खुद कठपुतली बन रह गया खिलौना केंद्र

पालमपुर में औद्योगिक विस्तार केंद्र में धूल चाट रही मशीनरी, कोई अनुभवी कारीगर नहीं

पालमपुर— लकड़ी को अलग-अलग तरह के खिलौनों का रूप देकर कभी देश-विदेश में अपनी पहचान बनाने वाला प्रदेश का खिलौना केंद्र आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। उद्योग विभाग के तहत 60 के दशक में पालमपुर में स्थापित किया गया औद्योगिक विस्तार केंद्र (खिलौना) सरकार की नजर-ए-इनायत को तरस रहा है। अनुभवी कारीगरों की नियुक्ति न होने से यहां पर उत्पादन लगभग न के बराबर होकर रह गया है। जानकारी के अनुसार 1974 से यह केंद्र हिमाचल प्रदेश स्टेट हैंडीक्राफ्ट्स एंड हैंडलूम कारपोरेशन के तहत काम कर रहा है। यहां पर मशीनरी तो स्थापित है, लेकिन काम करने वाले लोगों के अभाव में धूल चाट रही है। आलम यह कि करीब एक दशक पूर्व रिटायर हो चुके कारीगर को समय-समय पर बुलाया जाता है, जिससे थोड़ा बहुत काम चल रहा है, जबकि यहां बनाए जाने वाले खिलौनों को रंग कर नया रूप देने का काम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के हवाले है, जो कि इस साल रिटायर होने वाला है। एक समय था जब यहां पर अनेक किस्म के खिलौने तैयार किए जाते थे, लेकिन अब यहां पर केवल कुल्लू दंपत्ति पर ही अधिकतर काम किया जा रहा है और जो थोडे़ बहुत पेयर तैयार होते हैं, उनको आगे विभाग के केंद्रों में भेजा जाता है। यहां पर साल भर के दौरान कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं और थोड़ा बहुत फर्नीचर बनाकर सरकारी विभागों को सप्लाई किया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार पालमपुर ट्वॉय सेंटर में बनने वाले खिलौनों की काफी डिमांड होती थी, लेकिन अब यह इतिहास की बात बनती जा रही है। केंद्र इंचार्ज राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने बताया कि केंद्र में अनुभवी कारीगर नहीं है। आवश्यक्ता पर रिटायर कर्मी की सेवाएं ली जाती हैं। अनुभवी लोगों की तैनाती का मसला उच्च अधिकारियों के समक्ष रखा गया है।

ये हैं हालात

इस केंद्र में फिलवक्त एक इंचार्ज, एक सेल्समैन और दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी तैनात हैं। दो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में से एक जून, तो दूसरा अक्तूबर में सेवानिवृत्त हो जाएगा। केंद्र के पास जो भवन हैं, उसमें एक दर्जन से अधिक कमरे हैं और हर माह करीब साढ़े चार हजार रुपए किराया अदा किया जाता है। जल्द ही यहां कारीगरों व कर्मियों की तैनाती नहीं की गई, तो साल समाप्त होते-होते तो यहां मात्र दो अधिकारी ही रह जाएंगे।