खिलाडि़यों को रोजगार से जोड़ते भूपिंदर

By: Mar 7th, 2018 12:10 am

भूपिंदर सिंह आज तक 1000 एथलेटिक्स खिलाडि़यों को प्रशिक्षण के जरिए रोजगार प्राप्त करवा चुके हैं। उनके शिष्य स्पोर्ट्स कोटे के जरिए पुलिस, आर्मी, टीचर, प्रोफेसर आदि पदों पर सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं, उनके दो खिलाडि़यों पुष्पा ठाकुर व संजो देवी को परशुराम अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है…

दादा व पिता से प्रेरित होकर भूपिंदर सिंह ने एथलेटिक्स में जो सपना देखा था, उसे पूरा करने में दिन-रात लगे हुए हैं। खिलाडि़यों को अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जा रहा है, ताकि ज्यादा से ज्यादा खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर सकें। खिलाड़ी भी भूपिंदर सिंह की देखरेख में कड़ा अभ्यास कर रहे हैं।  मंडी जिला के सरकाघाट तहसील में डगवाणी गांव के शाक्ति चंद व पार्वती देवी के घर में तीन अप्रैल, 1962 को राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक भूपिंदर सिंह ने जन्म लिया था। वह तीनों बहनों से बड़े हैं। उनकी बहनें शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत हैं। भूपिंदर सिंह के दादा स्व. मोहन सिंह व पिता शक्ति चंद आर्मी में थे। वे भी एथलेटिक्स में भाग लिया करते थे। उन्हीं से प्रेरित होकर भूपिंदर सिंह ने बचपन से ही एथलेटिक्स में रुचि लेना शुरू कर दी थी। भूपिंदर सिंह ने मैट्रिक की परीक्षा हाई स्कूल टीहरा व हायर सेकेंडरी की परीक्षा सरकाघाट से वर्ष 1979 में पास की।

आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर में दाखिला ले लिया। उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई 1985 में पूरी की। उसके बाद राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एथलेटिक्स में 1987 में हासिल किया। इसके उपरांत उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण के विशेष खेल क्षेत्र योजना के तहत छह माह तक काम किया, जहां पर उन्हें काम पंसद नहीं आया और वह काम छोड़कर हमीरपुर चले आए। इसी दौरान उनकी शादी बीना ठाकुर से हो गई, जोकि हाकी की राष्ट्रीय खिलाड़ी भी रह चुकी हैं।

इसके बाद उन्होंने राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर में 1988 से लेकर 2015 तक एथलेटिक्स खिलाडि़यों को फ्री में कोचिंग दी। खिलाडि़यों को मैदान में कड़ी मेहनत करवाई जाने लगी। इसका असर उन्हें जल्द ही देखने को मिला। हमीरपुर कालेज के छात्रों ने एथलेटिक्स व क्रॉस कंट्री में चैंपियनशिप का खिताब जीत लिया। हमीरपुर कालेज में चैंपियनशिप ट्रॉफी लगातार 21 वर्षों तक शोभा बढ़ाती रही। हमीरपुर कालेज का सिंथेट्रिक ट्रैक भी उन्हीं की देन है। यही नहीं, भूपिंदर सिंह ने सैनिक स्कूल सुजानपुर टीहरा में 1988 से 1991 तक सुबह-शाम एथलेटिक्स खिलाडि़यों को फ्री में प्रशिक्षण दिया। उनके शिष्य अखिल भारतीय अपर विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय सीनियर एथलेटिक्स मीट में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। भूपिंदर सिंह आज तक 1000 एथलेटिक्स खिलाडि़यों को प्रशिक्षण के जरिए रोजगार दिलवा चुके हैं। उनके शिष्य स्पोर्ट्स कोटे के जरिए पुलिस, आर्मी, टीचर, प्रोफेसर आदि पदों पर सेवाएं दे रहे हैं। यही नहीं, उनके दो खिलाडि़यों पुष्पा ठाकुर व संजो देवी को परशुराम अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। हिमोत्कर्ष संस्था ऊना द्वारा भूपिंदर सिंह की समाजसेवा को देखते हुए उन्हें हिमाचल श्री अवार्ड से नवाजा गया।

इसके अलावा ‘दिव्य हिमाचल’ ने भी भूपिंदर सिंह को एक्सीलेंसी अवार्ड से नवाजा गया है। भूपिंदर सिंह ने वर्ष 2001 में साइंटिफिक जर्नल ऑन स्पोर्ट्स साइंसिज शुरू करवाई थी, जोकि 2015 तक चलाई गई। इसमें उन्होंने संपादक के रूप में कार्य किया। हाल ही में भूपेंद्र सिंह को राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया है। उनकी देखरेख में खिलाडि़यों ने एशियन इंडोर एथलेटिक्स तेहरान में चार सिल्वर, दो ब्रांज मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। इसके अलावा एशियन चैंपियनशिप भुवनेश्वर में भी खिलाड़ी उनकी देखरेख में प्रदर्शन कर चुके हैं।

भूपिंदर सिंह वर्तमान में राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर पटियाला में खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसमें ओलंपिक कैंप व एशियन कैंप-2018 के लिए खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। भूपिंदर सिंह की पत्नी बीना ठाकुर वर्तमान में प्राइमरी स्कूल बराड़ा में मुख्याध्यापिका हैं। उनके दो बेटे हैं।  बड़ा बेटा ठाकुर महिप सिंह एमए, बीएड की पढ़ाई पूरी कर स्कूल चला रहा है, जबकि छोटा बेटा ठाकुर विजय सिंह दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई कर रहा है। भूपिंदर सिंह का कार्यकाल इस वर्ष पूरा हो रहा है। उसके बाद वह अपने गांव में एथलेटिक्स खिलाडि़यों को फ्री में कोचिंग देने का सपना संजोए हुए हैं। उनका एक ही लक्ष्य है कि उनके शिष्य अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर देश व राज्य का नाम रोशन करें।

 -मंगलेश कुमार, हमीरपुर

जब रू-ब-रू हुए…

हिमाचल में राज्य खेल संस्थान का गठन जरूरी…

खेलों में हिमाचल की वर्तमान स्थिति को आप कैसे देखते हैं?

इस समय प्रदेश खेल क्षेत्र में अपने शैशव काल से गुजर रहा है। कुछ प्रशिक्षकों के व्यक्तिगत प्रयासों को किनारे कर दें, तो हिमाचल अभी खेलों में बहुत ही पीछे है।

हिमाचल में संभावना और प्रतिभा के लिहाज से किन खेलों को प्रोत्साहित करना होगा?

राज्य में एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, कुश्ती, भारोत्तोलन, निशानेबाजी जैसे व्यक्तिगत खेलों के साथ-साथ टीम स्पर्धाओं में कबड्डी, हैंडबाल, वालीबाल व हाकी में अच्छा काम किया जा सकता है।

प्रदेश के स्पोर्ट्स होस्टलों की प्रणाली से कितने संतुष्ट हैं, कोई राय?

राज्य स्तरीय खेल प्रशिक्षकों की कमी है, जिस-जिस खेल में अच्छा प्रशिक्षक मिला है वहां खेल परिणाम आपके सामने हैं। अच्छे खेल प्रशासक की जरूरत भी हर खेल छात्रावास में है, ताकि समय-समय पर निरीक्षण कर कमी को दूर किया जाए।

भारतीय खेल प्राधिकरण के वर्तमान ढांचों में क्या-क्या जुड़ना चाहिए?

धर्मशाला में महिला मुक्केबाजी तथा बिलासपुर में हटाए गए एथलेटिक्स को फिर से शुरू करवाना चाहिए। निशानेबाजी के लिए भी हिमाचल में अपार संभावनाएं हैं। राज्य खेल छात्रावास ऊना में जब एस्ट्रो टर्फ बिछे हैं, तो वहां पर हाकी को जरूर शुरू करवाएं।

पिछले कुछ सालों में हिमाचल के खेल परिणाम सुधरे हैं, तो इनके पीछे प्रशिक्षकों के योगदान में उल्लेखनीय कौन रहे?

मुक्केबाजी में नरेश कुमार सुंदरनगर में अच्छा काम कर रहे हैं। कबड्डी में कई प्रशिक्षकों ने कार्य किया है। जैसे दयराम चौधरी, नंद लाल ठाकुर, जय पाल चंदेल, स्व. दौलत ठाकुर व मेहर चंद्र वर्मा, एथलेटिक्स में केहर सिंह पटियाल व गोपाल ठाकुर, हैंडबाल में स्नेहलता व सचिन चौधरी ने हिमाचल के खेलों को आगे बढ़ाने में अच्छा कार्य किया है और आगे कर भी रहे हैं।

क्या हिमाचल का खेल विभाग पूर्ण है या इसे राज्य की तर्ज पर ढांचागत विस्तार करना चाहिए?

हिमाचल खेल विभाग में पंजाब की तरह उच्च प्रतियोगी प्रशिक्षण के लिए राज्य खेल संस्थान का गठन जरूरी है, जिसमें अच्छे खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षकों को मध्य प्रदेश, गुजरात व पंजाब की तरह अनुबंधित कर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं।

हिमाचली खेल वातावरण की प्रमुख तीन बीमारियां, जिन्हें तुरंत दूर करना होगा। तीन समाधान, जिन्हें तुरंत पूरा करना होगा?

अधिकतर प्रशिक्षकों का खेल प्रशिक्षण से दूर भागना, आधे अधूरे खेल परिसर व खेल प्रोत्साहन के लिए बजट का अभाव। प्रशिक्षकों को नियमित रोजाना प्रशिक्षण से जोड़ा जाए। अधूरे खेल परिसरों को पूर्ण कर वहां अच्छे खेल प्रशासक बिठाए जाएं। बजट में सम्मानजनक खेल वजीफे व नकद इनाम का प्रावधान कर हर वर्ष इनाम बांटने का समारोह आयोजित हो।

एक सपना जिसकी प्रतीक्षा में अभी तक मैदान में पसीना बहा रहे हैं?

आज तक भारत को एथलेटिक्स में ओलंपिक पदक नहीं मिल पाया है। मेरा सपना है कि जब ओलंपिक में तिरंगा सबसे ऊपर उठे और राष्ट्रीय गान की धुन पूरा विश्व सुने, तो उसमें मेरा भी योगदान हो।

खेल में जो आपके शागिर्द रहे, उनमें से आपकी पसंद के प्रमुख पांच खिलाड़ी?

राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में गोला प्रक्षेपण में राष्ट्रीय रिकार्डधारी ओम प्रकाश सिंह, परशुराम अवार्डी पुष्पा ठाकुर, परशुराम अवार्डी संजो देवी, दिनेश कुमार व मंजु कुमारी सहित कई नाम हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

वर्तमान परिदृश्य में जिन खिलाडि़यों पर आशा की जा सकती है, राष्ट्रीय स्तर पर आपकी आशा?

राज्य में सीमा, सावन सहित कई उभरते हुए धावक व धाविकाएं हैं। राष्ट्रीय स्तर ही नहीं, 2020 ओलंपिक में ओम प्रकाश से पदक की उम्मीद है।

खेल प्रशिक्षकों को आपकी राय?

राज्य में प्रशिक्षक ईमानदारी से लगातार अपना प्रशिक्षण जारी रखें। प्रतिदिन दो घंटे पढ़ाई को भी दें। बिना नवीन सूचनाओं के किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं की जा सकती है।

खिलाड़ी होने के लिए जुनून, संघर्ष, अभ्यास, प्रशिक्षण, अनुशासन, खुराक के अलावा और क्या-क्या चाहिए?

खिलाड़ी को अच्छा खेल वातावरण, घर, शिक्षा, संस्थान और नौकरी लगने पर उसके विभाग को सुविधाएं देनी होंगी। तभी हम विश्व स्तरीय खेल परिणामों की कल्पना कर सकते हैं।

कोई सुझाव, जो हिमाचल में खेल के माहौल को बदल दे। उसकी शुरुआत कहां से करें?

खेल संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा की तर्ज पर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता को इनाम दिए जाएं। खिलाडि़यों को सम्मान व नकद इनाम देकर राज्य में भी अभिभावकों को अपने बच्चों का भविष्य खेल क्षेत्र में बनाने के लिए आकर्षित किया जा सकता है।

बतौर प्रशिक्षक आपके लिए अब तक के गौरवमय क्षण, संतोष, असंतोष व आशा के कारण व अवसर कब-कब रहे?

2007 बंगलूर अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय एलेटिक्स प्रतियोगिता में चार स्वर्ण व दो रजत पदक जीतकर, चार महिला धाविकाओं का 2010 राष्ट्रमंडल के लिए लगे प्रशिक्षण शिविर में चयन होना। संजो देवी का भाला प्रक्षेपण में राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाकर बर्ल्ड यूनिवर्सिटी खेलों के लिए क्वालिफाई करना विशेष रहा है। भुवनेश्वर में 2017 में आयोजित आउटडोर एशियन एथलेटिक्स प्रतियोगिता व तेहरान 2018 में हुई इनडोर एशियाई एथलेटिक्स में भारतीय टीम का प्रशिक्षक बनना सम्मान की बात रही है। अंसतोष व आशा में निराशा को प्रेरणा की तरह मानकर इस क्षेत्र में चल रहा हूं।


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