियेटर का जुनून आज भी वही है, लेकिन रंगमंच के लिए एक बदलाव बहुत स्पेशल है। पुरानी बातें, सोच-विचार बदले हैं और आज थियेटर को करियर के तौर पर अच्छा ऑप्शन माना जाने लगा है। चंद साल पहले थियेटर फुल टाइम प्रोफेशन के तौर पर सोचना भी मुश्किल था, लेकिन अब थियेटर कई मौकों के साथ मेन स्ट्रीम करियर बन चुका है। इस करियर में नाम के साथ अच्छी आमदनी भी अर्जित की जा सकती है। अगर आप इस करियर को अपनाना चाहते हैं, तो आपको मन से इस में अपना सौ फीसदी देना होगा, तभी आप इससे सौ फीसदी प्राप्त कर सकते हैं।

क्या है रंगमंच

रंगमंच यानी थियेटर वह स्थान है, जहां नृत्य, नाटक, खेल आदि हों। रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों के मिलने से बना है। रंग इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है। अभिनेताओं की वेशभूषा तथा सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है और मंच इसलिए प्रयुक्त हुआ है कि दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फर्श से कुछ ऊंचा रहता है। दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह रंगशाला या नाट्यशाला या नृत्यशाला कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे थियेटर या ऑपेरा नाम दिया जाता है।

आविर्भाव

ऐसा समझा जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। अनुमान किया जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लोगों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ। यथासमय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को व्यक्त किया है। नाटकों का विकास चाहे जिस प्रकार हुआ हो। संस्कृत साहित्य में नाट्य ग्रंथ और तत्संबंधी अनेक शास्त्रीय ग्रंथ लिखे गए और साहित्य में नाटक लिखने की परिपाटी संस्कृत आदि से होती हुई हिंदी को भी प्राप्त हुई। संस्कृत नाटक उत्कृष्ट कोटि के हैं और वे अधिकतर अभिनय करने के उद्देश्य से लिखे जाते थे और अभिनीत भी होते थे। नाट्यकला प्राचीन भारतीयों के जीवन का अभिन्न अंग थी।

शैक्षणिक योग्यता

ग्रेजुएशन के बाद कम से कम एमए इन ड्रामा या एमए इन थियेटर होना जरूरी है। डिग्री नहीं तो एक साल का कोर्स भी किया जा सकता है। देश के कई संस्थान इस संबंध में डिग्री या डिप्लोमा करवाते हैं।

पाश्चात्य रंगमंच

यूनान और रोम की प्राचीन सभ्यता में हम चौथी शताब्दी ई.पूर्व में रंगमंच होने की कल्पना कर सकते हैं। इतिहास प्रसिद्ध डायोनीसन का थियेटर एथेंस में उस काल की याद दिलाता है। एक अन्य थियेटर एपिडारस में है, जिसका नृत्यमंच गोल है। 364 ई. पूर्व रोम वाले इट्रस्कन अभिनेताओं की एक मंडली अपने नगर में लाए और उनके लिए सर्कस मैक्सियस में पहला रोमन रंगमंच तैयार किया।

आधुनिक रंगमंच

आधुनिक रंगमंच का वास्तविक विकास 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से आरंभ हुआ और विन्यास तथा आकल्पन में प्रति वर्ष नए-नए सुधार होते रहे हैं।  सामाजिक और आर्थिक दशा में परिवर्तन होने से भी कुछ सुधार हुआ है। अभी कुछ ही वर्ष पहले के थियेटर, जिनमें अनिवार्यतः खंभे, छज्जे और दीर्घाएं हुआ करती थीं, अब प्राचीन माने जाते हैं।  समय की कमी के कारण आजकल नाटक बहुधा अधिक लंबे नहीं होते और इनको अधिक से अधिक रोचक बनाने की कोशिश की जाती है।

वेतनमान

रंगमंच के क्षेत्र में आय के बारे हिसाब लगाना मुश्किल है। करोड़ों में एक फिल्म करने वाले कई स्टार इसी रंगमंच से गए हैं। इस में आय की कोई सीमा नहीं है। महीने के एक लाख से लेकर घंटे के एक लाख भी मिलते हैं।

प्रमुख शिक्षण संस्थान

  हिमाचल संस्कृति शोध संस्थान एवं नाट्य रंगमंडल, मंडी (हिप्र)

  भारतेंदु नाट्य अकादमी फॉर ड्रामाटिक आर्ट्स, लखनऊ

 पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़

  मुंबई यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र

  नेशनल स्कूल ऑफ  ड्रामा, नई दिल्ली

  फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीच्यूट, पुणे

  श्रीराम भारतीय कला केंद्र, कोपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली

  जी अकादमी ऑफ  मीडिया आर्ट्स, मुंबई

एंट्रेंस एग्जाम

देश में नाट्यकला पर आधारित औपचारिक ट्रेनिंग गिने-चुने संस्थानों में उपलब्ध है। प्रायः इनमें अत्यंत सीमित सीटों की वजह से काफी गहन प्रतिस्पर्धा की स्थिति दाखिले के लिए देखने में मिलती है। देश के कई संस्थानों में एंट्रेंस एग्जाम की प्रक्रिया को महत्त्व दिया जाता है।  एनएसडी एंट्रेंस एग्जाम एनएसडी अथवा नेशनल स्कूल ऑफ  ड्रामा, नई दिल्ली को इस कला के शीर्ष ट्रेनिंग संस्थान होने का गौरव प्राप्त है। संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के अधीन स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में यह लंबे समय से कार्यरत है। यहां पर तीन वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ड्रामेटिक आर्ट्स कोर्स का आयोजन किया जाता है। भारतेंदु नाट्य अकादमी फॉर ड्रामाटिक आर्ट्स एंट्रेंस एग्जामः अकादमी लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा स्वायत्तशासी संस्थान के रूप में स्थापित की गई है। यहां पर कई तरह के कोर्स इस विधा के विविध आयामों पर संचालित किए जाते हैं, जिसमें दो वर्षीय नाट्य कला पर आधारित कोर्स प्रमुख हैं। इसके बाद एक वर्षीय इंटर्नशिप भी अनिवार्य तौर पर करवाई जाती है ताकि पूरी तरह से प्रोफेशनल बनाकर ही रंगमंच की दुनिया में इन्हें उतारा जाए।

रोजगार की संभावनाएं

रंगमंच में रोजगार के अवसर भी अपार हैं और पैसा भी बेशुमार। अब सभी विश्वविद्यालय इस रंगमंच को तवज्जो दे रहे हैं। लिहाजा अध्यापन में भी अवसर हैं। दर्जनों निजी संस्थान इस फील्ड में आगे आए हैं। टीवी और फिल्म क्षेत्र में अवसरों की भरमार है।

बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहयोगी

मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों के अनुसार बच्चों के सर्वांगीण विकास में रंगमंच का एक बहुत बड़ा योगदान है। यही वह माध्यम है, जिसके द्वारा बच्चा एक बड़े समुदाय के साथ जुड़ सकता है। उसके अंदर समूह में कार्य करने के साथ ही नेतृत्व की क्षमता भी विकसित होती है। शिक्षा में रंगमंच की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। इसकी आवश्यकता का अनुभव सर्व प्रथम यूरोप में किया गया। जहां सन् 1776 में मैडम जेनेसिस ने थियेटर ऑफ  एजुकेशन की स्थापना की और बच्चों को प्रशिक्षित करके नाटकों का मंचन किया तथा रंगमंच को शिक्षा में लाने की शुरुआत हुई। हमारे देश में सन् 1965 में शैक्षिक रंगमंच की शुरुआत हुई।

रंगमंच एक अथाह समुद्र, गोता लगाने से कुछ मिलेगा

रंगमंच में करियर से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने संजीव अरोड़ा से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश…

संजीव अरोड़ा

संस्थापक प्रणव थियेटर, बियोंड थियेटर, सोलन

आधुनिकीकरण के इस दौर में रंगमंच कहां खड़ा है?

कुछ इस तरह के लोग जिन में रंगमंच का जुनून है, इसे जिंदा रखे हुए हैं और इसे बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं। उनके निरंतर प्रयास से एक बार फिर आज के इस दौर में युवा पीढ़ी का रुझान रंगमंच की तरफ बढ़ा है। आज लगभग हर शहर में कुछ नाटक दल उभर कर आए हैं, जो निरंतर इस कार्य में लगे हैं।

रंगमंच थियेटर में युवाओं के लिए करियर के क्या स्कोप हैं?

रंगमंच या थियेटर में युवाओं के करियर का एक विशाल स्कोप है। थियेटर वह जगह है जहां उन्हें अपनी आवाज, अपनी प्रतिभा अभिनय कला और  व्यक्तित्व को निखारने का मौका मिलता है। जिसके चलते उन्हें भविष्य में रंगमंच, टीवी सीरियल, टीवी चैनल्ज और फिल्मों में काम करने के सुनहरे अवसर मिलते हैं। इसके अतिरिक्त स्कूल कालेजों में उन्हें वर्कशॉप करवाने का, स्कूल के बच्चों को नाटक करवाने से भी लाभ पहुंचता है। सरकारी नौकरियों में लोक संपर्क विभाग में ड्रामा इंस्ट्रक्टर के पद भी हैं।

इस क्षेत्र में करियर के लिए शैक्षणिक योग्यता क्या है?

वैसे तो थियेटर के लिए शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। मगर फिर भी कुछ ऐसी शैक्षणिक संस्थाएं है, जो नाटक की डिग्री व डिप्लोमा करवाती हैं। उस संदर्भ में शिक्षा का बीए होना अनिवार्य है।

रंगमंच का पाठ्यक्रम चलाने वाले देश के प्रमुख संस्थान कौन से हैं?

देश में सबसे बड़ी संस्था जो नाटक का डिप्लोमा करवाती है एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा)है। इस संस्थान से देश के बहुत से नामी कलाकार निकले हैं, जिन में नसरुदीन शाह, मनोहर सिंह, ओम पुरी, नवाजुदीन , सीमा विसवास जैसे अनेकों कलाकार शिक्षा प्राप्त कर सिनेमा जगत में नाम कमा चुके हैं।

हिमाचल में रंगमंच का पाठ्यक्रम कहां चलता है?

हिमाचल के मंडी जिला में हिमाचल कलचरी रिसर्च फारम एवं थियेटर रिपैट्री के नाम से एक संस्था है जो कि थियेटर की शिक्षा प्रदान करवाती है। सोलन में प्रणव थियेटर बियोंड थियेटर भी कलाकार तैयार कर रहा है। मगर कोई डिप्लोमा व डिग्री नहीं देता। इस संस्था के कुछ कलाकार आज टीवी सीरियल्स में काम कर रहे हैं।

रंगमंच में पदार्पण के लिए युवा में क्या खास गुण होने चाहिए?

थियेटर करने के लिए सबसे जरूरी है जुनून और कुछ नया करने की चाहत। अगर ये दो चीजें आप में हैं, तो आप थियेटर के लिए उपयुक्त हैं।

आमदनी इस फील्ड में कितनी होती है?

थियेटर में आमदनी को लेकर कोई सीमा नहीं है। वह सब आप की काबिलीयत व क्षमता पर निर्भर करता है। आज रंगमंच देखने वाले 10,000/- रुपए की एक टिकट खरीद कर भी नाटक देख रहे हैं। हाल ही में मुगले -आजम के थियेटर शो में टिकट के दाम 10,000 /- से शुरू थे और 6 महीने तक हर शो बुक चल रहा है। यानी रंगमंच में आय की कोई सीमा नहीं है।

युवाओं के लिए रंगमंच में क्या चुनौतियां हैं?

टेलेंट, आत्मविश्वास और संयम। आज युवाओं में संयम नहीं है वह सब कुछ तुरंत पा लेना चाहते हैं जबकि थियेटर में निरंत अभ्यास करना पड़ता है, साधना करनी पड़ती है और खुद को आग में तपा कर कुंदन बनना पड़ता है।

रंगमंच को करियर के तौर पर चुनने वाले युवाओं के लिए कोई प्रेरणा संदेश दें?

रंगमंच करने वालों और रंगमंच करने की चाह रखने वालों से बस मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि रंगमंच अथाह समुद्र के समान है। इसमें से कुछ पाने के लिए गोता लगाना पडे़गा।

– पंकज सूद, मटौर


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