बजट के आईने में हिमाचल

By: Mar 12th, 2018 12:05 am

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले ही बजट में भविष्य के इरादे जाहिर कर दिए हैं। आर्थिक विषमताओं के बीच समाज के हर तबके तक पहुंचने की कोशिश की गई है। हिमाचल को किस दिशा में ले जाएगा बजट, पढ़ें इस बार का दखल…

* परवाह नहीं चाहे जमाना जितना भी खिलाफ  हो, चलूंगा उसी राह पर जो सीधी और साफ हो। ’’

* बस दिल जीतने का मकसद है,

दुनिया जीत कर तो सिकंदर भी खाली हाथ गया था।

* सिर्फ  हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।’’

* मेहनत अच्छी हो तो रंग लाती है,

मेहनत गहरी हो तो सबको भाती है।

मेहनत हिमाचली किसान करें, तो इतिहास बनाती है

* एक छिपी हुई पहचान रखता हूं, बाहर शांत हँू, भीतर तूफान रखता हूं।

हिमाचल उपभोक्ता राज्य है। कहने को प्रदेश कृषि प्रधान है, मगर पूरी खेती बारानी है। रोजगार के लिए लोग सरकारी अदारों पर नजरें टिकाए रहते हैं। बेशक लोग वर्ष 2003 में तत्कालीन अटल सरकार द्वारा दिए गए विशेष औद्योगिक पैकेज के जरिए रोजगार पाने को लालायित रहे हों, मगर सच यही है कि हिमाचली लोगों को औद्योगिकीकरण की मुहिम में भी बमुश्किल कामगार का ही पद मिला। गिनती के ऊंचे ओहदों को छोड़ दें तो हिमाचल पिछली कतार में ही रहा। जरूरत इस बात की है कि हर किस्म के पर्यटन को सीधे-सीधे स्वरोजगार से जोड़ा जाए। मध्य प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा जैसे प्रदेशों के मॉडल के अध्ययन के बाद ग्रामीण पर्यटन की अवधारणा को जीवंत रूप दिया जाए। इसके लिए स्थानीय लोगों को प्रोत्साहन राशि दी जा सकती है, ताकि पढ़े-लिखे नौजवान का गांव से शहरों की तरफ पलायन रुक सके। नौजवानों के लिए ईको , साहसिक व सामान्य पर्यटन योजनाओं में आरक्षण की जरूरत है।   विजन यह भी होना चाहिए कि हिमाचल को प्रकृति ने जो बहुमूल्य खजाना बख्शा है, उस पर आधारित वैसे ही प्रोजेक्ट अभयारण्यों या सेंक्चुरीज में चलाए जाएं जैसे असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में चलाए जा रहे हैं। यहां पर्यटक अभयारण्यों में सैर-सपाटा करने के लिए अधिकृत हैं। हिमाचल में ऐसा प्रयास कभी भी नहीं किया गया। इसके जरिए स्थानीय लोगों को बड़े स्तर पर स्वरोजगार दिया जा सकता है।  हिमाचली बेरोजगारों के लिए प्रोजेक्ट प्राथमिकता हेतु सिंगल विंडो की पहल नहीं दिख पाई है। पढ़े-लिखे युवा उद्योग व अन्य महकमों में कई-कई दिन फाइलों के फेर में फंसे रहते हैं। अधिकारी से लेकर लिपिक तक फाइलों पर कुंडली मारे बैठे रहते हैं। निराश होकर ऐसे युवा अन्य काम धंधे करने पर मजबूर रहते हैं या फिर सरकारी नौकरी के लिए कतार में खड़े हो जाते हैं। जरूरत है परंपराओं को अब तिलांजलि देते हुए बेरोजगारी दूर करने के लिए नई पहल भी हो। हिमाचल रोप-वे जैसे प्रोजेक्ट्स में बड़े पूंजी निवेश के लिए उत्तराखंड जैसे राज्यों की मिसाल ले सकता है। यहां संबंधित सरकारी एजेंसियों को निवेशक की तरफ से एनओसी लेने की शर्त है। ठीक वैसे ही जैसे हिमाचल में ईको टूरिज्म प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने बदलाव किया है। दूसरे धरोहर राशि करोड़ों में तय कर दी जाती है, जिससे निराश होकर मध्यम दर्जे के निवेशक हिमाचल आना ही नहीं चाहते।

विभागीय बजट (करोड़ों में)

शिक्षा                      7044

लोक निर्माण विभाग  4082

आईपीएच                 2572

स्वास्थ्य                   2302

पंचायती राज व ग्रामीण विकास 1894

जनजातीय विकास               1620

अनुसूचित जाति उपयोजना  1543

पुलिस व अग्निशमन         1430

ऊर्जा                                1219

वन विभाग                        651

शहरी विकास                     487

एचआरटीसी                      300

आयुर्वेद                             263

पर्यटन                                50

भाषा कला व संस्कृति           25

युवा सेवाएं एवं खेल              24

बस अड्डा प्राधिकरण           17

पुलिस आधुनिकीकरण की ओर ध्यान नहीं

प्रदेश सरकार ने हाल ही में जो बजट पेश किया है, उसमें पुलिस विभाग के आधुनिकीकरण की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। हिमाचल की सीमाएं जम्मू-कश्मीर के साथ लगती हैं, जहां  आतंकवाद बड़ी समस्या है, लेकिन पुलिस जवानों को आधुनिक हथियार उपलब्ध करवाने के लिए कोई ऐसी योजना का ऐलान बजट में नहीं किया गया है।  अन्य राज्यों के साथ हिमाचल में भी साइबर अपराध तेजी से बढ़ने लगा है, लेकिन हिमाचल में इससे निपटने के लिए कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।

राज्य के तीन जिलों में अभी भी नहीं महिला थाने

सरकार ने इस बजट में दो जिलों चंबा और हमीरपुर में महिला थाने खोलने का ऐलान किया, लेकिन इसके बावजदू अभी सोलन, किन्नौर और लाहुल-स्पीति में महिला थाने नहीं है। जिन जिलों में महिला थाने नहीं हैं, उनमें विशेष यूनिट  थानों की जगह काम कर सकते हैं, ऐसी व्यवस्था बजट में की जा सकती थी, जो कि नहीं की गई। थानों-चौकियों में अलग से स्टाफ के लिए कोई घोषणा नहीं हुई, वहीं सीआईडी को मजबूत करने के लिए भी बजट में ऐलान नहीं हो पाया।

होमगार्ड्स जवानों के लिए नहीं बनी पालिसी 

हिमाचल में करीब आठ हजार होमगार्ड्स सेवाएं दे रहे हैं।  इन जवानों के लिए सरकार ने आज तक कोई पालिसी नहीं बनाई।  होमगार्ड्स के जवान अबकी बार नई सरकार से कोई नीति की घोषणा करने के बारे में उम्मीदें लगाए हुए थे, लेकिन सरकार ने कोई नीति का ऐलान नहीं किया है। बजट में इस बार दुर्गम क्षेत्रों में अग्निशमन केंद्र की भी घोषणा नहीं हुई, जिसका लोगों को इंतजार था।

वैट लीज में प्रदेश क्यों नहीं

एचआरटीसी में वैट लीजिंग के लिए प्रदेश के बाहरी लोगों का दबदबा रहता आया है। हिमाचल की पार्टियों या फिर बेरोजगारों से जुड़ी सहकारी समितियों के लिए इसे क्यों नहीं खोल दिया जाता, ताकि वे अपने पैरों पर खड़ा हो सकें। जरूरी नहीं एक समिति 30 से 40 बसें ही चलाए। इसके लिए कोई मॉडल भी तो बन सकता है। वरना अभी तक पंजाब, दिल्ली व अन्य प्रदेशों के धन्ना सेठ ही वैट लीज पर कुंडली मारे बैठे हैं।

एनओसी नचाती है

सरकार ऊर्जा नीति में संशोधन करने जा रही है। ऐसी शिकायतें आम रहती हैं कि वन विभाग के साथ-साथ अन्य महकमें इच्छुक पार्टियों या निवेशकों की फाइलें एनओसी के चक्कर में कई-कई दिन फंसा कर रखते हैं, जिससे उनका निराश होना लाजिमी है। उद्योग विभाग में अभी तक भी यही परंपरा चल रही है। लिहाजा उदारवादी सोच लेकर आगे बढ़ रही जयराम सरकार से उम्मीद होगी कि इन शर्तों को सरल बनाकर प्रदेश में निवेश मित्र माहौल तैयार किया जाए।

पर्यटन में खास करने की जरूरत 

अर्थशास्त्री प्रो. एनके शारदा का कहना है कि सरकार के बजट  में सभी  वर्गों का ख्याल रखा गया है, जो सराहनीय है।   लेकिन मेरा मानना है कि सरकार को पर्यटन क्षेत्र को और अधिक बजट  देना चाहिए था। यही एक मात्र क्षेत्र है जहां रोजगार की क्षमता ज्यादा है ऐसे में इस क्षेत्र पर खर्च कर रोजगार के बेहतर अवसर सृजित किए जा सकते हैं।

रोजगार की योजनाएं कम

एचपीयू कॉमर्स विभाग के डीन प्रो. कुलवंत सिंह पठानिया का कहना है कि प्रदेश सरकार ने तंगहाली के बीच भी बजट में हर वर्ग का ख्याल रखा है।  लेकिन रोजगार के लिए अगर सरकार कुछ  बेहतर  योजनाएं बजट में लाती तो और बेहतर होता। प्रदेश में रोजगार की संभावनाएं कम हैं। ऐसे में बजट में इसके लिए प्रावधान होना चाहिए था।

बजट बेहतर, पर संसाधन जुटाना चुनौती

अर्थशास्त्र के शिक्षक प्रो. रामलाल शर्मा ने प्रदेश सरकार के बजट को हर  वर्ग के लिए बेहतर और हट कर बताया है।  सरकार ने सबका दिल तो जरूर जीता है लेकिन अब अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार संसाधन किस तरह से जुटाती है, यह अहम है। अगर संसाधन नहीं जुटेंगे तो बजट में की गई घोषणाएं धरातल पर नहीं उतर पाएंगी।

लेटलतीफी बढ़ा रही खजाने का बोझ

हिमाचल में अधिकारियों व कर्मचारियों की बड़ी फौज पर कुल खर्च किए जाने वाले 100 रुपए में से 27.18 रुपए वेतन पर खर्च किया जा रहा है। यह उस प्रदेश का आलम है, जहां वित्तीय बोझ इंतहा पार कर रहा है।  इस बड़ी फौज के जिम्मे प्रदेश में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स व योजनाओं को अमलीजामा पहनाना भी है। मगर प्रदेश के ज्यादातर प्रोजेक्ट निश्चित समयावधि में पूरे नहीं हो पाते। इनकी लागत हर साल बढ़ती जाती है। एक बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश को ऐसे ही कारणों से बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है। जब अधिकारी या फिर ब्यूरोक्रेसी सरकारों को घुमाने लगती है तो यही आलम होता है। प्रदेश की जयराम सरकार ने बजट में नया सवेरा दिखाया है।  पहाड़ी प्रदेश को नई दिशा में ले जाने का जज्बा भी है। मगर हाइडल, औद्योगिक, पर्यटन, आईटी तथा अन्य प्रोजेक्ट व योजनाएं चाहे वे सड़क, सिंचाई, पेयजल से जुड़ी हों या फिर अन्य क्षेत्रों से, उनका निर्माण या कार्य समयबद्ध हो, यह सुनिश्चित करना लाजिमी है। क्योंकि जिस तरह से हिमाचल का ऋण बोझ बढ़ रहा है और संसाधन सीमित है, ऐसी कोताही या लेटलतीफी उस प्रदेश में कभी भी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।

घाटा कब तक उठाएगी सरकार

बोर्ड-निगमों ने आर्थिक व्यवस्था की कमर तोड़ी

भले ही जयराम सरकार ने अपना पहला बजट तैयार करने में खूब मेहनत की हो, मगर एक बड़ा सरकारी अदारा, जिसमें 36 बोर्ड-निगम शामिल हैं, वे सरकार के सिर का ऐसा बोझ हैं,जो हर वर्ष वित्तीय सहायता लेकर व्यवस्था को चौपट कर रहे हैं। इनमें न तो उत्तरदायित्व है, न ही जवाबदेही। पिछले कई वर्षों से ऐसे बोर्ड-निगमों के विलय की कवायदें चलती रही हैं। बावजूद सिविल सप्लाई निगम को छोड़ दें तो अन्य सभी निगम घाटे व मुनाफे का वह खेल खेल रहे हैं, जिसके चक्कर में अर्थ व्यवस्था चौपट हो रही है।  अच्छा होगा यदि लगातार घाटा दर्शा रहे निगमों को सदा के लिए पैक कर दिया जाए और स्टाफ को कहीं और समायोजित करके करोड़ों के घाटे को दूर करने का पहला कदम उठाया जाए। वरना कर्ज की सूई हर महीने आगे ही चक्कर लगा रही है।  हिमाचल में 36 बड़े निगमों में से 11 का घाटा विभिन्न सरकारों के लिए खर्चीला सौदा साबित होता रहा है। जानकारों की राय में खरीद-फरोख्त व फिजूलखर्ची पर लगाम नहीं लगती। अफसरों के बार-बार तबादले इनके घाटे का प्रमुख कारण तो बनता ही है, दूसरे वर्क कल्चर के अभाव में भी ये लगातार पिछड़ते जा रहे हैं।

घाटे से जूझ रहीं हैं ये इकाइयां

हिमुडा, एचपीएमसी, हैंडलूम-हैंडीक्राफ्ट कारपोरेशन, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, बिजली बोर्ड, वित्त निगम, इलेक्ट्रॉनिक्स निगम, महिला विकास निगम सोलन, एचपीटीडीसी, मिल्कफेड, एचआरटीसी व अन्य।

वन निगम के हाल

वन निगम द्वारा 2010 से 2016 की अवधि के दौरान वन निगम को रॉयल्टी की समय पर अदायगी न कर पाने के कारण 6.85 करोड़ रुपए ब्याज की अदायगी करनी पड़ी। यही नहीं, अलाभकारी लॉट्स को लेने से रॉयल्टी पर ब्याज, विस्तार फीस व गले-सड़े पेड़ों पर दी गई रॉयल्टी में 1.52 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।  लकड़ी की ग्रेडिंग, बिक्री डिपुओं पर ही की जा रही है। इस अवधि में इमारती लकडि़यों में से केवल 0.5 फीसदी को ही ए ग्रेड में वर्गीकृत किया गया। वर्गीकरण की प्रक्रिया में कोई भी जांच के अभाव में और लकड़ी के 25 फीसदी गलत वर्गीकरण से ही 71.64 करोड़ की रकम के नुकसान का अनुमान है।

एचपीएमसी की स्थिति

एचपीएमसी में प्रयासों के बावजूद 6 से 7 करोड़ रुपए की हानि का अनुमान है। स्टाफ की दिक्कतों व बेहतर तकनीक के अभाव में यह निगम घाटे से तो जूझता ही रहा है।

एचआरटीसी की हालत

एचआरटीसी में सालाना 135 से 140 करोड़ घाटे का अनुमान है। फिजूलखर्ची के साथ-साथ बसों का फ्लीट बढ़ाने की वजह से भी घाटा निरंतर बढ़ रहा है। सरकार यदि सालाना वित्तीय अनुदान न दे, तो निगम एक महीने में बंद हो सकता है।  इस बार भी बजट में 300 करोड़ का अनुदान एचआरटीसी को दिया जा रहा है।

42 करोड़ से बीबीएन में आएगा निखार

प्रदेश सरकार ने बीबीएनडीए का सालाना बजट बढ़ाकर करीब 42 करोड़ कर दिया है, इसके तहत बीबीएनडीए को जहां सरकार 35 करोड़ रुपए अधोसंरचना के लिए प्रदान करेगी, वहीं 6.50 करोड़  एससी कंपोनेंट प्लान के तहत मिलेंगे। बीबीएनडीए 2018-19 में 42 करोड़ रुपए बीबीएन के विकास पर खर्च करेगा । इसके तहत सड़कें, पार्क, चौक, ड्रेनेज, रेन शैल्टर, कॉमन फेसिलिटी सेंटर के अलावा अन्य सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। अढ़ाई हजार उद्योगों को समेटे बीबीएन से विभिन्न मदों के तहत सालाना 2200 करोड़ से ज्यादा का टैक्स सरकारी खजाने में जाता है। अकेले राजस्व विभाग 1600 करोड़ से ज्यादा का राजस्व उद्योगों व अन्य कारोबारियों से जुटा रहा है,लेकिन इलाके के समुचित विकास के लिए बीबीएनडीए के हिस्से में आते हैं मात्र कुछ करोड़। हालांकि बीते दो तीन वर्षाें से बीबीएन के बजट में इजाफा हुआ है ।

परवाणू से जोड़ने की पहल

प्रदेश सरकार ने इस बार के बजट में औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन को परवाणू से जोड़ने के लिए अहम कदम उठाया है। सरकार ने  औद्योगिक क्षेत्र बरोटीवाला से मंधाला होते हुए परवाणू तथा बरोटीवाला गुनाई परवाणू रोड को चौड़ा करने के लिए 4 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। इसके अलावा बद्दी में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए क्लस्टर आधार पर ठोस कचरा निस्तारण संयंत्र भी स्थापित कि या जाएगा।

…इधर भी तो ध्यान देते

मंदिर दूर कर सकते हैं तंगी

करोड़ों के कर्ज में डूबी प्रदेश सरकार की माली हालत प्रदेश के मंदिर सुधार सकते हैं। हालांकि जयराम सरकार ने मंदिरों की 15 फीसदी दौलत को गोवंश के संरक्षण व विकास से जोड़ने की एक नई व बड़ी पहल कर दिखाई है, जिसकी प्रदेश ही नहीं राज्य से बाहर भी सराहना हो रही है।  बावजूद इसके प्रयास यह भी हो सकता था कि अरबों की उस दौलत का प्रदेश हित में प्रयोग होता, जिसकी सुरक्षा के लिए ही लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने पहले पौने दो अरब से भी ज्यादा की इस अकूत दौलत पर आधारित गोल्ड बांड योजना बैंकों के मार्फत सिरे चढ़ाने की ऑफर दी थी। इससे करोड़ों का ब्याज ही सरकार को अतिरिक्त ऋण उठाने से रोक सकता था। मगर ऐसा नहीं हुआ। उल्टे अब इस संपदा की रक्षा के लिए व उसके बीमे पर हर वर्ष करीबन 25 से 30 लाख रुपए का खर्च करना पड़ रहा है।  प्रदेश के बालासुंदरी मंदिर को छोड़ दें, जहां यह संपदा सरकारी खजाने में रखी गई है, अन्य सभी शक्तिपीठों व प्रसिद्ध मंदिरों की ऐसी दौलत मंदिरों में ही सुरक्षा घेरे में रखी जाती है। जिसकी पहरेदारी के लिए तीन से चार जवान रात-दिन मुस्तैद रहते हैं।  प्रदेश के मंदिरों में पड़े 90 करोड़ के सोने व लगभग 70 करोड़ की चांदी से गढ़ी गई स्वर्ण व रजत मुद्राएं भक्तों को मुहैया करवाने की तैयारी थी। इन सिक्कों को ढालने व इन्हें शुद्ध करने के लिए माइनिंग एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कारपोरेशन ने प्रदेश सरकार को प्रस्ताव भेजा था।  उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक तिरुपति बाला जी व वैष्णो देवी मंदिर के मॉडल पर प्रदेश के 29 अधिसूचित मंदिरों में सोने व चांदी के सिक्के उपलब्ध करवाने की योजना थी। अभी तक इस बारे में जो सर्वे रिपोर्ट तैयार की गई, उसके तहत लगभग 100 करोड़ से भी ज्यादा का सोना व दो अरब से भी ज्यादा की चांदी हिमाचल के मंदिरों में मौजूद है। एमएमटीसी इन्हें शुद्ध करने के बाद जो शुल्क लेगी, उसके बावजूद प्रदेश सरकार को इस बड़ी दौलत से हर महीने करोड़ों का राजस्व मिलने का अनुमान था। प्रस्ताव के तहत मंदिरों में मौजूद इस दौलत से 50 फीसदी सोना ही बेचा जाना था। गोल्ड बांड स्कीम के तहत भी राज्य सरकार को ब्याज की शक्ल में पैसा मिलना था।

इन मंदिरों में बरसता है सोना

प्रदेश के 29 अधिसूचित मंदिरों में 4 क्विंटल से भी ज्यादा सोना और 158 क्विंटल चांदी है। इन मंदिरों में दान के रूप में पिछले चार वर्षों के दौरान करीबन 320 करोड़ रुपए नकद मिले।  चिंतपूर्णी मंदिर अपने 72 किलोग्राम सोने और 59 क्विंटल चांदी की बदौलत सबसे धनी मंदिर है। इस मंदिर से दान के रूप में 90 करोड़ रुपए के लगभग नकद प्राप्त हुए। अन्य धनी मंदिर ट्रस्टों में बिलासपुर का नयना देवी मंदिर, ज्वालामुखी, बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा जिले का चामुंडा देवी मंदिर, भीमाकाली, बालासुंदरी और बाबा बालक नाथ मंदिर शामिल हैं। नयना देवी मंदिर 48 किलोग्राम सोने और 56 क्विंटल चांदी की बदौलत दूसरा सबसे अमीर मंदिर है। इसे चार वर्षों में करीबन 60  करोड़ रुपए का दान मिला।

28 नई स्कीमें

  1. मुख्यमंत्री लोक भवन योजना से हर चुनाव क्षेत्र में 30 लाख से बनेंगे लोक भवन
  2. ई-स्टांप योजना
  3. महिला सशक्तिकरण व पर्यावरण संरक्षण को हिमाचल गृहिणी सुविधा योजना
  4. जल से कृषि को पांच वर्ष में 250 करोड़ होंगे खर्च
  5. नई फ्लो इरिगेशन स्कीमः पांच साल में 150 करोड़
  6. नई सौर सिंचाई योजना ः पांच वर्ष में 200 करोड़ होंगे खर्च
  7. नई योजना प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान को 25 करोड़ का बजट प्रावधान
  8. बागबानी सुरक्षा योजना में एंटी हेलगन लगाने के लिए मिलेगा 60 फीसदी उपदान, 10 करोड़ रखा बजट
  9. दस करोड़ की लागत से हिमाचल पुष्प क्रांति योजना
  10. नई मुख्यमंत्री मधु विकास योजना ः 10 करोड़ का बजट, मिलेगा 80 फीसदी उपदान
  11. गो सेवा आयोग बनेगा
  12. वन स्मृति जन समृद्धि से आजीविका
  13. सामुदायिक वन संवर्द्धन योजना
  14. विद्यार्थी वन मित्र योजना का ऐलान
  15. श्रेष्ठ शहर योजना के तहत पुरस्कार
  16. नई राहें, नई मंजिलें योजना के तहत अनछुए पर्यटन स्थलों का होगा विकास, 50 करोड़ बजट
  17. मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना के लिए युवाओं को उद्योगों में स्वरोजगार के लिए 80 करोड़
  18. मुख्यमंत्री युवा आजीविका योजना में 18 से 35 आयु वर्ग के युवाओं को ट्रेड व सेवा में स्वरोजगार, 75 करोड़ का बजट
  19. अखंड शिक्षा ज्योति मेरे स्कूल से निकले मोती योजना
  20. नई मेधा प्रोत्साहन योजना, छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में मिलेगा फायदा
  21. नई योजना आज पुरानी राहों से शुरू होगी
  22. देवभूमि दर्शन में वरिष्ठ नागरिकों को धार्मिक स्थलों की यात्रा
  23. नई स्वास्थ्य में सहभागिता योजना से ग्रामीण क्षेत्रों में निजी अस्पतालों को प्रोत्साहित करने का कदम
  24. सामान्य स्वास्थ्य जांच के लिए नई मुख्यमंत्री निरोग योजना
  25. मुख्यमंत्री आशीर्वाद योजना के तहत सभी नवजात शिशुओं को 1500 रुपए की नव आगंतुक किट दी जाएगी
  26. नई व्यापक सशक्त महिला योजना
  27. हिमाचल रोड इंप्रूवमेंट स्कीम के तहत सड़कों के क्रॉस ड्रेनेज के लिए 50 करोड़
  28. मुख्यमंत्री आदर्श विद्या केंद्र के तहत 10 आवासीय विद्यालय बनेंगे, 25 करोड़ का बजट


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