वानिकी की हरियाली करियर की खुशहाली

By: Apr 25th, 2018 12:10 am

‘वनों से वायु और वायु से आयु’ यह पंक्ति वनों के महत्त्व को बयां करती है। जिस ऑक्सीजन से मनुष्य जीवन पाता है वन वही ऑक्सीजन प्रदान करते हैं और मनुष्य द्वारा विसर्जित की गई कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में वनों को अगर प्राणदाता कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी…

वानिकी अध्ययन का एक ऐसा रोचक क्षेत्र है जो उन सब सिद्धांतों तथा व्यवहारों से मिलकर बना है जिनमें वनों के सृजन,संरक्षण, वैज्ञानिक प्रबंधन और संसाधनों के रूप में उनका उपयोग शामिल है। भारत में वैज्ञानिक वानिकी की शुरुआत सबसे पहले 1864 में वन प्रबंधन के लिए वानिकी व्यवसायियों को प्रशिक्षित करने के लिए हुई थी। देश में विश्वविद्यालय स्तर पर वानिकी शिक्षा वर्ष 1985 में उस समय आरंभ हुई, जब राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में चार वर्ष के डिग्री कार्यक्रम के रूप में बीएससी वानिकी पाठ्यक्रम शुरू किया गया।  वानिकी का क्षेत्र बड़ा विस्तृत है। कृषि, पर्यावरण से भी इसका सीधा संबंध है। एक पौधे को पेड़ बनाने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत होती है। इसीलिए सरकारें वनों के संरक्षण के लिए कर्मचारियों की एक लंबी-चौड़ी फौज रखती है। वनों को भू-माफिया से बचाना, आग लगने से बचाना यानी उनकी हर तरह से सुरक्षा करने के लिए मैनपावर चाहिए। इतने बड़े उपक्रम को अंजाम देने के लिए वानिकी विभाग में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। एक फोरेस्ट गार्ड से ले कर वनपाल तक के पद इस विभाग में सृजित किए गए हैं।

शैक्षणिक योग्यता

वानिकी में करियर के लिए दस जमा दो या इसके समकक्ष शैक्षणिक योग्यता फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ होना चाहिए। इसके बाद ही चार वर्षीय बीएससी फोरेस्ट्री का कोर्स किया जा सकता है। इसके बाद फोरेस्ट मैनेजमेंट, कॉमर्शियल फोरेस्ट्री, फोरेस्ट इकॉनोमिक्स, वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, वाइल्ड लाइफ  साइंस में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए कोर्स किए जा सकते हैं।

वानिकी में कोर्स

स्नातक कायक्रम

फोरेस्ट्री में चार वर्षीय बीएससी का कोर्स होता है। दस जमा दो फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी विषयों के साथ करने के बाद स्नातक कोर्स किया जा सकता है।

स्नातकोत्तर कार्यक्रम

कई राज्य कृषि विश्वविद्यालय तथा कुछेक परंपरागत विश्वविद्यालयों, संस्थानों द्वारा वन-वृक्ष विज्ञान, वन उत्पाद, अर्थशास्त्र एवं प्रबंधन, काष्ठ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, वृक्ष आनुवंशिकी और प्रजनन में विशेषज्ञता के साथ वानिकी में दो वर्षीय व्यावसायिक मास्टर डिग्री एमएससी वानिकी तथा कृषि वानिकी में एमएससी डिग्री प्रदान की जाती है।

डाक्टरेट कार्यक्रम

चार राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, दो डीम्ड विश्वविद्यालयों तथा तीन परंपरागत विश्वविद्यालयों द्वारा वानिकी, कृषि वानिकी में पीएचडी के रूप में न्यूनतम तीन वर्षीय डॉक्टरल कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। पीएचडी स्तर पर किया जाने वाला शोध कार्य वानिकी और संबद्ध क्षेत्रों के विशेषीकृत विषयों के बारे में होता है। हिमाचल में विश्व की सबसे बड़ी वानिकी परियोजना- हिमाचल प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है। प्रदेश का वन क्षेत्र 37033 वर्ग किलोमीटर है। 16376 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है जहां वनस्पति नहीं होती। हिमाचल प्रदेश में दुनिया की सबसे बड़ी वानिकी परियोजना चल रही है। यहां पहले किसान अपनी खेती के विस्तार के लिए पेड़ों को काटता था, पर अब मिड-हिमालय वाटरशैड विकास योजना के कार्यान्वयन से उसके दृष्टिकोण में बदलाव आया है।  अब वह अपनी भूमि पर उगते पौधों में अपना सुनहरा भविष्य देख रहा है। इस वाटरशैड परियोजना के अंतर्गत विश्व में सबसे बड़े तथा भारत के पहले क्लीन डिवेलपमेंट मेकेनिज्म का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इसके अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में विश्व बैंक इस परियोजना के क्षेत्र में नए विकसित वनों एवं पौधारोपण से अर्जित आय को क्षेत्र के लोगों में बांटेगा। यह परियोजना भारत की पहली पायलट और विश्व की पहली कार्बन क्रेडिट परियोजना है।

प्रशिक्षण संस्थान

* डा.वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ  एग्रीकल्चर एंड फोरेस्ट्री, सोलन (हिप्र)

* अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

 *कालेज ऑफ  एग्रीकल्चर, हिसार (हरियाणा)

 *कालेज ऑफ  एग्रीकल्चर, बंगलूर (कर्नाटक)

  *बिरसा एग्रीकल्चर

*यूनिवर्सिटी, कान्के, रांची (झारखंड)

 * कालेज ऑफ  एग्रीकल्चर, लुधियाना (पंजाब)

  *इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ  फोरेस्ट मैनेजमेंट,  भोपाल

  *इंदिरा गांधी नेशनल फोरेस्ट अकादमी, देहरादून

अवसर कहां-कहां

वानिकी में प्रशिक्षण के बाद पर्यावरण और वन विभाग में रोजगार उपलब्ध होता है। टिंबर, प्लाइवुड कंपनयिं और फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (एफएओ) में भी अवसर मिलते हैं। साइंटिस्ट को रिसर्च लैबोरेटरीज में नौकरी का मौका मिलता है। इसके अलावा अध्यापन के क्षेत्र में भी वानिकी में काफी संभावनाएं होती हैं।

पर्यावरण के पहरेदार

पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में वन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वन वर्षा लाने में सहायक होते हैं, भूमि कटाव रोकते हैं। मौसम चक्र असंतुलित होने का मुख्य कारण ही यह है कि वनों का अनियंत्रित कटान हो रहा है। आज वनों को काट कर वहां पर बिल्डिंगें बनाई जा रही हैं यानी पृथ्वी के ऊपर वनों की प्रतिशतता लगातार घटती जा रही है। वनों को धरती का आवरण कहा जाता है और बिना आवरण के कोई चीज ज्यादा सुरक्षित नहीं रह सकती। संक्षेप में वनों को पर्यावरण के पहरेदार भी कहा जा सकता है।

समृद्धि के स्रोत

वन किसी देश या प्रदेश की समृद्धि में अहम रोल अदा करते हैं। वन संपदा विकास को गति प्रदान करती है। देश के उद्योग धंधे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनों से जुड़े रहते हैं। आज लकड़ी की कीमत लोहे से भी ज्यादा हो गई है। देश की आबादी का एक बड़ा तबका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार के लिए वनों से जुड़ा हुआ है। चूल्हे में ईंधन से लेकर घर के फर्नीचर तक, भूमि कटाव रोकने से लेकर वर्षा लान, पर्यावरण संतुलन बनाए रखने तक और जीवन के आगाज से लेकर अंजाम तक वन अपनी भूमिका निभाते हैं।

छात्रवृत्तियां

वानिकी में स्नातक तथा स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति भी उपलब्ध है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद वानिकी सहित कई कृषि विषयों में आयोजित अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को स्नातकपूर्व पाठ्यक्रम के अध्ययन हेतु राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति प्रदान करती है। बशर्ते कि उम्मीदवार ने अपने गृह राज्य के बाहर किसी संस्थान में प्रवेश लिया हो। स्नातकोत्तर स्तर पर संबंधित राज्य सरकारें तथा भाकृअप कई तरह की छात्रवृत्तियां प्रदान करती है।वर्तमान में भाकृअप  एमएससी छात्रों के लिए दो वर्ष की अवधि हेतु 5760 रुपए प्रतिमाह है तथा 6000 रुपए आकस्मिक खर्च अनुदान के रूप में प्रदान करती है। इसी प्रकार पीएचडी छात्रों के लिए वर्तमान में तीन वर्ष के लिए 7000 रुपए प्रतिमाह तथा साथ में 10000 रुपए वार्षिक आकस्मिक खर्च अनुदान के रूप में भी दिए जाते हैं।

अपने सपनों के जीवनसंगी को ढूँढिये भारत  मैट्रिमोनी पर – निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App