जज लोया केस में एसआईटी जांच नहीं, भाजपा-कांग्रेस भिड़ीं

By: Apr 20th, 2018 12:12 am

नई दिल्ली— सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर मामले की सुनवाई करने वाले सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह राजनीतिक जंग को न्यायपालिका तक लाने जैसा है और इसमें कोई विश्वसनीयता नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जज बीएच लोया की मौत प्राकृतिक थी। इस मामले में चार जजों ने भी ऐसे ही बयान दिए थे, जिन पर संदेह नहीं किया जा सकता। इस मामले में याचिकाओं के जरिए न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की गई। जजों के खिलाफ बेसिर-पैर के आरोप लगाए गए। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर खुला प्रहार करने की कोशिश की गई और तो और राजनीतिक जंग में न्यायपालिका को घसीटा गया। यह जनहित याचिका राजनीति से प्रेरित है। राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए यह याचिका दाखिल की गई थी।  अदालत राजनीतिक दुश्मनी निकालने की जगह नहीं। उसकी सही जगह चुनाव है। याचिकाकर्ताओं और उनके वकीलों को न्यायपालिका की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए था, लेकिन इन लोगों ने उसको तार-तार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि हमने इस याचिका पर अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के बारे में भी सोचा, लेकिन हम फिलहाल ऐसा नहीं कर रहे हैं। उधर, इस सारे मामले पर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा ने इस पूरे मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को घेरते हुए कहा है कि वह उस लॉबी के पीछे थे, जिसने कोर्ट में राजनीतिक लड़ाई लड़ी। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी को अमित शाह समेत देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। भाजपा नेता गौरव भाटिया ने पीआईएल पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ लोगों ने पीआईएल को पॉलिटिकल इंटरेस्ट लिटिगेशन और पैसा इंटरेस्ट लिटिगेशन बना लिया है। उधर, उधर, कांग्रेस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग पर अड़ी हुई है। कांग्रेस ने जज लोया की मौत के मामले पर दस बिंदू गिना बताया है कि उनकी मौत संदिग्ध है, इसलिए जांच जरूरी है। कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों पर कहा कि अफसोसजनक है कि जज लोया की मौत भाजपा के लिए जश्न मनाने का मामला है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने जज लोया की मौत को संदिग्ध बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर केस को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि शुरू से लेकर अंत तक एक ही जज इस मामले की सुनवाई करेंगे। इस केस में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे। उस समय जज उत्पल ने आरोपियों को कोर्ट में पेश नहीं होने के लिए लताड़ लगाई और पेश होने की तारीख तय की, लेकिन उससे पहले ही उनका ट्रांसफर हो गया। जज उत्पल के बाद जज लोया इस केस को देख रहे थे। 30 नवंबर, 2014 को उनकी मौत हो गई। इसके बाद अमित शाह इस मामले में बरी हो गए और सीबीआई ने इसके खिलाफ अपील नहीं की। जज लोया की बहन और पिता ने 21 नवंबर, 2017 को मीडिया हाउस के सामने इल्जाम लगाया कि जज लोया पर सभी अभियुक्तों को बरी करने का दबाव था। एक पूर्व जज के जरिए उन्हें 100 करोड़ रुपए और एक फ्लैट का भी ऑफर दिया गया था। जज लोया की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है, लेकिन ईसीजी की रिपोर्ट इसकी पुष्टि नहीं कर रही है। एक्सपर्ट का भी कहना है कि चोट का सबूत मिला है। जज लोया की मौत से ठीक पहले 24 नवंबर, 2014 को उनकी सुरक्षा वापस ले ली गई थी।  जज लोया के परिवार ने कहा था कि उनके कपड़े खून से सने हुए थे। हार्ट अटैक आया था तो खून कहां से आया? जज लोया के परिवार को बिना सूचना दिए उनका पोस्टमार्टम पहली दिसंबर, 2014 को किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनका नाम भी गलत तरीके से लिखा गया। जज लोया के दो और सहयोगियों की मौत संदेहास्पद परिस्थिति में हुई। एडवोकेट खंडालकर की मौत 29 नवंबर, 2015 को कोर्ट की छत से गिरकर हुई, जबकि 28 नवंबर से अदालत में छुट्टी थी। इसके अलावा एक और जज की संदेहास्पद मौत हुई। एक वकील मरने से बाल-बाल बचे। खुद न्यायपालिका ने इस केस का जिक्र किया था और माना था कि सब ठीक नहीं है। कांग्रेस ने कहा कि बिना स्वतंत्र जांच के कोई तय नहीं कर सकता कि मौत स्वभाविक है या नहीं।

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