लाहुल में लटका बिजली प्रोजेक्टों का काम

 केलांग —विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में सरकार को लाहुल-स्पीति से बड़ा झटका लगा है, यहां करीब दर्जन भर बड़ी परियोजनाओं का निर्माण कार्य जहां अधर में लटक गया है, वहीं देश की नामी बड़ी कंपनियों ने भी लोगों के विरोध व ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के बड़े खर्चे को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच दिए हैं। ऐसे में भारत को पश्चिम में बहने वाली नदियों से विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में जोर का झटका लगा है। जबकि भारत ने पूर्वी नदियों के ऊपर बड़े-बड़े बांध बनाकर विद्युत उत्पादन का पूर्ण रूप से दोहन कर लिया है। यहां बात अगर पश्चिम में बहने वाली उन प्रमुख नदियों की करें तो जहां से सरकार ने 23 हजार मेगावाट उत्पादन करने की योजना बनाई थी, जिसमें सरकार को अब तक सफलता हासिल नहीं हो पाई है। इस लक्ष्य के तहत जहां जम्मू-कश्मीर से 20 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन का टारगेट रखा गया है, वहीं हिमाचल से भी तीन हजार विद्युत उत्पादन करने की क्षमता आंकी गई थी। ऐसे में सरकार ने जहां लाहुल-स्पीति में बहने वाली चिनाव नदी में करीब दर्जन भर बड़ी विद्युत परियोजनाओं को लगाने का प्रयास किया, लेकिन अब तक सरकार को उसमें कामयाबी नहीं मिल पाई है। उल्लेखनीय है कि लाहुल-स्पीति में पिछले कुछ वर्षों से बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को स्थापित करने के प्रयास सरकार ने किए हैं, लेकिन लोगों के विरोध व रोहतांग से ट्रांसमिशन लाइन गुजारने की चुनौती परियोजना प्रबंधनों पर इस कद्र भारी पड़ी कि यहां किसी भी परियोजना को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सका है। ऐसे में जहां लाहुल-स्पीति में बिजली पैदा करने के लिए टाटा, रिलायंस व मोजोवेयर जैसी बड़ी कंपनियां अपने हाथ खड़े कर यहां से पलायन कर चुकी हैं। लाहुल-स्पीति में अब तक 320 मेगावाट की सैली, 100 मेगावाट की मियाड़, 300 मेगावाट की जिस्पा, 120 मेगावाट की छतडू, 140 मेगावाट की तांदी, 250 मेगावाट की तिंदी, 220 मेगावाट की रोहली, 150 मेगावाट की जोबरंग सहित जंगथग महत्त्वपूर्ण जल विद्युत परियोजनाएं हैं, लेकिन इन जल विद्युत परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने में अब तक सरकार कामयाब नहीं हो सकी है।

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