केवल हमारी गलती पर ही…सभी की नजर

By: Mar 8th, 2018 12:05 am

आपाधापी के इस दौर में कामकाजी महिलाएं जिम्मेदारी की डोर से बंधी हुईं हैं। समाज, परिवार और कारोबार में जिम्मेदारी का एहसास और समय का सही प्रबंधन ही वह अस्त्र है, जिससे कि महिलाएं तमाम मुसीबतों पर विजय पा रही हैं। ऐसी कामकाजी महिलाओं के जज्बे को सलाम, जो अपने परिवार के पालन-पोषण से लेकर दफ्तर और कारोबार की जिम्मेदारी भी सहज तरीके से निभा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर प्रदेश का अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ ऐसी ही खुद्दार महिलाओं से आपको रू-ब-रू करवा रहा है…..

भावना शर्मा की रपट

समय का सदुपयोग जरूरी

हर कामकाजी महिला प्रतिदिन अपने ऑफिस और घर की जिम्मेवारियों को बखूबी निभाती है। ऑफिस कार्य से तो सप्ताह में एक दिन का अवकाश मिल भी जाता है, लेकिन घर पर जिम्मेवारी हफ्ते की सातों दिन रहती है। संयुक्त निदेशक खेल विभाग सुमन रावत का कहना है कि जब जिम्मेवारी दोनों जगह की है तो ऐसे में एक कामकाजी महिला के लिए समय प्रबंधन अहम हो जाता है। मैं खुद भी अपने समय को इस तरह से बांटती हूं कि अपने ऑफिस कार्य और घर की जिम्मेवारियों को एक समान रूप से बांट सकूं।

घर की जिम्मेदारी बांटने से राहत

घर और ऑफिस को संभालना अपने आप में ही एक बड़ी बात है। ऑफिस में तो एक कामकाजी महिला को खुद ही कार्य को संभालना होता है ऐसे में अगर घर की जिम्मेवारियां बांट दी जाए तो कामकाजी महिला के लिए ये राहत की बात है। भाषा एवं संस्कृति विभाग की निदेशक रूपाली का कहना है कि एक महिला जब अपने कार्य क्षेत्र और घर दोनों में सामाजस्य बैठा सकती है तो ऐसे में अगर उसे पारिवारिक सहयोग मिले तो वो सोने पर सुहागा वाली बात है। घर की जिम्मेवारियों को अगर पति भी समझे तो एक कामकाजी महिला के लिए यह बड़ी राहत की बात है।

योग देता है सामंजस्य की शक्ति

अपने कार्य क्षेत्र और घर परिवार में सामाजस्य बनाने से कामकाजी महिला के लिए कुछ भी करना नामुमकीन नहीं है। शिमला के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में बतौर केशियर कार्यरत शम्मी शर्मा का कहना है कि कामकाजी महिला को घर और ऑफिस की जिम्मेवारियों की अधिकता के चलते तनाव होना आम है, लेकिन वो इस तनाव से निकलने के लिए योग का सहारा लेती है। योग करने के लिए वो सुबह 4 बजे उठती है और उसके बाद परिवार की जिम्मेवारी निभा कर 9 बजे कार्यालय पहुंचती है। उनका कहना है कि कामकाजी महिला को अपने ऊपर ध्यान दे कर अपने तनाव को कम कर अपने जिम्मेवारियों को भी बखूबी निभाना चाहिए।

काम को प्राथमिकता जरूरी

काम चाहे ऑफिस का हो या फिर घर-परिवार का सबसे जरूरी जो है वो है अपने कार्य को प्राथमिकता देना। पोर्टमोर स्कूल में बतौर शिक्षिका कार्यरत तृप्ता शर्मा का कहना है कि अपने काम के अनुसार ही मैं समय प्रबंधन करती हूं। अगर हम किसी भी जिम्मेवारी को त्वज्जो न देकर उसे प्राथमिकता नहीं देंगे तो उसके चलते परेशान हो सकती है, लेकिन अगर हम समय को पूरी तरह से हर कार्य के लिए बांट ले तो हर कार्य आसान होगा। ऐसा करने से जहां कामकाजी महिलाएं अपने ऑफिस और घर को बेहतर तरीके से संभाल पाएगी तो वही अपने लिए भी अपने शौक के लिए भी समय निकाल सकती है।

हर हरकत पर रहती है नजर

एसजेवीएन में बतौर पीआरओ कार्यरत देवकन्या का कहना है कि  महिला पर उसके कार्यालय में हर एक छोटी सी छोटी गतिविधियों पर ध्यान रखा जाता है। उसकी छोटी सी चूक होने का सभी को इंतजार रहता है कि उस पर उसके काम पर उंगली उठाई जा सके। इसी वजह के चलते  एक कामकाजी महिला को अपने कार्य क्षेत्र में दोगुना काम करके खुद को साबित करना पड़ता है। अपना शत-प्रतिशत देने के बाद भी महिलाओं को बेहतर अवसर कार्य क्षेत्र में आगे आने के लिए नहीं दिए जाते हैं। इसके अलावा समाज की नजर हर गलती पर रहती है।

शिक्षण संस्थान जगाएं अलख

समाज में आज भी बेटा-बेटी में फर्क किया जा रहा है। समाज में आज भी समानता का अधिकार महिलाओं को नहीं दिया जा रहा है।  हर समय एक नजर महिलाओं पर बनी रहती हैं। लड़कियां लड़कों की अपेक्षा  बेहतर करने के बावजूद भी समाज के निशाने पर रहती हैं। एचपीयू की छात्रा शिल्पा गौतम का कहना है कि इस सोच को बदलने की जरूरत है। इसके लिए शैक्षणिक संस्थान अहम भूमिका निभा सकते हैं। शिक्षण संस्थानों में इस तरह के सेमीनार करवाने की पहल की जानी चाहिए।


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