100 दिन की गति में मंत्री

By: Mar 5th, 2018 12:05 am

1200

पैरामेडिकल स्टाफ कम

700

डाक्टरों की कमी

250

विशेषज्ञों का टोटा

170

आयुर्वेद डिस्पेंरियां बेहाल

26000

हर रोजओपीडी

700 डाक्टर, 250 विशेषज्ञ व 1200 पैरामेडिकल स्टाफ की कमी झेल रहे हिमाचल का मिजाज बिगड़ा हुआ है। रही-सही कसर आयुर्वेदिक डिस्पेंसरियों ने पूरी कर दी है, जहां कहीं डाक्टर नहीं है तो कहीं फार्मासिस्ट । 100 दिन में स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री के सामने क्या चुनौतियां हैं, देखें दखल…

हिमाचल में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के बड़े-बड़े दावे तो किए जा रहे हैं, वही चिकित्सकों के खाली पद सहित पैरामेडिकल स्टाफ के पदों को भरने के लिए भी कई पदों को सजृत किया किया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो अभी तक केवल पदों को भरने की घोषणा ही हो पाई है। इसके अलावा मरीजों को आज भी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बाहरी राज्यों का रुख करना पड़ता है। आईजीएमसी में आज भी कई मशीनें खराब पड़ी हैं। यहां अभी तक सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएं भी मरीजों को नहीं हैं। वहीं कैंसर अस्पताल में भी कैंसर मरीजों के लिए लगने वाली दो बड़ी मशीनें भी अभी तक नहीं लग पाई हैं, जिससे ब्लड कैंसर जैसे मरीजों को बाहरी राज्यों का ही रुख करना पड़ता है। इसके अलावा प्रदेश के पांचों मेडिकल कालेजों की हालत भी कुछ ऐसी ही है। मेडिकल कालेजों में स्टाफ से लेकर आवश्यक मशीनें उपलब्ध नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग में पैरामेडिकल के 1200 व 400 पद मेडिकल के रिक्त चल रहे हैं। प्रदेश में 700 डाक्टरों की कमी चल रही है।  प्रदेश के मेडिकल कालेजों व अन्य अस्पतालों में 250 विशेषज्ञों की कमी चल रही है। हालांकि सरकार ने इन पदों को भरने का दावा किया है। देखना होगा कि ये पद कब भरे जाते हैं। प्रदेश के छोटे-बड़े अस्पतालों को मिलाकर रोजाना लगभग 25 से 26 हजार ओपीडी होती है। वहीं जानकारी के अनुसार जोनल अस्पतालों में ओपीडी का यहआंकड़ा 700 व 800 के बीच का रहता है। चिकित्सकों की इतनी कमी चल रही है कि पांच मेडिकल संस्थान रिटायर्ड व टायर्ड डाक्टरों के भरोसे चल रहे हैं।  जानकारी के अनुसार नेरचौक के मेडिकल कालेज में छह व चंबा में छह ,आईजीएमसी में तीन और टीएमसी में छह चिकित्सक ऐसे तैनात हैं। इसके अलावा अन्य जोनल व सिविल अस्पतालों में भी टायर्ड चिकित्सक अभी तक सेवाएं दे रहे हैं। कुल मिलकर करीब 40 से 50 ऐसे चिकित्सा अधिकारी हैं,जो कि रिटायर्ड हैं और कई संस्थान उनके भरोसे चल रहे हैं।

बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देंगे

दिहिः स्वास्थ्य विभाग की सौ दिन की प्राथमिकताएं क्या हैं, अब तक क्या कार्य हुआ?

विपिन परमार ः  स्वास्थ्य विभाग ने सौ दिन का जो टारगेट दिया है,उसे पूरा किया जाएगा।  अधोसंरचनाएं, आधारभूत ढांचा व अन्य मूलभूत सुविधाओं को मजबूत किया जाएगा।  मदर चाइल्ड के लिए  200 करोड़  का जो बजट आया है, उससे नौ मदर चाइल्ड संस्थान खोले जाएंगे।  पैरामेडिकल स्टाफ के पदों को भी भरा जाएगा। 200 में से 189 पदों को भर दिया है।

दिहि ः प्रदेश के मेडिकल कालेजों का संचालन कैसे हो रहा है? डाक्टर क्यों एक जगह से दूसरी जगह औपचारिकताओं के लिए ही भेजे जा रहे हैं?

परमारः  डाक्टरों को  दूसरे अस्पताल में शिफ्ट नहीं किया जा रहा है।  प्रदेश के अस्पतालों में देश भर के चिकित्सकों को मौका दिया जाएगा।  प्रशिक्षु चिकित्सक रोजगार के लिए बाहरी राज्यों में न जाएं, इसको लेकर योजना बनाई जाएगी व डाक्टरों को हिमाचल में ही अच्छा पैकेज दिलवाया जाएगा। अस्पतालों में मरीजों को 330 जेनेरिक दवाइयां निःशुल्क दी जा रही हैं।

दिहि ः आईजीएमसी व टीएमसी में विशेषज्ञों और सुविधाओं का क्यों अकाल है?

परमारः   आईजीएमसी व टीएमसी में विशेषज्ञों की चल रही कमी को जल्द पूरा किया जाएगा। वहीं, आयुर्वेदिक विभाग के लिए भी 200 पदों के लिए कैबिनेट में मंजूरी मिली है। मेडिकल कालेजों में सुधार की काफी आवश्यकता है।

दिहि ः मरीज बाहर के राज्यों में रैफर किए जा रहे हैं? यह कब रुकेगा?

परमारः कोशिश रहती है कि प्रदेश के मरीजों का इलाज यहां के ही अस्पतालों में हो, लेकिन गंभीर हालत में मरीजों को बाहरी राज्यों के अस्पतालों में  रैफर करना ही पड़ता है। यहीं सभी इलाज हों, यह प्रयास किया जाएगा।

दिहि ः टीएमसी में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की घोषणा हुई, भवन बन गया, पर मशीनें और डाक्टर नहीं? कब सुपर होगी स्पेशियलिटी?

परमारः  टीएमसी व शिमला के चमयाणा में सुपर स्पेशियलिटी का काम चल रहा है।  कार्य में तेजी लाई जाएगी व चिकित्सकों व मशीनों की कमी भी जल्द पूरी की जाएगी। टांडा में कैंसर संबंधित करोड़ों की मशीन जल्द ही स्थापित की जाएगी व कैंसर के मरीजों के इलाज के लिए छह पोस्टें भी स्वीकृत हो गई हैं।

दिहि ः प्रदेश में कई निजी अस्पताल बेहतर चिकित्सा सुविधाएं दे रहे हैं, पर उनकी लूट पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, क्यों?

परमारः  निजी अस्पताल मरीजों से अधिक वसूली न करें, इसके लिए समय-समय पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा चैक किया जाता है। निजी अस्पतालों का  सीएमओ व अन्य अधिकारियों को निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। मैं भी कई बार औचक निरीक्षक कर चुका हूं।

दिहि ः क्यों नहीं सरकार कमजोर सरकारी अस्पतालों को निजी क्षेत्र को सौंप देती है? राजस्थान सरकार तो ऐसा कर रही है?

परमारः प्रदेश के कमजोर सरकारी अस्पतालों की निजी क्षेत्र को सौंपने की योजना पर विचार किया जाएगा। इस क्षेत्र में राजस्थान सरकार किस मॉडल पर कार्य कर रही है, उसको स्टडी किया जाएगा। व्यावहारिक रूप से अगर प्रदेश में उस मॉडल को आसानी से शुरू किया जा सकता है, तो किया जाएगा।

दिहि ः मेडिकल यूनिवर्सिटी का क्या हो रहा है? हमीरपुर मेडिकल कालेज कब तक शुरू होगा?

परमारः पुरानी सरकार द्वारा खोले गए मेडिकल कालेजों का रिव्यू किया जा रहा है, उसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है। हालांकि भारत सरकार की ओर से हमीरपुर कालेज के लिए पैसा आ चुका है व उम्मीद है कि जल्द हमीपुर कालेज में कक्षाएं व कार्य शुरू हो जाएगा।

दिहि ःआरकेएस के तहत डाक्टरों का शोषण हो रहा है, डाक्टर प्रदेश छोड़ रहे हैं, सरकार कब इस स्थिति पर नियंत्रण करेगी?

परमारः 2014 के बाद आरकेएस में नियुक्तियां नहीं हो रही है, इस पर विचार किया जा रहा है।  आरकेएस व अन्य खाली पड़े पदों को लेकर मुख्यमंत्री से बात की जाएगी और इस मामले को गवर्निंग बॉडी में भी इसे लाया जाएगा।

दिहिः प्रदेश के विशेषज्ञ जो बाहरी राज्यों में जा चुके हैं, क्या उनकी वापसी की कोई योजना सरकार बना रही है?

परमारः प्रदेश में भी प्रशिक्षु डाक्टरों को वे सुविधाएं मिलें, जो बाहरी राज्यों में मिलती, ऐसी कोशिश की जाएगी।

दिहिः  पालमपुर के वीएमआरटी अस्पताल को सुदृढ़ करने का भी क्या कोई प्रस्ताव है। बात अपोलो से शुरू हुई, पर अब एक छोटे से अस्पताल तक सीमित हो गई?

परमारः पालमपुर बीएमआरटी अस्पताल को सुदृढ़ करने का प्रयास किया जाएगा। यह सांसद शांता कुमार की देन है और अगर इसके सुधार के लिए कोई प्रस्ताव होगा, तो इस पर कार्य किया जाएगा।

बड़े मेडिकल कालेजों से भेजे जा रहे डाक्टर

प्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी तक विस्तार नहीं हो पाया है, उसके कई कारण हैं। उनमें सबसे पहला कारण यह बताया जाता है कि प्रदेश में बिना विचार सुविधाओं व बजट के मेडिकल कालेजों को खोल दिया गया। मेडिकल कालेजों के खुलने के बाद आईजीएमसी व टांडा से चिकित्सकों को इन मेडिकल कालेजों में तैनात किया जा रहा है, जिस वजह से पुराने बड़े मेडिकल कालेजों में भी मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

केवल आठ ही कार्डियालॉजिस्ट

प्रदेश में आठ कार्डियोलॉजिस्ट हैं। इसमें टीएमसी में एक और बाकी कार्डियोलॉजिस्ट की तैनाती आईजीएमसी में की गई है।

प्रदेश में महज चार न्यूरोसर्जन

प्रदेश में चार न्यूरोसर्जन हैं। हैरानी की बात है कि अभी आईजीएमसी में ही न्यूरो सर्जरी से संबंधित इलाज किया जाता है।

हर रोज होते हैं 112 आपरेशन

प्रदेश के बड़े अस्पतालों में बड़े आपरेशनों का आंकड़ा 70 से 80  रहता है, अगर सभी छोटे-बड़े आपरेशन की बात करें तो जिला अस्पतालों को मिलाकर प्रदेश में छोटे-बड़े लगभग112 के करीब आपरेशन हर रोज किए जाते हैं।

अस्पतालों में अधिकतर मशीनें खराब

आईजीएमसी व टांडा में हर दिन कोई न कोई टेस्ट मशीन खराब हो जाती है। छोटे अस्पतालों में भी यही हाल है। प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग कोई ऐसा बीच का रास्ता नहीं निकाल पाया है,जिससे  अगर कोई टेस्ट मशीन खराब हो जाती है तो उससे मरीजों का इलाज न रुके व वैकल्पिक व्यवस्था की गई हो। प्रदेश में बेहतर चिकित्सा के लिए विभिन्न बीमारियों के लिए विशेषज्ञों की भारी कमी है। मौजूदा समय में प्रदेश के दो बड़े मेडिकल कालेज आईजीएमसी व टीएमसी में भी न्यूरोसर्जन, कॉर्डियालॉजिस्ट, गायनी व अन्य बीमारियों व सर्जन के एक व दो-दो ही विशेषज्ञ हैं।

ट्रॉमा सेंटर की जरूरत

हिमाचल एक पहाड़ी क्षेत्र है यहां पर सड़क दुर्घटनाओं के मामले अधिकतर सामने हैं, इस लिहाज से यहां पर ट्रॉमा सेंटर होना बहुत आवश्यक है, ताकि मौके पर इलाज मिल सके। प्रदेश के किसी भी संस्थान में मरीजों को अभी तक सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।  एक साल से भी पहले चला सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का कार्य अभी पूरा नहीं हो पाया है।

131 दवाइयां सब-स्टैंडर्ड

एक साल से कुल 407 दवाइयों के सैंपल सब-स्टैंडर्ड पाए गए थे, जिनमें से 131 दवाएं हिमाचल में बनी थीं। देश में जितनी दवाओं के सैंपल फेल हो रहे हैं, उनमें हर चौथी दवा हिमाचल की है।  स्वास्थ्य मंत्री के कड़े रुख के बाद अब ड्रग विभाग भी सख्त हो गया है। इसी कड़ी में ड्रग इंस्पेक्टरों ने बद्दी, ऊना, कालाअंब के आठ दवा उद्योगों का निरीक्षण कर जांच रिपोर्ट स्टेट ड्रग्स कंट्रोलर को सौंप दी है।

मरीजों को नहीं मिल पा रही हैं 330 दवाइयां

प्रदेश सरकार  की ओर से दावा किया गया था कि मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां अस्पतालों में फ्री मिलेंगी,लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 330 में से बड़ी मुश्किल से 200 दवाइयों की सुविधा ही मरीजों को मिल पा रही है। मरीजों को 330 फ्री जेनेरिक दवाइयों की सुविधा न मिलने का एक कारण यह भी है कि अस्पताल में चिकित्सकों द्वारा बार-बार जेनेरिक दवाइयों के नामों में बदलाव किया जा रहा है,जिस वजह से बार-बार दवाइयां खरीदने के लिए नए टेंडर करने पड़ते हैं और जो सुविधा मरीजों को समय पर मिलनी चाहिए ,वह नहीं मिल पाती।

क्वालिटी कंट्रोल न होने से मुश्किल

हिमाचल में एक ही ड्रग कंट्रोलर लैब है। हालांकि बद्दी में भी  लैब का काम चला हुआ पर, कब पूरा होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रदेश में  दवाई कंपनी मनमानी दवाइयां न बनाए व उनके लिए कोई कड़ा  नियम बनाया जाए इसको लेकर अभी-अभी प्रदेश सरकार की ओर से कोई कड़ा नियम नहीं बनाया गया है।

सुपर स्पेशयलिटी ने नहीं पकड़ी रफ्तार

प्रदेश के टीएमसी व शिमला के चमयाणा वार्ड में सुपरस्पेशियलिटी का कार्य चला हुआ है, पर यह सुविधा मरीजों को कब मिलेगी, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

हर अस्पताल में विशेषज्ञों की जरूरत

टांडा व आईजीएमसी में तो हर बीमारी व सर्जरी के एक व दो विशेषज्ञ हैं और जोनल अस्पतालों में गायनी,  रेडियोलॉजिस्ट, सर्जरी, पिडियाट्रिक्स, प्लास्टिक सर्जरी, यूरोलॉजी आदि विशेषज्ञों की भारी कमी चल रही है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा…

हिमाचल प्रदेश में आयुर्वेदिक तरीके से इलाज करने की तकनीक ज्यादा नहीं चल पाई।  हिमाचल में शिमला व पपरोला में दो बड़े अस्पताल हैं,जबकि पपरोला में मेडिकल कालेज भी है। बावजूद इसके स्टाफ की भारी कमी के चलते इस विभाग में  कार्य सुस्त प्रणाली से चल रहे हैं। आयुर्वेद विभाग में दो महीने से निदेशक का पद खाली चला हुआ है।  जानकारी के अनुसार आयुर्वेद विभाग में 170 छोटे-बड़े संस्थान ऐसे हैं,जहां पर फार्मासिस्ट व डाक्टर ही नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से गांव, शहर कस्बों में आयुर्वेद की डिस्पेंसरियां खोल तो दी हैं, लेकिन वहां पर या तो एक डाक्टर तैनात है या फिर एक फार्मासिस्ट।

कमजोर है आयुर्वेद का ढांचा

प्रदेश में आयुर्वेद विभाग के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण चिकित्सकों, मेडिकल आफिसरों व अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ के पदों को न भरना है। जानकारी के अनुसार आयुर्वेद विभाग के 100 पदों के लिए साक्षात्कार भी हो गए थे,लेकिन किन्हीं कारणों से इन पदों पर ट्रिब्यूनल की तरफ से  रोक लगा दी गई है और विभाग में भरे जाने वाले डाक्टरों के 100 पदों का मामला अभी भी कोर्ट में है।     इसके अलावा आयुर्वेद विभाग का ढांचा अभी तक इसलिए कमजोर रहा है क्योंकि जो भी सरकार आई उन्होंने केवल दावों के साथ ही जनता का पेट भरने का काम किया। जमीनी स्तर पर विभाग में कोई भी बड़ा प्रोजेक्ट व विकास कार्य अभी तक सिरे नहीं चढ़  पाया।

पपरोला में ही पंचकर्म की सुविधा

प्रदेश में जितने भी आयुर्वेद संस्थान हैं,उनमें से पपरोला कालेज में ही मरीजों को सुविधाएं दी जा रही हैं। यहां पंचकर्म की भी सुविधा मरीजों के लिए है। वहीं कैजुल्टी में ही छह डाक्टरों को तैनात किया गया है। इसके अलावा शिमला व पपरोला में मरीजों को योगा, मेडिटेशन के अलावा आयुर्वेद दवाइयों की भी पूरी सुविधा दी जा रही है।

आयुर्वेद विश्वविद्यालय ठंडे बस्ते में

प्रदेश में आयुर्वेद विवि खोलने की घोषणा अब ठंडे बस्ते में पड़ गई है। पूर्व कांग्रेस के कार्यकाल में पपरोला में ही आयुर्वेद विवि खोलने की घोषणा की गई थी, लेकिन नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद यह योजना अब ठंडे बस्ते में है ।

पंचकर्म की घोषणा पर नहीं हुआ काम

प्रदेश के छोटे-बड़े आयुर्वेद अस्पताल में मरीजों का पंचकर्म से फ्री इलाज करवाने की घोषणा पर कोई कार्य नहीं है। शिमला के आयुर्वेद अस्पताल में भी अब पंचकर्मा तरीके से किए जाने वाला इलाज लगभग बंद हो चुका है।

टीएमसी-आईजीएमसी में हर मर्ज का इलाज

आईजीएमसी शिमला के बाद डा. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा प्रदेश का दूसरा बड़ा स्वास्थ्य संस्थान है। लगभग 800 बेड वाले इस अस्पताल में रोजाना दो से अढ़ाई हजार के बीच ओपीडी होती है। यह अस्पताल निचले हिमाचल के पांच जिलों को कवर करता है। यहां न केवल मरीजों का उपचार होता है, बल्कि उपचार करने वाले डाक्टर भी तैयार किए जाते हैं। एमबीबीएस के अलावा स्टूडेंट को पीजी भी करवाई जाती है। नॉर्मल बीमारी से लेकर बड़े से बड़े मर्ज का इलाज आज इस मेडिकल कालेज स्थित अस्पताल में हो रहा है। कालेज के इतिहास पर नजर डालें तो दिसंबर 2007 में मेडिकल कालेज टीएमसी शुरू हुआ था। वर्ष 2014 में शुरू हुआ सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक कैंसर, हार्ट, लिवर और न्यूरो से संबंधित घातक बीमारियों की रोकथाम के लिए वरदान साबित हुआ है। यही नहीं ,नेत्रदान और नेत्र ट्रांसप्लांट की सुविधा भी टीएमसी में उपलब्ध है। इसके अलावा बर्न यूनिट, ट्रॉमा सेंटर का काम अंतिम चरण में है। टीएमसी अस्पताल में बुजुर्गों के लिए पैलेटिव केयर सेंटर स्थापित किया गया है।  टीएमसी अस्पताल में रोजाना 40 से 50 गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी होती है।  टीएमसी में अलग से मातृ-शिशु स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किया जा रहा है, जिसमें 200 बेड लगेंगे। 60 वर्ष से अधिक आयु वाले मरीजों के लिए अलग से सप्ताह के दो दिन ओपीडी की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा वर्ष 2017 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने यहां जिरयोट्रिक सेंटर का शिलान्यास भी किया है। मरीजों को जेनेरिक और सस्ती मेडिसिन उपलब्ध करवाने के लिए यहां जनऔषधि की स्थापना की गई थी। अब यहां केंद्र सरकार की ओर से अमृत फार्मेसी का स्टोर खोला जा रहा है।  यहां जेनेरिक मेडिसिन के अलावा हार्ट और ऑर्थो से संबंधित अन्य इंप्लांट भी उपलब्ध होंगे। टीएमसी की आधारिक संरचना के लिए भले ही सरकारों की ओर से कोई कसर न छोड़ी गई हो, लेकिन मैनपावर की मार हमेशा इस मेडिकल कालेज ने झेली। शायद यही वजह है कि इतने बड़े अस्पताल में डायलिसिस यूनिट पर एक साल से ताला जड़ा हुआ है।

आईजीएमसी का निर्माण 1966 में हुआ था। उस समय 350 बेड थे, तो मौजूदा समय में यहां पर 1007 बेड की सुविधा मरीजों के लिए उपलब्ध है। आईजीएमसी में आज भी  असुविधाओं का अंबार है। अस्पताल में  एक बेड पर दो व तीन मरीजों को दाखिल किया जाता है। आईजीएमसी का भवन वैसे तो काफी बड़ा है, लेकिन बावजूद इसके यहां अकसर जगह की कमी सताती है। वजह यह बताई जाती है कि अस्पताल में मरीजों की संख्या भी बहुत है । आईजीएमसी के पास अपने चार भवन हैं, जिसमें कैंसर अस्पताल, डेंटल अस्पताल सहित अन्य विभागों को बांटा गया है। इस तरह से अस्पताल में तमाम सुविधाएं भी मरीजों को दी गई हैं। जैसे ऑनलाइन पर्ची बनाने की सुविधा, क्योक्स मशीनें स्थापित करना शामिल हैं। आईजीएमसी में कई विकास कार्य भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुए हैं। अस्पताल में दस साल में 1800 ओपन हार्ट सर्जरी हुई हैं। वहीं, न्यूरो सर्जरी से संबंधित मरीज भी अब रैफर नहीं किए जाते हैं। आईजीएमसी में सर्जरी से संबंधित हर ट्रीटमेंट अस्पताल में उपलब्ध है। अस्पताल को बायोमेडिकल वेस्ट में भी पहला पुरस्कार मिला है। कैंसर पीडि़त मरीजों का इलाज फ्री में किया जाता है। इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में हर बीमारी का इलाज संभव है।  प्रदेश में आईजीएमसी ही ऐसा अस्पताल है,जहां पर सुपरस्पेशियलिटी की तरह इलाज मरीजों को मिलता है। अस्पताल में क्लास फोर की कमी होने की वजह से न तो अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था सही है और न ही मरीजों के लिए वार्ड कर्मियों की पूरी तरह से सुविधा दी गई है।

ये बीमारियां असाध्य

आईजीएमसी में यूरोलॉजी, मैथोलॉजिस्ट, डर्मेटोलॉजिस्ट, गेस्टो एंटोलॉजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, आर्थोपेडिक्स व ब्लड कैंसर का इलाज हो पाना अभी तक असाध्य बना हुआ है। हालांकि कुछ एक बीमारियों का विशेषज्ञों द्वारा इलाज किया जाता है,लेकिन बावजूद इसके बजट,जगह व कई समस्याओं की वजह से इन बीमारियों  का इलाज करना अस्पताल प्रशासन के सामने असाध्य बना हुआ है।

सरकार का प्लान

जेनेरिक दवाइयां फ्री में देने का दावा

पुरानी टेस्ट मशीनें बदलने का ऐलान

पर्याप्त स्टाफ भरने की भी घोषणा

एयर एंबुलेंस सुविधा देने की तैयारी

प्रदेश सरकार ने सत्ता संभालने के बाद स्वास्थ्य सेवाएं देने के बड़े-बड़े दावे किए हैं। स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार का कहना है कि प्रदेश से लोगों को बाहरी राज्यों में इलाज के लिए न जाना पड़े, इसके लिए प्रदेश के मेडिकल अस्पतालों में ही सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएगी।

सरकार व स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों को 330 फ्री जेनेरिक दवाइयां देने का दावा किया था, लेकिन अभी जमीनी स्तर पर मरीजों को पूरी तरह से फ्री जेनेरिक दवाइयों की सुविधा नहीं मिल पाई है।

स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल की पुरानी मशीनों को बदलने की बात भी कही थी, लेकिन अभी तक कोई भी बड़ी टेस्ट मशीनें नहीं बदली गई हैं। आईजीएमसी में कई मशीनें खराब पड़ी हैं, वहीं, सीटी स्कैन व एमआरआई

की मशीन कभी भी जवाब दे देती है। आलम यह है कि प्रशासन पुरानी मशीनों को ठीक करवाने में करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है।

प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग ने रिक्त पदों को भरने की भी घोषणा सत्ता में आने के बाद की थी। विभाग की ओर से 100 दिन के एजेंडे में खाली पड़े पदों को भरने का टारगेट रखा है। चिकित्सकों के कई पदों पर सरकार इंटरव्यू भी कर चुकी है, लेकिन अभी तक वास्तविक रूप से किसी भी पद पर तैनाती नहीं हो पाई है। आलम यह है कि डाक्टरों को एक से दूसरे अस्पताल भेजा जा रहा है।

स्वास्थ्य मंत्री ने मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए एयर एंबुलेंस सुविधा शुरू करने की घोषणा की है। इससे जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले मरीजों के लिए राहत मिलेगी और वे जल्द प्रदेश के स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंच पाएंगे।

हमीरपुर मेडिकल कालेज को दी जाएगी रफ्तार

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