जांच के पहरे में पर्यटन

By: Apr 18th, 2018 12:08 am

यह पहला सीजन है जब हिमाचली पर्यटन की सीमा पर जांच का सख्त पहरा बरकरार है। ऐसे में नकारात्मक पर्यटन के अनुभव में सीजन की शुरुआत होटलों के बंद कमरे तथा मायूसी के आलम में हो रही है। धर्मशाला-मकलोडगंज व मनाली-कसोल की करीब अढ़ाई सौ होटल-रेस्तरां इकाइयों के बंद होने की टीस लिए पर्यटन सुविधाओं की कमी सारे मंजर को बदनाम कर रही है। बेशक कानूनी आपत्तियां अपनी जगह सही हैं या कार्रवाई करने की बाध्यता में दोष नहीं निकाला जा सकता है, लेकिन हिमाचल के अस्तित्व में हर पर्यटन सीजन का योगदान है। हर होटल का हिमाचली आर्थिकी तथा रोजगार में योगदान है और इसमें बैंकिंग क्षेत्र को जोड़ दिया जाए, तो व्यापारिक नुकसान के मायनों में लिपटा एनपीए दिखाई दे रहा है। जाहिर है कानूनी खींचतान के परिदृश्य में अगर अड़चनें कम नहीं हुईं, तो नकारात्मकता के बीच सीजन की सिसकियां सुनाई देंगी। ऐसे में पर्यटन सीजन के कुशल प्रबंधन के साथ कानूनी पहलू भी जुड़ते हैं और इसके निवारण में सरकार से कुछ तात्कालिक कदम अभिलषित हैं। इन होटलों को कम से कम अस्थायी बहाली का रास्ता, कुछ आवश्यक शर्तों व वित्तीय दंड के साथ मुहैया करवाया जाए तो नाक बची रहेगी, वरना जांच की मांद में कई परास्त होंगे। पर्यटन को हिमाचली छवि के आंचल में निहारने की जरूरत है और यही सख्त वजह भी है जहां से कानून की निगरानी आरंभ हुई। क्या हम किसी भी हिमाचली पर्यटक स्थल में सुकून से रह सकते हैं या यह अनुमान लगा सकते हैं कि वहां पहुंचने पर व्यवस्थागत प्रबंधन अव्वल होगा या रास्ते पर ट्रैफिक जाम नहीं होगा। क्या कभी आईपीएच की योजना-परियोजना ने यह गौर किया कि पर्यटक सीजन के दौरान उनकी आपातकालीन भूमिका बढ़ जाती है या कोसते सैलानी की प्रतिक्रिया में पेयजलापूर्ति के कारण हिमाचल क्यों और कब तक बदनाम होगा। कमोबेश हर पर्यटक सड़कों की शिकायत का पुलिंदा डेस्टीनेशन पर छोड़ जाता है और साथ ही गंदगी के आलम में हमारे प्रबंधन की पोल खोल कर लौट जाता है। पर्यटक सीजन के दौरान पानी ढोते टैंकरों से कब हम पूछ पाएंगे कि उनका स्रोत कहां है और इसकी क्या गारंटी कि यह पीने लायक भी है। पर्यटक सीजन की छवि का रिश्ता हर विभाग से है, लेकिन ऐसी कोई रणनीति नहीं कि इस दौरान विद्युत आपूर्ति ठप नहीं होगी या किसी चौक पर खड़ी ट्रैफिक पुलिस की जुबान नहीं फिसलेगी। हमारे व्यापार या बाजार में घुस गया पर्यटक सीजन आहत है, तो क्या खाद्य आपूर्ति नियंत्रण में जुटा सरकारी अमला यह सुनिश्चित करता है कि किस दर पर सैलानियों से पैसे वसूले जा रहे हैं। यही अंधापन था, जिसने पर्वतीय पर्यटन को कंकरीट बनने से नहीं रोका। नियम तो चार दशक पुराने हैं और विभाग भी, लेकिन नवनिर्माण में उजड़ते पर्यटन को किसी ने नहीं देखा। इन सालों में किस हद तक नैसर्गिक सौंदर्य मिट्टी हुआ, किसी को नजर नहीं आया। कितने पेड़ों को हटाकर पर्यटन का विस्तार हुआ या पर्यटन व्यवसाय केवल होटल व्यवसाय कैसे बन गया, इस पर कुछ तो गौर किया होता। अधिकांश गतिविधियां केवल सियासी चादर ओढ़ कर हुईं, ताकि कानून के हलाल हुए बदन को न देखा जाए। जाहिर है इन होटलों पर राजनीति की चांदी चढ़ी, तो चांदी कूटी भी गई और इस तरह लील दिया गया सारा मंजर-सारा मकसद। आश्चर्य है कि आज तक पर्यटन के हिसाब से नागरिकों की कोई परिभाषा और हिदायत तैयार नहीं हुई, इसलिए पहाड़ की चीरफाड़ से जो हासिल हुआ, लूट लिया गया। बावजूद इसके हिमाचल की सबसे अधिक ऊर्जा, संसाधन व संभावना केवल पर्यटन से ही जुड़ी है, तो वर्तमान संकट का समाधान तुरंत करना होगा। अगर बिजली-पानी काट देने से ही व्यवस्थागत सुधार लाया जा सकता है, तो हम पूरे मसले से चंद तिनके चुन रहे हैं, बल्कि यहां से किसी मॉडल के तहत ऐसे निर्माण की वैधता को कानूनी दृष्टि से मापदंडों पर साबित करना होगा।

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