मत्स्य पालन स्वरोजगार की संभावनाएं

By: Apr 18th, 2018 12:11 am

प्रकृति को पढ़ना आसान नहीं है। प्रकृति ने जीवन दिया, तो जीने के लिए साधन-संसाधन भी दिए। जल हो या थल सब जगह सब के लिए व्यवस्था की। थल में यदि फसलों और फलों की बहार है, तो जल में भी जखीरा कम नहीं है। मछली के लिए जल में रहने की व्यवस्था है, तो वही मछली जल से बाहर आकर मनुष्य के लिए खाने की व्यवस्था बन जाती है और यही व्यवस्था लेती है एक बड़े उद्योग का रूप, जिसे मत्स्य पालन कहा जाता है…

कभी मत्स्य पालन मछुआरों तक ही सीमित था, लेकिन आज यह सफल और प्रतिष्ठित लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो रहा है। नई-नई टेक्नोलॉजी ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। मत्स्य पालन रोजगार के अवसर तो पैदा करता ही है खाद्य आपूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज भारत मत्स्य उत्पादक देश के रूप में उभर रहा है। एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था। बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं जो प्राकृतिक रूप में नदी, तालाब और सागर में होती हैं। छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते हैं। देश के लाखों लोगों का चूल्हा इसी उद्योग से जलता है। मछली पालन उद्योग ज्यादातर तटीय इलाकों पर ही फलता-फूलता है।

आर्थिक सुदृढ़ता में सहायक

मत्स्य पालन ने वर्ष 2008 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया। भारत में मछली पकड़ने के व्यवसाय में लगभग 14.5 लाख लोग जुड़े हुए हैं। विश्व के लगभग आधे देश भारत में पैदा होने वाली मछली का उपभोग करते हैं। इस प्रकार यह उद्योग आर्थिकी को सुदृढ़ करने के साथ-साथ रोजगार भी देता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान भारतीय मत्स्य पालन और जलीय कृषि शिल्प में सुधार देखा गया है। मछली पकड़ने से आर्थिक लाभ के लिए भारत सरकार ने विशेष आर्थिक पैकेज अपनाया है। इसके लिए हिंद महासागर का 370 किलोमीटर और 2 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र इसमें शामिल किया गया है।

 कानून और नियम

ब्रिटिश काल से ही मत्स्य पालन के बारे में नियम-कानून बनाए गए थे। 1897 में भारतीय मत्स्य अधिनियम बनाया गया, जिसमें पानी को विषाक्त कर या विस्फोट कर मछलियों को मारने पर पाबंदी लगाई गई थी। उसके बाद 1972 में वन्य जीवन संरक्षण और 1974 में जल अधिनियम बना। सन् 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बना। ये सभी अधिनियम मत्स्य पालन के लिए नियम-कानून बन कर इस उद्योग के संरक्षक बने।

प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान

 अंतरदेशीय मत्स्य संस्थान, केरल

 केंद्रीय संस्थान मत्स्य प्रौद्योगिकी, कोच्चि

 केंद्रीय मत्स्य समुद्री और इंजीनियरिंग प्रशिक्षण संस्थान जुहु, मुंबई

 मत्स्य पालन केंद्रीय तटीय इंजीनियरिंग संस्थान, बंगलूर

 सेंट्रल इन्लैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट बैरकपुर, कोलकाता

 सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कोचीन

 सेंट्रल इंस्टीच्यूट फ्रेश वाटर एक्वााकल्चर भुवनेश्वर, ओडिशा

 डायरेक्टरेट ऑफ  कोल्ड वाटर फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट भीमताल, उत्तराखंड

 पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना

इसके अलावा भारत में 19 मत्स्य पालन से संबंधित कालेज हैं और एक मत्स्य पालन विश्वविद्यालय (सीआईएफई) इस क्षेत्र में प्रचार-प्रसार कर रहा है।

मत्स्य पालन क्षेत्र के विकास के लिए परियोजनाएं

 अंतरदेशीय मत्स्य विकास पर केंद्र प्रायोजित योजना और एक्वाकल्चर

 समुद्री मछलियों को पकड़ने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु केंद्र प्रायोजित योजना।

 मछुआरों के कल्याण पर केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय योजना।

 मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए डाटाबेस और भौगोलिक सूचना प्रणाली के सुदृढ़ीकरण पर केंद्र प्रायोजित योजना।

इसके अलावा सरकार गरीब मछुआरों के कल्याण के लिए कई योजनाएं चला कर उन्हें अनुदान प्रदान करती है ताकि वे अपने परंपरागत व्यवसाय को आसानी से आगे बढ़ा सकें, जिससे उनके परिवार का गुजर-बसर हो सके।

मत्स्य पालन का इतिहास

भारत में मत्स्य पालन और जलीय कृषि का एक लंबा इतिहास है। मत्स्य पालन का जिक्र कौटिल्य के अर्थ शास्त्र(321-300 ई.पू) में भी मिलता है। मत्स्य पालन का व्यवसाय 1911 ई. में तमिलनाडु में शुरू हुआ। बाद में पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में मत्स्य पालन विभाग स्थापित किए गए। वर्ष 2006 में केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय के अधीन एक समर्पित मत्स्य पालन संगठन की शुरुआत की गई। इस समय पश्चिम बंगाल मछली उत्पादन में सबसे अग्रणी है। भारत सरकार ने सन् 2006 में राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड का शुभारंभ किया। इसका मुख्यालय हैदराबाद में एक मछलीनुमा इमारत में स्थित है।

शैक्षणिक योग्यता

मत्स्य पालन में तकनीकी ज्ञान का विशेष महत्त्व होता है। तकनीकी कौशल का होना अनिवार्य है, लेकिन अगर अभ्यर्थी ने बीएससी मेडिकल साइंस अथवा जूलॉजी जैसे विषयों में विधिवत शिक्षा प्राप्त की हो, तो सुविधा रहती है। इस क्षेत्र में डीएफएसए और एमएससी की डिग्री भी होती है।

वेतनमान

मत्स्य पालन में आमदनी इस बात पर निर्भर करती है कि आपने मछली पालन को किस स्तर पर अपनाया हुआ है और किस प्रजाति की मछली को पालन के लिए चुना है। वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन करने पर प्रति महीने एक लाख तक आमदनी हो सकती है।

चुनौतियां कम नहीं

इस व्यवसाए से जुड़े लोग जोखिम भरी जिंदगी जीते हैं। समुद्र की लहरों से जूझने का जज्बा रखने वाले लोग ही इस करियर में कामयाब होते हैं। कभी-कभी तो ऐसे समाचार भी सुनने को मिलते हैं कि पाकिस्तान या दूसरे किसी देश ने हमारे मछुआरों को कैद कर लिया यानी कि मछली पकड़ते हुए दूसरे देश की हद में निकल जाते हैं और फिर घुसपैठ का आरोप लगाकर दूसरे देश द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। इस क्षेत्र में अपना रोजगार शुरू करने वाले को तालाब बनाने पर काफी खर्च करना पड़ता है। कभी-कभी तो ऋण लेने की नौबत भी आ जाती है। इसके अलावा कई बार मछलियां किसी बीमारी का शिकार हो जाती हैं, तो फिश फारम चलाने वालों को बड़ा आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है।

मछली पकड़ने की प्रमुख बंदरगाहें

 मंगलूर (कर्नाटक)

 कोच्चि (केरल)

 चेन्नई (तमिलनाडु)

 विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश)

 कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

हिमाचल में मत्स्य पालन

फिश फारम को मत्स्य पालन की आधारशिला माना जाता है। हिमाचल देश के उन कुछ प्रदेशों में है, जिन्हें प्रकृति ने समृद्ध करने के लिए कई संसाधन दिए हैं। हिमाचल प्रदेश में तालाबों और खड्डों के अलावा चार बड़ी झीलों गोबिंदसागर, महाराणा प्रताप सागर और पंडोह तथा चमेरा में मत्स्य पालन फलफूल रहा है। हिमाचल में ट्राउट और कॉर्प फिश फारम हैं। प्रदेश के ऊपरी क्षेत्र में ट्राउट और मध्य क्षेत्र में कॉर्प प्रजाति की मछलियों का कारोबार शुरू किया जा सकता है।

ट्राउट फार्म जहां हैं

 पतलीकूहल      कुल्लू

 बरोट      मंडी

 होली      चंबा

 धामवारी  शिमला

 सांगला    किन्नौर

कॉर्प फार्म जहां हैं

 अलसू    मंडी

 दियोली   बिलासपुर

 कांगड़ा   कांगड़ा

 सुल्तानपुर     चंबा

हिमाचल के गोबिंदसागर को मछली उत्पादन में देश में पहला स्थान प्राप्त है।

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